कमला तो क्या बंसती मेरी नंद रुपा तन और मन दोनों में सुन्दर है ...पढने में बहुत तेज है वो ...
कमला ....: ऐसी बात नहीं है बंसती ...उम्र का तकाजा है ..थोङी गर्म मिजाज है ....
राजेश:- कौन गर्म मिजाज है चलो लड्डू खाओ और मुंह मीठा करो ....
विश्राम यानि मन को आराम.. प्रारम्भ एक नई ऊर्जा के साथ
हलचल मचा दे एक ऐसा आगाज... फिर जो सजे साज हो सबके दिलों की आवाज...
#अक्सर दुआओं में कहता है यह मन थोङा आप मुस्कराओ थोङा हम मुस्कराये एक दूजे शुभचिंतक बन जाये ऊपर वाले ने भेजा है देकर जीवन
फिर क्यों ना पुष्पों सा जीवन बिताएं हम
फलदार वृक्ष बन जायें हम नदियों का जल बन जायें हम .. आंगन की शोभा बन बागों की रौनक बढायें हम
हवाओं में घुल- मिल सुगन्धित संसार कर जायें हम
अक्सर दुआओं में मागता है यह मन
खुशियों से मालामाल रहे सबका जीवन
आप भी मुस्कराये हम भी मुस्करायें
बागों में फिर से बहार आये जीने की अदा सबको सिखाये
बगीचों की शोभा बन हर एक के चेहरे
पर रौनक ले आये हम खुश रहें आप
लोग क्या कहेगें इस बारे में सोच- सोचकर अपना समय ना व्यर्थ करें लोग तो कुछ नहीं करोगे तो भी कहेगें और कुछ करोगे तो भी कहेगें ... जिन्दगी आपकी है सोचना आपको है अपने को केन्द्र में रख कर ...
लोग तो कहेगें लोगों का आम है कहना ..किसी भी व्यक्ति का जीवन ऊसकी स्वयं की धरोहर है ...तो कहेंगे लोगों के काम है कहना ,किसी भी व्यक्ति का जीवन उसकी स्वयं की धरोहर है ,अपनी इस अनमोल जिन्दग में खुशियों के सुन्दर सतरंगी रंग भरे ,उदास ,अभावों का दर्द छलकाते रंगों वाली बेरंग तस्वीर किसी को नहीं भाती ,अतः अपने जीवन को सदैव इंद्रधनुषी रंगों को सुन्दर छवि दें । *यूं ही बे वजह मुस्कराया करो माहौल को खुशनुमा बनाया करो *
यानि हर पल जीवन का उत्सव मनाते रहें । बुरे और नकारात्मक विचारों से स्वयं को बचाएं जिस प्रकार धूल गंदगी मैले वस्त्रों को हम दिन-प्रतिदिन बदलते हैं ,उसी प्रकार समाज में फ़ैल रही नकारात्मक प्रवृतियों को स्वयं को बचाते हुए उस दिव्य शक्ति परमात्मा का नित्य स्मरण करते हुए,परमात्मा से दिव्यता का वरदान प्राप्त करते रहें । व्यर्थ की चिन्ता से स्वयं को बचाएं जीवन में उतार -चढाव तो आते रहेंगे जीवन में निरसता को स्थान नए दें । प्रत्येक दिन एक नई शुरुआत करें ।
एक महत्वपूर्ण सत्य,अपने जीवन में हर कोई सुख-शांति और खुशियां चाहता है ,अगर किसी कारण वश आप खुश नहीं है आप शान्ति का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं तो खुशियों के पीछे भागिये मत,क्योंकि जीतना हम किसी को पाने के लिए भागते हैं, वह चीज हमसे और दूर जाती रहती है। अतः जिस चीज की चाह आपको अपनी जिन्दगी में है ,उसे बांटना सीख लीजिए यकीन मानिए जितना आप खुशियां बांटेंगे उतनी आपकी जिन्दगी में खुशियां बडेंगी ,कभी किसी भूखे को खाना खिलाकर देखिए ,कभी किसी रोते को हंसा कर देखिए ,आपको सच्ची खुशियों की सौगात मिलेगी ,बेसहारों का सहारा बनकर देखिए जीवन में अद्भुत शान्ति का अनुभव होगा
किसी निराश हताश के मन में आशा के दीप जलाकर उसे आगे बढ़ ने के लिए प्रेरित कीजिए
दिखायेगा अमुक व्यक्ति के दिल से निकली दुआएं आपका जीवन सफल बना देंगी।
* तो चलिए आइए जीवन को बेहतरीन से बेहतरीन ढंग से जिएं*
*आओ हर दिन हर पल को एक उत्सव की तरह जिएं जीवन में नित नए आशा के दीप जलाये* अपने संग औरों के घर भी रोशन कर आएं ,उम्मीद की नयी किरणों से जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलायें ,आओ हर दिन प्रेम के रंगों का त्यौहार मनाएं दिलों में परस्पर प्रेम और अपनत्व की फसल उगाये**
बडे़ भाग मानुष तन पाया* फिर क्यों ना जीवन में हर दिन हर पल उत्सव मनाएं *जीवन जीना भी एक कला है*
समयानुसार मौसम भी बदलता है,तब भी तो मनुष्य परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालता है और स्वयं की रक्षा करता है। ठीक उसी तरह जीवन में भी उतार -चढाव आते हैं ,बजाय परिस्थितियों का रोना रोने की उन विषम परिस्थितियों से बाहर निकलने की कला सीखें ,जिससे आपका जीवन अन्य मनुष्यों के लिए भी प्रेरणास्पद बन जाएं और आप स्वयं के जीवन में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकें ।परिस्थितियां तो परीक्षाओं के समान है
कहते हैं कई लाख योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है , समस्त प्राणियों में मनुष्य जीवन ही श्रेष्ठ है,क्योंकि मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो अपनी बुद्धि ,विवेक के द्वारा धरती पर बडे़ - बडे़ अविष्कार कर सकता है ,चाहे तो अपने कर्मों द्वारा धरती को स्वर्ग बना सकता है ,चाहे तो नर्क ,परमात्मा ने यह धरती मनुष्यों के रहने के लिए प्रदान की,मनुष्यों को चाहिए की वह इस धरती को स्वर्ग से भी सुन्दर बनाएं ।
परमात्मा द्वारा प्रदत प्रकृति की अनमोल संपदाएं , जल स्रोत,सुन्दर प्रकृति वृक्षों पर लगने वाले फल,फूल हरे -भरे खेतों में उगते अनाज विशाल पर्वत श्रृंखलाएं आदि अंनत उत्तम व्यवस्था की है, परमात्मा ने इस धरती पर मनुष्यों के जीविकोपार्जन के लिए, किन्तु मनुष्यों ने अपने स्वार्थ में अंधा होकर इस धरती का हाल बुरा कर दिया है,संभालो मनुष्यों यह धरती तुम मनुष्यों के लिए ही है, इसे संवारो , बिगाड़ो नहीं ,अभी भी समय है धरती पर प्राप्त प्राणवायु में जहर मत घोलो ।
प्रत्येक दिन को एक उत्सव की तरह मनाओं क्योंकि प्रत्येक नया दिन एक नए जन्म जैसा होता है ,जन्म के साथ प्रत्येक मनुष्य अपनी मृत्यु की तारीख भी लिखवा कर आया है जो एक कड़वा सत्य है। तो फिर क्यों ना धरती पर प्राप्त इस मनुष्य जीवन का सदुपयोग करें ,अपने जीवन को सार्थक बनाएं। क्यों ना धरती पर कुछ ऐसा कर जाएं जिससे स्वयं का और समाज के भला हो और हमारा जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक बन जाए ।
परस्पर प्रेम और अपनत्व की फसल उगाये**
क्यों ना बस अच्छा ही सोचें *
अच्छों की दुनिया अच्छी ही होती है ऐसा नहीं की
मुश्किलें नहीं आती परंतु अच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है।
जो सच्चा होता है वो सरल होता है निर्मल होता है और हल्का होता है ।
आओ हर दिन एक उत्सव की तरह मनाएं ,जीवन में नित नए आशा के दीप जलाएं उम्मीद की किरणों से जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलाएं। हे मानव तुम अपने आत्मबल को कभी कमजोर नहीं होने देना आत्मशक्ति मनुष्य का सबसे बड़ा धन है। जीवन में भले ही धन-दौलत नष्ट हो जाए लेकिन अगर आपके पास शिक्षा धन और आत्मविश्वास एवम् आत्मबल की शक्ति है तो आपके पास आपके जीवन में सब कुछ प्राप्त है अतः आत्म शक्ति को कभीकमजोर नहीं होने देना यही है जीवन का सबसे बड़ा गहना।
आंखों को सिर्फ अच्छा देखने की आदत डालें
मन को सिर्फ अच्छा सोचने की आदत डालें"
" माना की दुनियां में बुराई भी बहुत है
और गन्दगी भी बहुत है ।
तो इसका मतलब क्या ? हम बुराई छल-कपट के बारे में सोच -सोच कर अपने मन में नाकारात्मक विचार भर लें और अच्छाई में भी बुराई ढूंढ -ढूंढ कर सब ओर बुराई ही देखने लग जायें , और बहर का सारा कूड़ा और बुराईयों को अपने अन्दर भर लें ?
जी नहीं यहां हमें अपनी सोच और अपनी नजरों को साफ रखना होगा।
बदलनी होगी यहां हमें अपनी सोच , अपनी सोच और अपनी नजरों को इतना अच्छा कर लें कि बाहर की बुराईयों से आप बच कर निकल जायें और वो आपके मन मस्तिष्क में अपना नाकारात्मक प्रभाव डालने में असफल हो जायें ।
अपनी सोच और अपने विचारों को को इतना साकारात्मक और पवित्र कर लिजिए कि, आप बुराई यों के कारण जान उनके निवारण का हल निकाल उनमें साकारात्मक परिवर्तन ला पायें।
नज़रों का खेल है सारा
दुनियां में अच्छाई भी है
बुराई भी , किन्तु मनुष्य की
विडम्बना तो देखो .
कुछ बुरा या ग़लत क्या देख लिया
वह हर चीज में बुराई ढूंढने लगता है
अनेकों खूबियों के बावजूद
एक बुराई ग़लत सोचने को विवश
कर देती है ।
बुराई ,गन्दगी या छल-कपट कहीं बाहर होता है
या यूं कहिए किसी और की होती है
और मनुष्य को तो देखो उस बुराई के
बारे में सोच सोच कर मनुष्य अपना मन मस्तिष्क ही
गन्दा कर लेता है या यूं कहिए बाहर की गन्दगी अपने अन्दर भर लेता है ।
सत्यम शिवम सुन्दरम सत्य पर मुखौटे लगाना आपना अस्तित्व मिटाना जैसे है
हम सरल हैं सरल ही रहने दो ,चालाकियों का झूठा मुखौटा पहन
अपनी वास्तविकता छिपा स्वयं को कुरूप नहीं बनाना
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