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परवरिश बाल मन की


 





राम कुमार:-अरे अरे! क्यों पीट रहे हो ...राजा बेटा को ... 

शिव कुमार:-  राम कुमार यह बहुत  बिगङ गया  है ...हाथ से निकल गया है ...यह राजा बेटा ..?. जाने कौन से बुरे कर्मों का फल मिल  रहा है ... इतना बिगङ गया है राजा की पूछो मत ....दिन भर हाथ में यह मोबाइल और गेम्स ..मैं तो तंग आ गया हूं ?


रामकुमार:- अरे बच्चा है .सम्भाल लेगें सब मिलकर...

शिवकुमार:-  रामकुमार..तुम सही कहते थे मैं ही नालायक अपनी दौलत के नशे में चूर ..अपने बेटे की आवश्यकता से अधिक इच्छायें पूरी करता रहा ..और आज भुगत रहा हूं.......बच्चों की आवश्यकता से अधिक इच्छायें कभी पूरी नहीं करनी चाहिए..अपनी चादर से अधिक पैर बाहर नहीं निकालने देने चाहिए.... अब तुम अपने बेटे को देख लो ...कितना गुणी और समझदार है ... मैं हमेशा तुम्हारा मजाक उङाता रहा ..और तुम हमेशा सम्भलकर चलने के विश्वास में अडिग रहे .....

राम कुमार---: हां शिव कुमार. किसी भी हालत में बच्चों 

की परवरिश को हल्के में मत लीजिए  ... प्रेम, दुलार, शुभ विचार, उच्च  आदर्शो  का पोषण  भी निरंतर देते रहिए  ....

थोङा प्यार थोङा दुलार... सही आकार देने के लिए ढोकना भी पङता है ..  किन्तु जरा सम्भलकर ....!  ज्यादा मार कभी- कभी इंसान को तोङ भी देती है ...और एक बार का टूटा हुआ दुबारा पहले जैसा नहीं होता .... 

की बार परिस्थिति प्रतिकूल भी होती है ,उस समय हिम्मत नहीं हारनी ...थोङी देर रूक कर युक्ति से हल निकालना है ...

  इसलिए जरा सम्भलकर 

ऐसा नहीं की सही आकार देने के लिए बस  ढोकते ही जाओ ...ज्यादा ढोकोगे तो एक दिन वह टूट जायेगा .. थोङी सी मार..सम्भालकर ,प्यार दुलार ..तभी सुन्दर आकर्षक व्यक्तित्व तैयार  होगा ....

 परवरिश इतनी आसान नहीं------जितना आसान सिर्फ बङा करना है ....

रामकुमार...भाई शिवकुमार से.....यह जो.बच्चे और पौधे होते हैं ना.. बहुत ध्यान रखना.पङता है इनकी परवरिश में

जिस तरह एक पेङ या पौधा ..अगर बीज है ,धूप,खाद ,पानी मिलेगा तो बङा हो ही जायेगा ... इसके विपरीत अगर ...उस पौधे को यथायोग्य ..परवरिश मिलेगी तो ...समयानुसार पानी ,खाद मिलेगी ,तो वह पौधा अपेक्षाकृत उस पौधे के जो अपने आप बङा हो गया ...अधिक अच्छी फसल देगा ....

यही स्थिति मनुष्य जीवन की भी है ....परवरिश बहुत आसान नहीं ....क्योकि वही बात है...बङे होने में और पलने में बहुत फर्क होता है।  

नूतन विचारों का संग हो पारम्परिक धार्मिक संस्कारों की सभ्यता के समावेश के साथ बाल मन की परवरिश की जाये जिसमें नवीनता का संदेश हो ..जिससे बाल मन का उत्साह वर्धन होता रहे ...

परवरिश सिर्फ रुपए पैसे .से ही होती है ...सत्य नहीं .. रुपये पैसे से आप सिर्फ..सुख - सुविधाएं खरीद सकते हो.... अच्छे संस्कार नहीं ...उच्च आदर्श नहीं ....

सिर्फ दौलत के बल पर आपका बच्चा बङा तो हो जायेगा ...लेकिन उसकी जङें खोखली होंगीं ...अच्छे संस्कारों के अभाव में ... वह मनुष्य विपरीत परिस्तिथियों में स्वयं को सम्भाल नहीं सकेगा ...जो स्वयं ही खोखला होगा ..वह समाज को या आने वाली पीढी को क्या देगा.....सिर्फ खोखलापन?

सम्भलकर...परवरिश! कोई  साधारण काम  नहीं ....बहुत सम्भलकर ...! नयी फसल तैयार करनी है आपने ...एक आदर्श स्थापित करना है आपने .....

बच्चों में शिक्षा के साथ  अच्छे गुण विकसित कीजिए...उन्हें अच्छा संगीत सिखाइये..जिससे वह अपनी मधुर आवाज से समाज में माधुर्य फैला सकें ..,

एक अच्छा शिक्षक, सांइसटिस्ट, इंजीनियर ...यथायोग्य रुचि के अनुसार  कुछ भी अच्छे गुण विकसित करिये बाल मन में ...

अपराधिक गतिविधियों से दूर रखिये बाल मन को ....

उन्हें भले- बुरे का ज्ञान दीजिये ...आत्मविश्वास बढाने वाले प्रेरक प्रसंग के विषय में अक्सर चर्चा करते रहिये ....जिससे बाल मन में बचपन में ही सही और गलत निर्णय लेने की क्षमता विकसित हो ....

अच्छे संस्कार, शुभ विचार, उच्च आदर्श ही सिर्फ...आत्मा के अमूल्य रत्न हैं .... यह रत्न प्राचीन  काल से घर के बङे बुजुर्ग  कहानियों ,प्रेरक कथाओं के माध्यम से ..शिशुओं में सीचिंत करती थी ... रामचरितमानस में, श्रीराम जी का चरित्र, भरत जी का चरित्र सुन- सुनाकर बच्चों की परवरिश होती थी ....तब जाकर  ,ध्रुव प्रह्लाद, वीर शिवाजी ,विवेकानंद जैसे महान हस्तियां बनती थीं.....अन्य भी कई महान हस्तियां हुई हैं ....

आज का काल है ,टेलीविजन का ,मोबाइल का ...जिनमें चलते कार्टून..चलचित्र... अब जब आपका बच्चा कार्टून देखकर बङा हो रहा है तो आप क्या ? उम्मीद  करेगें अपनी आने वाली संतानों से ...कार्टून जैसी हरकते ....अभद्र भाषा .....

सम्भालना होगा ...माना की कम्प्यूटर का युग है ...वक्त के हिसाब से चलना पङता है ....फिर क्यों ना कुछ नया करें नये ढंग से ...सोशल मीडिया में बहुत सी अच्छी चीजें भी हैं ...सिर्फ कार्टून और गेम्स ही नहीं ....

नये जमाने की नयी फसलों ..यानि आने वालों मासूमों को सुख- सुविधापूर्ण जीवन के संग शुभ संस्कार भी दीजिए  जो अत्यंत आवश्यक है ...आज आप बच्चों को सबका आदर करना सिखायेंगे तो कल वह आपका भी आदर करेगा ...

अतः परवरिश को हल्के में मत लीजिए  ...बच्चों  को प्रेम, दुलार, शुभ विचार, उच्च  आदर्शो  का पोषण  भी निरंतर देते रहिए  ....

Comments

  1. प्रेम, दुलार, शुभ विचार, उच्च आदर्शो का पोषण भी निरंतर देते रहिए, बहुत सही कहा है

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