Skip to main content

महत्वकांक्षा

सुनीता बड़े- बड़े घरों में काम करती थी.. मुंह की मीठी चापलूसी करना उसकी आदत थी-क्यों ना हो आखिर यही सब तो उसके काम आने वाला था--

 वो जानती थी---उसका पति इतना कमाता नहीं.. जो कमाता भी है, वो घर - परिवार के खर्चो में निकल जाता था.. आखिर इतनी मंहगाई में चार बच्चों को पालना.. माता -पिता की दवा का खर्चा कुछ खाने-पीने में ही निकल जाता था। 

सपने देखने का हक सबको है, माना की हम कम पैसे वाले हैं.. पर शहरों की ऊंची -ऊंची इमारतों का बनाने में हमारी ही मेहनत छीपी होती है।

सुनीता को गांव से शहर आये पांच साल हो गये थे, शुरू के कुछ महीने बहुत संघर्ष करना पड़ा सुनीता को.. नये-नये गांव से आये थे, जल्दी से कोई काम पर भी ना रखता था.. किसी तरह सुनीता के पति को मजदूरी का काम मिला... अभी तक तो फुटपात पर दिन बीत रहे थे, किसी की पहचान से किराये के लिए एक झोपड़ी की व्यवस्था हुई। सुनीता साथ - साथ मजदूरी का काम भी करने लग गयी, बच्चे भी दिन भर वहीं मिट्टी में खेलते रहते,पापी पेट का सवाल था, खाना मिल जाये वो ही बहुत था, स्कूल पढाई तो दूर की बात थी। बच्चों को दिन भर मिट्टी में खेलते देख.. आसपास की बिल्डिंग के कुछ लोग खाना को दे देते.. किसी ने पुराने कपड़े दे दिये. किसी ने गर्म कपड़े बस काम चलता रहा था। 

सुनीता बहुत मेहनती थी, एक बार जहां सुनीता मजदूरी का काम करती थी। वहीं पास ही बिल्डिंग में एक परिवार में एक महिला सुनीता की मेहनत देख खुश होती और मन ही मन कहती.. कितनी मेहनती है यह औरत.. घर का काम चार बच्चों को भी सम्भालना। और फिर मेहनत मजदूरी भी करती है। 

उस दिन तो बिल्डिंग वाली आंटी की काम करने वाली बाई नहीं आयी थी, और ऊपर से मेहमान भी आ रहे थे, उनके लिए खाना भी बनाना था.. बिल्डिंग वाली आंटी के मन में विचार आया कि क्यों ना सुनीता को बुलाकर उससे कुछ काम करालूं, बदले में कुछ पैसे दे दूँगी और और खाना भी खिला दूंगी - - बिल्डिंग वाली आंटी के कहने पर सुनीता उनके घर काम करने चली गयी, आंटी जैसे और जो बताती रही सुनीता वो - वो काम करती गयी.. इत्तेफाक से आंटी की कामवाली जो पहले से आंटी के घर काम करती थी,, कई दिन तक काम पर नही आयी और.. फिर एक दिन काम वाली का फोन आया की वो गाँव जा रही है  अब वो काम नहीं कर पायेगी आप किसी और को काम पर लगा लो, आंटी के यहां सुनीता तो काम कर ही रही थी, सुनीता को भी यही पता था कि, थोड़े दिन काम करना है, जब आंटी की काम वाली आयेगी तो अपने मजदूरी के काम में वापिस चली जायेगी । आंटी को सुनीता का काम बहुत पसंद आ गया था, उन्होने सुनीता अपने काम करते रहने की सलाह दी। सुनीता भी यह सोचकर की घर में रहकर घर का  ही काम करना है आराम भी मिल जायेगा मालकिन के यहां काम करती रही.. सुनीता के काम को देखकर पहले एक पड़ोसी ने उसे अपने यहां काम पर रखा, फिर तो सुनीता को धीरे-धीरे कई घरों में काम मिल गये.. सुनीता का व्यवहार और काम दोनों अच्छे थे, इसलिये पैसे भी मुंह मागें मिल जाते थे। 

ऊंची-ऊंची बिल्डिंग , बड़े - बडे घर उनका रहन-सहन, देख सुनीता बहुत प्रभावित होती रहती थी।  सुनीता का पति उसे बहुत समझाता, बड़े - बड़े सपने मत देखाकर - - हम मजदूर लोग हैं, पांव जमीन पर रखकर चलो।                                  सुनीता अपने पति से, हम बच्चों को तो अच्छे स्कूल में पड़ सकता हैं।   सुनीता का पति सुनीता से, बहुत सारे सरकारी स्कूल हैं और सरकार बहुत कुछ दे रही है, फीस, कपड़ा, खाना बहुत कुछ दे रही है सरकार बच्चों के लिए    । 

सुनीता एक सपना तो है, मेरा अपना घर ... सुनीता का पति जोर - जोर से हंसते हुए - - - -   

सुनीता ने अब बहुत घरों के काम ले लिए थे, महीने का बीस - तीस हजार कमा लेती थी, बच्चों की दवा, रोज का खर्चा पढाई में थोड़ा बहुत खर्चा तो होता लेकिन फिर भी सुनीता की मेहनत और इच्छाशक्ति बहुत तीव्र थी। 

मुंह की मीठी सबके काम आने वाली सुनीता ने सबको पटा कर कुछ पैसे उधार ले लिए थे।

आखिर एक दिन गांव में पचास गज की जमीन ले ली थी 

सुनीता का बोझा बड़ जरूर गया था, लेकिन ऊपर उठने के बहुत कुछ सहना पड़ रहा था। 

सुनीता बहुत महत्वकांक्षी थी - और महत्वाकांक्षा उसे बहुत ऊपर ले जायेगी, उसे बहुत यकीन था। 

कभी बच्चे बिमार हो जाते, उनकी दवाई का खर्चा सास - ससुर की दवा - - - खर्चा---खर्चों की कमी ना थी. परन्तु सुनीता के हौसलें भी कम ना थे। 

सबसे बड़ झटका तो सुनीता को तब लगा, जब उसे पता चला की गांव में उसके पति की एक ओर पत्नि है, एक आठ साल का बेटा भी है, जिसका खर्चा सुनीता के पति को हर महीने भेजना पड़ता है।  अब तो सुनीता की अपनी पति से भी कम हो गयी थी, कि उसका पति उसकी कोई मदद करेगा। आखिर कितना काम करती सुनीता भी  - - - कमजोर शरीर खाने को कुछ ढंग से नहीं, डाक्टर ने कहा अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा - - - इतना आसान ना था सुनीता के लिए - - - फिर भी उसकी इच्छाशक्ति और महत्वाकांक्षा कम ना थी, सुनीता ने अपने बच्चों को, अपनी तरह खूब आत्मविश्वास से भरपूर बना दिया था, और जीवन में आगे बडते रहने की प्रेरणा देती रहती थी - - - महत्वाकांक्षी होना भी आवश्यक है - - माना की मंजिल नामुमकिन सी है.. चलना तो शुरु करो कुछ तो आगे बढोगे  ।   

काम की अधिकता के कारण अब सुनीता काफी कमजोर होने लगी थी, और बिमार रहने लगी थी - - दवाइयों में भी बहुत खर्चा होने लगा था...सिर पर कर्जा भी बहुत था, बेटी की पढाई पर असर होने लगा था, उसे अपनी माँ के काम पर जाना पड़ रहा था। 

महत्वाकांक्ष की दौड़ में और आगे बढने की जिद्द में बहुत कुछ बलिदान करना पड़ता है। 






Comments

Popular posts from this blog

अपने मालिक स्वयं बने

अपने मालिक स्वयं बने, स्वयं को प्रसन्न रखना, हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है..किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी ना होने दें।  परिस्थितियां तो आयेंगी - जायेंगी, हमें अपनी मन की स्थिति को मजबूत बनाना है कि वो किसी भी परिस्थिति में डगमगायें नहीं।  अपने मालिक स्वयं बने,क्यों, कहाँ, किसलिए, इसने - उसने, ऐसे-वैसे से ऊपर उठिये...  किसी ने क्या कहा, उसने ऐसा क्यो कहा, वो ऐसा क्यों करते हैं...  कोई क्या करता है, क्यों करता है,हमें इससे ऊपर उठना है..  कोई कुछ भी करता है, हमें इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए.. वो करने वाले के कर्म... वो अपने कर्म से अपना भाग्य लिख रहा है।  हम क्यों किसी के कर्म के बारे मे सोच-सोचकर अपना आज खराब करें...  हमारे विचार हमारी संपत्ति हैं क्यों इन पर नकारात्मक विचारों का  दीमक लगाए चलो कुछ अच्छा  सोंचे  कुछ अच्छा करें "।💐 👍मेरा मुझ पर विश्वास जरूरी है , मेरे हाथों की लकीरों में मेरी तकदीर सुनहरी है । मौन की भाषा जो समझ   जाते है।वो ख़ास होते हैं ।  क्योंकि ?  खामोशियों में ही अक्सर   गहरे राज होते है....

ध्यान योग साधना

  ध्यान योग का महत्व... ध्यान योग साधना साधारण बात नहीं... इसका महत्व वही जान सकता है.. जो ध्यान योग में बैठता है।  वाह! "आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी" आप धन्य है... आप इस देश,समाज,के प्रेरणास्रोत हैं।  आप का ध्यान योग साधना को महत्व देना, समस्त देशवासियों के लिए एक संदेश है... की ध्यान योग का जीवन में क्या महत्व है। ध्यान योग साधना में कुछ तो विशिष्टता अवश्य होगी...वरना इतने बड़ देश को चलाने वाले प्रधानमंत्री के पास इतनी व्यस्तता के बावजूद इतना समय कहां से आयेगा कि वह सब काम छोड़ ध्यान में बैठे।  यथार्थ यह की ध्यान योग साधना बहुत उच्च कोटी की साधना है... दुनियां के सारे जप-तप के आगे अगर आपने मन को साधकर यानि मन इंद्रियों की की सारी कामनाओं से ऊपर उठकर मन को दिव्य शक्ति परमात्मा में में लगा लिया तो.. आपको परमात्मा से दिव्य शक्तियां प्राप्त होने लगेगी। लेकिन इसके लिए आपको कुछ समय के लिए संसार से मन हटाकर.. ध्यान साधना में बैठना होगा... एक बार परमात्मा में ध्यान लग गया और आपको दिव्य अनुभव होने लगें तो आप स्वयं समय निकालेगें ध्यान साधना के लिये।  आप सोचिए अग...

पल-पल

पल-पल बीत रहा है हर पल  घड़ी की सुईयों की कट-टक  इंतजार में हूं उस बेहतरीन पल के  जिसमें खुशियाँ देगीं दस्तक - -    एक पल ने कहा रुक जा, ऐ पल,  उस पल ने कहा कैसे रुक जाऊं  अब आयेगा  दूसरा पल।  जिस पल में जीवन की सुंदरता का हो एहसास  बस वही है प्यारा पल।   ऐ पल तू ठहर जा, पल में बन जायेगा तू अगला पल, जाने कैसा होगा अगला पल,आज का पल है  बेहतरीन पल, जी भर जी लूं यह पल, कह रहा है मन चंचल-चपल । पल की  कीमत पल ही जाने,  बीत जाने पर हो जाना है हर पल बीता कल।  पल -पल कीमती है, प्रयासों की मचा दो हलचल, जाने कब गुजर जाये यह पल, बन जाये अगला पल।   हर पल को बना दो, बेहतरीन पल फिर लौटकर नहीं आयेगा यह पल।  पल की कीमत पल ही जाने, नहीं ठहरता कोई भी पल,बन जाता है अगला पल। पल -पल बीत रहा है, कह रहे हो जिसे अगला पल उस पल में निकाल लेना जरूरी प्रश्नों के हल।    यह पल भी होगा कल, फिर अगला पल  समय नहीं लगेगा, हर पल को बीतते।  वर्तमान पल को बना दो स्वर्णिम पल  कल का पता नहीं, कब हो जाये फिर अगला ...