परिचय मेरा बस यही
निशब्द, शब्दों की सुनहरी भाषा
छोटी सी डिबिया में बङी अभिलाषा
खुलते ही डिबिया निकले बङी -बङी आशा
निशब्द, शब्दों की सुनहरी भाषा
कही पर अनकही ... मौन फिर भी ...
बहुत कुछ कहती अद्भुत अभिलाषा
गति सीमित, उङान भरती..फिर थम जाती
फिर उङान भरती... दिन- प्रतिदिन उङान
विकसित करती ...जानने को सारा जहां ..
विस्मित, अचंभित, अद्भुत, अकल्पनीय
परिचय से दिव्यता को धारण करती
निशब्द, शब्दों की सुनहरी भाषा.
सीमित गतिविधियों में अद्भुत गतिमान
अपनी उङान भरती मन की आशा
संकल्पों से सिद्ध करती ,ज्ञान, विज्ञान के रहस्यों
पर अपनी पैनी नजर से ,अद्भूत चमत्कार करती
दिव्य भाषा ..मन के भीतर की आलौकिक भाषा ...
भाषा जो कुछ ना कहकर भी कह जाती मन की आशा
निशब्द, शब्दों की सुनहरी भाषा ...
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