मन के अंदर भी बैठा होता है एक मन
एक जागृत अवस्था का मन, दूसरा स्वप्न अवस्था का मन
एक नयी ही दुनियां बसा लेता है ,ख्वाबों की दुनियां में मन
जागृत परिस्थति के आयाम पर स्वयं
ही सपने बुनता है .. निद्रा अवस्था में
मन के भीतर बैठा मन जो सुस्त अवस्था में
जागृत हो अपना ही कारवां तैयार कर लेता है
स्वप्न बनकर घटनास्थल से कुछ भी चुन लेता है
और सपनों के रूप में साकार होता है
मन की गहराई का कोई तोङं नहीं
क्षमता अनुसार ही जान पाता है मनुष्य
थोङा बहुत भी भीतर की यात्रा की हो तो
बहुत रहस्य खुलते हैं ..रत्नों की समझ आती है ..
अद्भुत रुप से आकार लेते हैं स्वप्न
परिवेश से लेकर अतीत की यादों से स्वयं सिद्ध
होकर आकार लेते स्वप्न... अचंभित करने वाले स्वप्न....
स्वप्न सच्चाई की गहराई से निकले तिलिस्मि सपने
सपने अपने फिर भी अपने नहीं ..पर सपनों में जन्म लेते सपने .....
बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना सखी नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
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