बचपन की बादशाही भी कमाल थी ,
फिक्र का नाम नहीं ,सपने आसमान की ऊचाईयां छूते थे ...
बचपन में अपने भी जहाज, हवा में उङते थे ,
अपनी भी कश्तियां पानी में चलती थीं ...
जब हम बच्चे थे ,दिल के बहुत ही सच्चे थे,
बादशाहों सा जीवन जीते थे जब हम बच्चे थे ...
आसमान से अपने रिश्ते थे ,ऊंची- ऊंची उङाने ,
भरते थे ,डोर पतंग की थामें धीरे- धीरे ढील देते थे ,
सुदुर हवा में अपने भी संदेशे जाते थे ,जब हम बच्चे थे ...
सीधे - सरल और सच्चे थे जब हम बच्चे थे ,
बचपन की ठसक लङकपन ,मन को गुदगुदाता है ,
आता है याद बहुत बचपन का सरल स्वभाव आज भी
बहुत याद आता है ......
खेलों की भरमार थी ,ऊंच - नीच खेलते थे,
मन में ना कभी ऊंच -नीच के भाव आते थे ....
सीढी - सांप का खेल बङा मजेदार ,
सीढी चढ खुश हो जाते थे ,सांप के काटने पर
थोङा मायूस होते थे ..फिर किस्मत अजमाते थे....
बचपन की मीठी यादें गुदगुदाती हैं
लूडो के पासे लाल,नीली पीली हरी गिट्टियों
की रंगत आज भी याद आती हैं ....
बचपन को जी भर जीने दो बच्चों को ,
बचपन एक मीठी औषधी बन दिल को सहलाता
जीने का सबब बन दिल में बचपन गुदगुदाता है ....
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteआभार
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