Skip to main content

दोस्ती


पापा:-अपने बेटे से ..
स्कूल से घर ले जाते वक्त.... मंयक बेटा ..उदास क्यों हो ..क्या चाहिए तुम्हें .. कोई टाय चाहिए.. चाकलेट चाहिए...

मयंक:- पापा चाकलेट तो घर में बहुत सारी पङी है ...आप भूल गये ..आप कल ही तो लाये थे ....

पापा :- हां याद है बेटा ,तुम चुपचाप बैठे थे ना इसलिए..पूछ
 लिया ...
मयंक :- पापा मैं अकेले कितनी चॉकलेट खाऊंगा...मेरा कोई दोस्त भी नहीं है ... 
 
पापा :- गाङी चलाने में ध्यान  केंद्रित करते हुए  ...
फिर बोलते हुये ..मैं हूं ना तुम्हारा दोस्त ... हां पापा वो तो आप हो .पर आपको तो आफिस भी जाना पङता है ....

बेटा तुम  स्कूल की लाईन में सबसे पीछे क्यों खङे होते हो ..
मंयक :- पापा सब बच्चे भाग- भागकर आगे खङे हो जाते हैं और मैं पीछे रह जाता हूं 

मयंक :- कुछ सोचते हुये ..पापा आप ना.मुझे साईकिल दिला दो ...
पापा:- ठीक है बेटा ...

मयंक :- पर. पापा मैं साईकिल किसके साथ चलाऊगा  ...मेरा कोई दोस्त भी तो नहीं है ...

पापा:- मयंक बेटा ..मैने तुम्हें कितनी बार कहा है ..अपनी जगह खुद बनानी पङती है ....

मयंक:- पापा वो जो है ना सिद्धांत है ,वो मेरा दोस्त उसे क्रिकेट बहुत पंसद है ...और मुझे बिल्कुल नहीं ...वो तो हर रोज क्रिकेट खेलने चला जाता है ...और प्रियम को ट्यूशन जाना होता है ...
जब सब ट्यूशन जाते हैं ...मम्मी मुझे आराम कराती है ...और फिर जब सब खेलते हैं ..मम्मी मुझे पढाने बिठा देती है ..और सब मुझे पढाकू भी कहते हैं ...
पापा मेरे सारे दोस्त मुझे देखते ही हंसते हैं और अपना ग्रूप बनाकर चल देते हैं ...

पापा .:-बेटा तुम चिंता मत करो ... हम अपनी जगह खुद  बनायेगें...

अगला दिन 

पापा :- आज रविवार है ,चलो ! मयंक तुम्हारे लिये साईकिल लेकर  आते हैं ..
मंयक अपने मम्मी पापा के साथ  बाजार  से अपने घर ले आया था ...
पापा :- चलो मयंक.तुम्हारे दोस्तों को बुलाते हैं ..
मयंक :- पापा मेरा कोई दोस्त नहीं है ....
पापा:- चलो मयंक बाहर चलें ..हम अकेले ही साईकिल चला लेगें ..

मयंक... पापा चलो .. मम्मी आप भी चलो ..
मयंक.. अपनी साईकिल पर बैठा हुआ ..सामने से सिद्धांत को आते देख ... अरे सिद्धांत तुम आज क्रिकेट खेलने नहीं गये....
सिद्धांत..मयंक मेरे दोस्त पहले हम साईकिल चलायेगें ...मंयक अरे प्रियम भी आ गया ...
मंयक..पापा की तरफ देखते हुए  ...पापा आपने बुलाया मेरे दोस्तों को ...मुझे बता है ....
मयंक--- पापा की आंखों में देखते हुये ..पापा मैं अपने दोस्तों को कभी नहीं खोने दूंगा ...
पापा मैं बनाकर रखूंगा..अपनी जगह अपने दोस्तों के दिलों में...
 ....मयंक, सिद्धार्थ, प्रियम, प्रसन्नतापूर्वक अपनी - अपनी पारी से साईकिल चलाते हुए..बेहद खुश नजर आ रहे थे ...

Comments

Popular posts from this blog

अपने मालिक स्वयं बने

अपने मालिक स्वयं बने, स्वयं को प्रसन्न रखना, हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है..किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी ना होने दें।  परिस्थितियां तो आयेंगी - जायेंगी, हमें अपनी मन की स्थिति को मजबूत बनाना है कि वो किसी भी परिस्थिति में डगमगायें नहीं।  अपने मालिक स्वयं बने,क्यों, कहाँ, किसलिए, इसने - उसने, ऐसे-वैसे से ऊपर उठिये...  किसी ने क्या कहा, उसने ऐसा क्यो कहा, वो ऐसा क्यों करते हैं...  कोई क्या करता है, क्यों करता है,हमें इससे ऊपर उठना है..  कोई कुछ भी करता है, हमें इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए.. वो करने वाले के कर्म... वो अपने कर्म से अपना भाग्य लिख रहा है।  हम क्यों किसी के कर्म के बारे मे सोच-सोचकर अपना आज खराब करें...  हमारे विचार हमारी संपत्ति हैं क्यों इन पर नकारात्मक विचारों का  दीमक लगाए चलो कुछ अच्छा  सोंचे  कुछ अच्छा करें "।💐 👍मेरा मुझ पर विश्वास जरूरी है , मेरे हाथों की लकीरों में मेरी तकदीर सुनहरी है । मौन की भाषा जो समझ   जाते है।वो ख़ास होते हैं ।  क्योंकि ?  खामोशियों में ही अक्सर   गहरे राज होते है....

ध्यान योग साधना

  ध्यान योग का महत्व... ध्यान योग साधना साधारण बात नहीं... इसका महत्व वही जान सकता है.. जो ध्यान योग में बैठता है।  वाह! "आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी" आप धन्य है... आप इस देश,समाज,के प्रेरणास्रोत हैं।  आप का ध्यान योग साधना को महत्व देना, समस्त देशवासियों के लिए एक संदेश है... की ध्यान योग का जीवन में क्या महत्व है। ध्यान योग साधना में कुछ तो विशिष्टता अवश्य होगी...वरना इतने बड़ देश को चलाने वाले प्रधानमंत्री के पास इतनी व्यस्तता के बावजूद इतना समय कहां से आयेगा कि वह सब काम छोड़ ध्यान में बैठे।  यथार्थ यह की ध्यान योग साधना बहुत उच्च कोटी की साधना है... दुनियां के सारे जप-तप के आगे अगर आपने मन को साधकर यानि मन इंद्रियों की की सारी कामनाओं से ऊपर उठकर मन को दिव्य शक्ति परमात्मा में में लगा लिया तो.. आपको परमात्मा से दिव्य शक्तियां प्राप्त होने लगेगी। लेकिन इसके लिए आपको कुछ समय के लिए संसार से मन हटाकर.. ध्यान साधना में बैठना होगा... एक बार परमात्मा में ध्यान लग गया और आपको दिव्य अनुभव होने लगें तो आप स्वयं समय निकालेगें ध्यान साधना के लिये।  आप सोचिए अग...

लेखक

  जब आप अपनी अभिव्यक्ति या कुछ लिखकर समाज के समक्ष लाते हैं, तो आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप समाज के समक्ष बेहतरीन साकारात्मक विचारों को लिखकर परोसे,   जिससे समाज गुमराह होने से बचे..प्रकृति पर लिखें, वीर रस लिखें, सौंदर्य लिखें, प्रेरणादायक लिखें, क्रांति पर लिखें ___यथार्थ समाजिक लिखें  कभी - कभी समाजिक परिस्थितियां भयावह, दर्दनाक होती---बहुत सिरहन उठती हैं.... क्यों आखिर क्यों ? इतनी हैवानियत, इतनी राक्षसवृत्ति.. दिल कराहता है.. हैवानियत को लिखकर परोस देते हैं हम - - समाज को आईना भी दिखाना होता... किन्तु मात्र दर्द या हैवानियत और हिंसा ही लिखते रहें अच्छी बात नहीं..   लिखकर समाज को विचार परोसे जाते हैं.. विचारों में साकारात्मकता होनी भी आवश्यक है।  प्रेम अभिव्यक्ति पर भी लिखें प्रेम लिखने में कोई बुराई नहीं क्योंकि प्रेम से ही रचता-बसता संसार है.. प्रेम मन का सौन्दर्य है, क्यों कहे सब व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है प्रेम से संसार है, प्रेम ही व्यवहार है प्रेम ही सद्भावना, प्रेम ही अराधना प्रेम ही जीवन आधार है.. प्रेम में देह नहीं, प्रेम एक जज्बात...