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महत्वकांक्षा

सुनीता बड़े- बड़े घरों में काम करती थी.. मुंह की मीठी चापलूसी करना उसकी आदत थी-क्यों ना हो आखिर यही सब तो उसके काम आने वाला था--  वो जानती थी---उसका पति इतना कमाता नहीं.. जो कमाता भी है, वो घर - परिवार के खर्चो में निकल जाता था.. आखिर इतनी मंहगाई में चार बच्चों को पालना.. माता -पिता की दवा का खर्चा कुछ खाने-पीने में ही निकल जाता था।  सपने देखने का हक सबको है, माना की हम कम पैसे वाले हैं.. पर शहरों की ऊंची -ऊंची इमारतों का बनाने में हमारी ही मेहनत छीपी होती है। सुनीता को गांव से शहर आये पांच साल हो गये थे, शुरू के कुछ महीने बहुत संघर्ष करना पड़ा सुनीता को.. नये-नये गांव से आये थे, जल्दी से कोई काम पर भी ना रखता था.. किसी तरह सुनीता के पति को मजदूरी का काम मिला... अभी तक तो फुटपात पर दिन बीत रहे थे, किसी की पहचान से किराये के लिए एक झोपड़ी की व्यवस्था हुई। सुनीता साथ - साथ मजदूरी का काम भी करने लग गयी, बच्चे भी दिन भर वहीं मिट्टी में खेलते रहते,पापी पेट का सवाल था, खाना मिल जाये वो ही बहुत था, स्कूल पढाई तो दूर की बात थी। बच्चों को दिन भर मिट्टी में खेलते देख.. आसपास की बिल्डिंग...
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बसंत की बहार

सर्वप्रथम मां शारदे को नमन बसंत पंचमी त्यौहार है, बसंती फुहार का  प्रकृति के नव आगमन का..  ज्ञान की देवी माँ शारदे की उपासना का  जीवन में आगे बढ़ने का..  यह मौसम है प्रकृति के श्रृंगार का..  हमारी प्रकृति इतनी सुन्दर है कि  नील गगन भी पलक नहीं झपकता  एक बार तो नील गगन प्रकृति का सौम्य रुपदेख उस पर मोहित हो गया और लिख डाली  एक कविता - -  निसर्ग के लावण्य पर, व्योम की मंत्रमुग्धता श्रृंगार रस से पूरित ,अम्बर और धरा  दिनकर की रश्मियां और तारामंडल की प्रभा  प्रेम जगत की रीत है, प्रेम मधुर संगीत है  सात सुरों के राग पर प्रेम गाता गीत है प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ  श्रृंगार के दिव्य रस से प्रकृति ने अद्भूत रुप धरा भाव भीतर जगत में प्रेम का अमृत भरा प्रेम से सृष्टि रची है, प्रेम से जग चल रहा प्रेम बिन कल्पना ना,सृष्टि के संचार की  प्रेम ने हमको रचा है, प्रेम में हैं सब यहां  प्रेम की हम सब हैं मूरत प्रेम में हम सब पले  प्रेम के व्यवहार से, जगत रोशन हो रहा प्रेम के सागर में गागर भर-भर जगत है चल रहा प...

जीरो से हीरो तक का सफर

जीरो से हीरो तक का सफर - - जीरो तो वो कभी था ही नहीं,  एक हीरो उसमें हमेशा जीता था।  सपने तो सभी देखते हैं,  लेकिन सपनों का क्या ? उसने भी सपना देखा होगा, नींद खुली तो सपना टूट गया। क्या हुआ, कुछ भी नहीं, सपनों का तो यही हाल होता है, नीद खुली, हकीकत की धरातल पर जब पैर पडे तो सब भूल गये, सपना यादों के किसी पिटारे में बंद हो गया।  हर सपना सच हो जाये सम्भव ही नहीं, मन के ख्यालों की उडान को पकड़ना इतना आसान भी नहीं,  मन के पंख तो सपनों की उड़ान भरेंगे ही, उड़ने दो मन परिंदे को, लौट कर तो यहीं वापिस आना पड़ेगा । लेकिन मन की उड़ान से कोई हीरो तो नहीं बनता,  प्रयासों का सिलसिला जारी रखना पड़ता है, प्रयास कुछ अधूरे कुछ पूरे. सफलता की राह दिखाते पर मंजिल का पता नहीं.. 

प्रेम का अमृत कलश

प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ  सुचिता के श्रृंगार रस को प्रेम ने पूजा कहा    प्रेम में हैं सब यहां, श्रृंगार है सबको प्रिय  प्रेम की मीठी कशिश में ,कशमकश हरपल यहां प्रेम ही सौन्दर्य है , सौन्दर्य हिय भीतर भरा  कलियों की बालियाँ , पुष्पों बना श्रृंगार है  बगिया माली की कोशिशें अनन्त हैं  चाह सबकी है यही हर-पल रहे बसंत है  पुष्प खिलते हो जहां पर, आकर्षण है वहां भरा  मन की सुन्दरता है जो भीतर प्रेम से है जगत भरा-- विरह - मिलन की तपन में, नयन कमल प्रेम अश्रु झर - झर झरा - - अश्रु नहीं यह प्रेम रस है  जो हिय भीतर पड़ा, - -  कर्तव्य पथ पर जो चला - - परदेश का रुख करा  आंगन सूना हो गया, द्वार टकटकी लगी, आंख कब लगी, पता तब लगा, जाग जब थी खुली - -  सूखे नयनों की अब इंतहा हो गयी - - गैय्या खूंटे  बंधी , रम्भाती ना अब कभी..  पनघट अब सखी ना छेड़े मुझे   बरगद की छांव में यादों का सिलसिला चले  लौट तुम जब आओगे दिन गिन-गिन कटे  वक्त इतना बीत गया, गिनती ना गिन सकूं  थक मैं हूँ गयी, हारी प...

प्रेम जगत की रीत है

 निसर्ग के लावण्य पर, व्योम की मंत्रमुग्धता श्रृंगार रस से पूरित ,अम्बर और धरा  दिवाकर की रश्मियां और तारामंडल की प्रभा  धरा के श्रृंगार में समृद्ध मंजरी सहज चारूता प्रेम जगत की रीत है, प्रेम मधुर संगीत है  सात सुरों के राग पर प्रेम गाता गीत है प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ  श्रृंगार के दिव्य रस से प्रकृति ने अद्भूत रुप धरा भाव भीतर जगत में प्रेम का अमृत भरा प्रेम से सृष्टि रची है, प्रेम से जग चल रहा प्रेम बिन कल्पना ना,सृष्टि के संचार की  प्रेम ने हमको रचा है, प्रेम में हैं सब यहां  प्रेम की हम सब हैं मूरत प्रेम में हम सब पले  प्रेम के व्यवहार से, जगत रोशन हो रहा प्रेम के सागर में गागर भर-भर जगत है चल रहा प्रेम के रुप अनेक,प्रेम में श्रृंगार का  महत्व है सबसे बड़ा - श्रृंगार ही सौन्दर्य है -  सौन्दर्य पर हर कोई फिदा - - नयन कमल,  मचलती झील, अधर गुलाब अमृत रस बरसे  उलझती जुल्फें, मानों काली घटायें, पतली करघनी  मानों विचरती हों अप्सराएँ...  उफ्फ यह अदायें दिल को रिझायें  प्रेम का ना अंत है प्रेम तो अन...
 हथौड़ा भी कहां चैन से सोता है  मार - मार के चोट वो भी तो रोता है ।  निसर्ग के लावण्य पर, व्योम की मंत्रमुग्धता श्रृंगार रस से पूरित ,अम्बर और धरा  दिवाकर की रश्मियां और तारामंडल की प्रभा  धरा के श्रृंगार में समृद्ध मंजरी सहज चारूता। प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ  श्रृंगार के दिव्य रस से प्रकृति ने अद्भूत रुप धरा भाव भीतर जगत में प्रेम का अमृत भरा प्रेम से सृष्टि रची है, प्रेम से जग चल रहा। https://rituasoojarishikesh.blogspot.com/2025/01/blog-post_15.html

यादें बिन बुलायी मेहमान होती हैं

भूलने की आदत है अक्सर मेरी  पर कुछ यादें भूलने पर भी याद  रह जाती हैं - - क्या इत्तेफाक है  जो याद रखना चाहता हूं वो याद  नहीं रहता,जो याद नहीं रखना चाहता  वो हमेशा याद रहता है।  यादें बिन बुलाये मेहमान की तरह अक्सर दस्तक दे जाती हैं - - -  दबे पांव वो मेरे घर में चली आती है  आंगन में वो हवा के झोंकें सी बिखर जाती है।  फिर इतराकर खूशबू ए बहार बन ठहर जाती है।  वो ना होकर भी अपने होने का एहसास दिलाती है।  अपनी यादों को ना मुझसे जुदा होने देती है  उसकी यादों से मेरे सांसों की गति चलती है।  मैं निकल जाता हूँ, दूर कहीं दिल बहलाने को  दबे पांव वो मेरे पीछे चली आती है,    मेरी यादें ही मेरी हमसफर बनकर   मेरा साथ सदा निभाती हैं।    दिल बहल जाता है, बीती यादों पर मुस्करा लेता हूं  वो भी क्या दिन थे, सोच खुश हो जाता हूँ।