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सुबह सवेरे


 सुबह सवेरे घर का द्वार जब खोला 

लगा, प्रकृति भी बोल रही है,आनन्द का सिंधु धरा को दे रही है 

ठंडी हवा का झोंका मानों बोल रहा था ,आओ सांसो में 

ताजगी भर लो , आंखो से प्रकृति का आनन्द ले लो 

वृक्षों की डालियां झूम रही हैं ,झूम- झूम  के तन को भी सहला

रही हैं,मन को खूब भा रही हैं,पौधों पर ओस की बूंदें मोती सम सज रही हैं ..

खिली - खिली धूप का उजाला ,मन में नव ऊर्जा भर रहा.है ,

नव दिवस का नव सवेरा मन में उत्साह भर रहा है.

कुछ नव नूतन करने को प्रेरित कर रहा है.

पक्षियों की चहचहाहट कानों.में मधुर संगीत घोल रही हैं ..

प्रकृति भी अपने रहस्य खोल रही है ,

वसुन्धरा पर अपना प्यार लुटा रही है

जीवन का मतलब दे रही है 

प्रकृति ही वसुन्धरा का श्रृंगार 

प्रकृति ही वसुंधरा का आधार 

प्रकृति से बागों में बहार.

वसुन्धरा पर.प्रकृति का संसार  

प्रकृति जीवन का आधार. 

प्रकृति से भरपूर  आनन्द. प्रकृति से समृध् रहे संसार 

प्रकृति जीवन का आधार....



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