Skip to main content

धरती से आकाश तक का सफ़र चंद्रयान- 3

 परिचय... पात्र... बेटा नाम आकाश... पिताजी अवनीश कुमार... मां आरती देवी....

बेटा ....मां से मै बङा होकर वैज्ञानिक बनूँगा ... और चांद पर जाऊंगा ...

मां ...मेरा प्यारा बेटा .... तुम्हें बहुत सारा आशीर्वाद...पहले तुम  भोजन तो कर लो ...तभी तो होशियार  बनोगे .... 

बेटा नाम आकाश....  खाने से होशियार  ....मां काम को ध्यान  से करूंगा तब उस चीज की बारीकियां समझूँगा तब होशियार  बनूंगा ....

मां ..नाम  आरती .... बहुत  बङा हो गया है तू ...गाङी भी तभी चलती है जब उसमें पेट्रोल डलता है.... मै जानती हूं मेरा बेटा बहुत  मेहनती और लगनशील है....  तुम्हारी दृढ इच्छा-शक्ति तुम्हे चांद  क्या अंतरिक्ष तक पहुंचायेगी ....

पिता अवनीश.... बेटा तुम  अपने काम पर ध्यान  दो ...तुम्हारी मां तो तुम्हारी मां है ....इसे तो दिन - रात  बस खाना ..खाना ही पता है ...

आकाश...मां बस मेरा बारहवीं का परिक्षा पत्र आ जाये फिर तो मैं श्री हरिकोटा जाऊंगा .... 

मां ..आरती...हां बेटा जरूर जाना ...भगवान  का आशीर्वाद  तो बहुत  जरूरी है ....

अवनीश...अरे भाग्यवान  श्री हरिकोटा मे वैज्ञानिक अनुसंधान है ... जिसका नाम  है इसरो ....हमारे राष्ट्र पति एक एक बी जे अब्दुल कलाम भी वहीं अपने वैज्ञानिक अनुसंधान पूरे करते थे..

आकाश  ....बस मां प्रार्थना करो.की आपका बेटा भी.इसरो का सदस्य बन अपने काम को अंजाम  दे सके ....

आरती ... बेटा  मेरा आशीर्वाद तेरे साथ है ...पर जब तू चांद पर जायेगा ना तो ... वहां देखना.ऐसा.क्या है चांद में कि.जो ...सारे धर्म वाले उसकी पूजा करते हैं ....

आकाश...बस मां बारहवीं में मुझे स्कॉलरशिप मिल जाये ...बिना पैसे के तो चांद  पर जाने का सपना अधूरा रह जायेगा ....

अवनीश...तू चिंता मत कर बेटा तेरा पापा है ना सब ठीक  कर लेगा .....

आकाश...पापा आपने बहुत  कर लिया अब मेरी बारी है ...

अवनीश....सही कहती है तेरी मां तू बहुत बङा हो गया है....

अवनीश...जा बेटा विजयी भव ....

सफर आसान  ना था... रिजल्ट को आये तीन महीने बीत गये ..आकाश के सभी दोस्त अपनी- अपनी मंजिल  की ओर चल दिये, बस आकाश  ही ऐसा था जिसे अपनी मंजिल  का रास्ता अभी नहीं मिला था ... 

आकाश थोड़ा- मायूस हो गया था ... अब उसने तय कर  लिया था ...वो इंजिनियरिंग में अपना भविष्य  बनायेगा ....

आकाश --- पिताजी अब मेरा इरादा बदल गया है .अब मैं इंजिनियर बनूंगा ..

अवनीश... आकाश  बेटा ... थोड़ा इंतजार करो क्या पता ...

आकाश...पापा सब जगह नये सत्र की पढाई  शुरु हो गयी है सब सीटें फुल हैं ....अब मेरे पास  इंजिनियरिंग के अलावा कोई  चारा नहीं बचा है ....

अवनीश  ....अपने बेटे आकाश  के सिर  पर प्यार  भरा हाथ  फेरते हुये .... इस बार  नहीं तो अगली बार  सही ...बेटा आकाश  तुम्हारा सांइसटिस्ट बनने का सपना जरूर पूरा होगा ...

कहते भी हैं ना जहां चाह  वहां राह ....आकाश  के साथ  भी चमत्कार हुआ ...आकाश  को इसरो से काल लेटर  आया ...


आखिर वो दिन आया आकाश की मेहनत और लगन ने आकाश  को इसरो पहुंचा दिया .... आकाश के सपनों को पंख लग गये थे ...

वैज्ञानिकों की बङी भीङ में आकाश  का.आकाश  का योगदान भी कम ना.था ...चंद्रयान -2 के बाद चंद्रयान - 3 की सफलता ने समस्त भारत वासियों का सिर गर्व से ऊंचा कर  दिया ....

भारत  नया इतिहास रच रहा है ...और रचता रहेगा ....आकाश  जैसे हजारों वैज्ञानिक का सपना अब अंतरिक्ष  पर.नयी.दुनियां की खोज करना.था ....जिसमें भारत  के कई होशियार आकाश  शामिल  है 

  

Comments

Popular posts from this blog

खोज मन में उठते भावों की

भावनाओ का सैलाब  खुशियां भी हैं ...आनन्द मंगल भी है शहनाई भी है ,विदाई भी है  जीवन का चक्र यूं ही चलता रहता है  एक के बाद एक गद्दी सम्भाल रहा है... कोई ना कोई  ,,जीवन चक्र है चलते रहना चाहिए  चलो सब ठीक है ..आना -जाना. जाना-आना सब चलता रहता है  और युगों- युगों तक चलता रहेगा ... भावनाएं समुद्र की लहरों की तरह  उछाले मारती रहती हैं ... जाने क्यों चैन से रहने नहीं देती  पर कभी गहरायी से सोचा यह मन क्या है  ?  भावनाओं का अथाह सैलाब  कहां से आया  मन की अद्भुत  हलचल  ,विस्मित, अचंभित अथाह  गहराई भावनाओं की ....कोई शब्द नहीं निशब्द  यह भावनायें हैं क्या ?...कभी तृप्त  नहीं होतीं .... भावनाओं का गहरा सैलाब है क्या ?  और समस्त जीवन केन्द्रित भी भावों पर है ... एक टीस एक आह ! जो कभी पूर्ण नहीं होने देती जीवन को  खोज करो भावों की मन में उठते विचारों के कोलाहल की  क्यों कभी पूर्णता की स्थिति नहीं होती एक चाह पूरी हुई दूसरी तैयार  ....वो एक अथाह समुद्र की .. खोज है मुझे ...भावों के अथाह अनन्त आकाश की ... उस विशाल ज्वालामुखी के हलचल की ...भावों के जवाहरात की ..जो खट्टे भी हैं मीठे भी  सौन्दर्य से पर

खेल बस तू खेल

   """"खेल तू बस खेल  हार भी जीत होगी  जब तुम तन्मयता से खेलोगे" .... खेल में खेल रहे हैं सब  खेल - खेल में खूब तमाशा  छूमंतर  हुई निराशा  मन में जागती एक नई आशा  आशा जिसकी नहीं कोई  भाषा  खेल- खेल में बढता है सौहार्द   आगे की ओर बढते कदमों का एहसास   गिर के फिर उठने की उम्मीद   सब एक दूजे को देते हैं दीद  मन में भर  उत्साह   अपना बेहतर देने की जिज्ञासा  जिसका लगा दांव वो आगे आया  प्रथम ,द्वितीय एक परम्परा जो खेला आगे बढा वो बस जीता  फिर  भी कहती हूं ना कोई  हारा ना कोई  जीता सब विजयी जो आगे बढ़कर  खेले  उम्मीदों को लगाये पंख मन में भरी नव ऊर्जा  प्रोत्साहन की चढी ऊंचाईयां  जीवन यात्रा है बस खेल का नाम  दांव - पेंच जीने के सीखो  जीवन जीना भी एक कला है  माना की उलझा - उलझा सा है सब जिसने उलझन को सुलझाया  जीवन  जीना तो उसी को आया  खेल-खेल में खेल रहे हैं सब  ना कोई हारा ना कोई जीता  विजयी हुआ वो जोआगे बढकर खेला.. मक्सद है जीवन को खेल की भांति जीते रहो   माना की सुख- दुख ,उतार-चढ़ाव का होगा  आना - जाना  ..वही तो है हर  मोङ को पार   कर जाना हंसते मुस्कराते ,गुनगुना

श्रीराम अयोध्या धाम आये

युगो - युगों के बाद हैं आये श्रीराम अयोध्या धाम हैं आये  अयोध्या के राजा राम, रामायण के सीताराम  भक्तों के श्री भगवान  स्वागत में पलके बिछाओ, बंदनवार सजाओ  रंगोली सुन्दर बनाओ, पुष्पों की वर्षा करवाओ.  आरती का थाल सजाओ अनगिन  दीप मन मंदिर जलाओ...दिवाली हंस -हंस मनाओ...  श्रीराम नाम की माला  मानों अमृत का प्याला  राम नाम को जपते जपते  हो गया दिल मतवाला....  एक वो ही है रखवाला  श्री राम सतयुग वाला...  मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम  रामायण के श्री सीता राम  आलौकिक दिव्य निराले  सत्य धर्म पर चलने वाले  सूर्यवंश की धर्म पताका ऊंची लहराने वाले  मर्यादा  से जीवन जीने का  संदेशा देते श्री राम सतयुग वाले  प्राण जाये पर वचन ना जाये  अदभुद सीख सिखाते  मन, वचन, वाणी कर्म से  सत्य मार्ग ही बतलाते....  असत्य पर सत्य की जीत कराने वाले  नमन, नमन नतमस्तक हैं समस्त श्रद्धा वाले...