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शौक अपने - अपने

शौक अपने - अपने  सपने अपने - अपने जीने के ढंग अपने-अपने  सोच अपनी -अपनी कहानी अपनी-अपनी  उड़ान अपनी-अपनी  मेहनत अपनी-अपनी  दायरे अपने-अपने  इरादे अपने - अपने  तराने अपने - अपने  बहाने अपने - अपने निशाने अपने - अपने पसंद अपनी-अपनी खुशी अपनी - अपनी अफसाने अपने-अपने  फितरत अपनी-अपनी  क्यों ना हों,आखिर जिन्दगी है सबकी अपनी अपनी  जिन्दगानी अपनी-अपनी  जीने के ढंग अपने-अपने  भरने हैं पसंद के रंग अपने-अपने।। 
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देव दीपावली

देव दीपावली  धरती अम्बर से जगमगाते सितारों सी खिली    ईगास... पहाड़ी इलाकों का दीपोत्सव..  श्री राम सीता एवं लक्ष्मण आगमन की खबर जो शहरी इलाकों की अपेक्षा पहाड़  इलाकों में कुछ दिन बाद मिली.. विषेशतया उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में इसे ईगास.. बूढी होती दीपावली कहकर सम्बोधित करते हुये दीपावली का त्यौहार मनाया गया..और यह परम्परा तभी से मनायी जाती है।   

अल्हड़ मन

अल्हड़ मन की आस, मन ना पाये विश्राम  राह निहारे सर्वदा, नयनों से झलकती नर्मदा।।  दीदार नयन होता रहे, प्रेम को अनकहा करे  कसक मन की ना थमें , दिल कहीं भी ना रमें अल्हड़ मन चंचल चपल, निष्ठुर बेमानी  सजाता सपनों की कहानी, करे सदा मनमानी।।  प्रेम परिभाषित करुं, निर्मल मन की कसक  प्रेम में समर्पण, ज्यों भीतर करे देवत्व दर्शन।।  प्रेम जीवन उपसंहार, प्रेम जीवन का सारांश  प्रेम को भटके सभी, प्रेम को तरसे सभी।।  प्रेम मन की मीठी ठसक, अनकही सी कसक  प्रेम मर्यादा में बंधी,  लक्ष्मण रेखा ना भटक।।  सरल मासूम बालक, सा मन  करता नादानी  बन पंछी भरता उडान, मन ज्ञानी भ्रम अज्ञानी  ।। 

भाव समुंद्र प्रेम रत्न

प्रेम मन का सौन्दर्य है, दिव्यता का शौर्य है  ह्रदय का श्रृंगार है, रसमय व्यवहार है।  प्रेम आत्म रत्न धन, प्रसन्न ह्रदय आनन्दित मन प्रेम की ना कोई जाति, प्रेम सत्य धर्म प्रजाति।।  क्यों कहे प्रेम व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है  प्रेम अद्वितीय रत्न, प्रेम दिव्य मन भाव भाव समुद्र प्रेम रत्न, कुटिलताओं में नजरबंद  कुचल कर कोमल प्रेम पंख, नीम का लेपन चढा. मूर्च्छित मन कराह रहा, नेत्र अश्रु बहा रहा  भीतर प्रेम उद्गार है...  बाह्य भय कारावास  तोड़ के सब बेड़ियाँ, प्रेम का इकरार हो  क्यों कहे सब व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है  प्रेम से संसार है, प्रेम ही व्यवहार है  प्रेम ही सद्भावना, प्रेम ही अराधना  प्रेम ही जीवन आधार है..  प्रेम में रचा-बसा संसार है  प्रेम में देह नहीं, प्रेम एक जज्बात देह का अंत है, प्रेम तो अंनत है  प्रेम के वृक्ष पर रहता सदा बसंत है। 

अनोखा प्यार

  अनोखा प्यार *     *आव्यशक नहीं जो सामने है वो सत्य ही है किसी भी फल की पहचान ऊपरी परत हटाने पर ही पता चलती है *           यार तू रहने दे ,मैं इस दुनियां में अकेला था ,और अकेला ही ठीक हूं मेरा इस दुनियां में कोई नहीं।    मेरी मां तो पहले ही इस दुनियां से चली गई थी और मेरा पिता वो तो जीते जी ही मेरे लिये बहुत पहले ही  मर गया था । जब मैं आठ साल का था मेरे बाप को शौंक चड़ा था मुझे तैराकी सिखाने का ...... क्या कोई पिता अपने बच्चे को ऐसी तैराकी सिखाता है , धकेल दे दिया था मुझे स्विमिंग पुल में और छोड़ दिया था अकेला मरने के लिए,मैं चिल्ला रहा था पापा मुझे निकालो मैं मर जाऊंगा मुझे तैरना नहीं आता है पर मेरा पापा टस से मस नहीं हुआ ,आखिर दस मिनट बाद बहुत मशक्त करने के बाद मैंने हाथ -पैर मार के तैरना ही सीख लिया।   वैभव बोला हां और आज तू तैराकी चैंपियन भी है और कई अवार्ड भी ले चुका है,जानता है इसके पीछे कौन है ,तेरे पिताजी अगर उस दिन तेरे पिताजी तुझे अकेला ना छोड़ते तो तू आज तैरना ना सीख पाता और इतना बड़ा चैंपियन ना बनता ।  अरे विशिष्ट अपनी आंखो से देख, अपने चाचा की बनाई बातों की झुठी पट्टी हटा

लोग मुझे कहते हैं जोकर

लोग मुझे कहते हैं जोकर  गुजारें हैं बहुत पल रो-रोकर  खाकर बहुत सी ठोकर.. बहुत घायल हुआ हूं-- सम्भला हूं...  अब मन कहता.. है!  खुशी है तेरी जो करना है, वो कर!  पाने को खुशी, रोया नयन धो-धोकर - -  अब खुशियों के पीछे नहीं भागता -- खुशीयां मेरे संग रहती हैं  लोग मुझे कहने लगे हैं जोकर-- मेरा मन कहता है - -  तू जो कर वो कर-- मन में जो आये-- वोकर - -  अब जो मन में आता है मैं वो करता हूं  खोकर सब कुछ पा गया हूं बहुत कुछ  कहता हूं - मन तू जो- कर - वो कर.. फिर चाहे  कोई कहे तुझे लाख जोकर...  खाकर अनगिन ठोकर बन गया हूं जोकर.. खुश हूं - -  लोगों को हंसने के बहाने देता हूं - -  कयूं कर गुजारुं जीवन रोकर  अब कहता हूं मन तू जो करना है वो कर  कहने दे जमाना जो कहे तुझे जो जोकर  तुझसे है जमाना, जमाना से तू नहीं  तेरा वजूद है तेरी शक्सियत -  तू खुशकिस्मत है, तेरी साफ है नियत  अब मैं बेफिक्र मुस्कराता हूं, हर दर्द मुस्कराहट में छिपाता हूं  दर्दों ने मेरा साथ कभी ना छोड़ा  मैने दर्दों को अपना बना लिया  मैने उन्हें भी बेवजह मुस्कराना सिखा दिया ।   

चलती रेल

चलती रेल  अद्भुत मेल बढे लोकाचार  समाजिक व्यवहार  यात्री सवार  आवश्यकता आधार  सुहानी डगर  ताके इधर- उधर  मंजिल किधर   अन्जाना सफर  जीवन सरक संसार आनंद प्रकृति देवानंद  सुर उपजे  गाते गीत  दिल पीर  ख्वाब जंजीर  मन अधीर  नामुमकिन मनमीत  आशा  दीद  चक्षु नीर  मुख प्रसन्न  दिल पीर  अद्भुत कला  बाहर आकर्षण  भीतर जंजाल  भाव कोलाहल  सविकृत सत्य  मन भेद  जीवन संक्षेप  तालमेल  सब खेल   चलती जीवन रेल  यात्री सवार  सफर यादगार  कर इकरार  ना इंकार  कर्म आधार जीवन सार...