विजयदशमी- विजय की दशमी त्रेता युग में आज ही के दिन श्रीराम ने अत्याचारी,अंहकार रावण को मार बुराई का अंत किया था... तभी से आज ही के दिन अश्विनी मास की कृष्ण पक्ष की दशमी को.... दस सिरों वाले राक्षस रावण को मारने की परम्परा चली आ रही है.... रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण के पुतले तो हर वर्ष जलाये जाते हैं जलाने वालों में वो लोग शामिल होते है जिनके मनों में स्वयं असंख्य रावण रुपी विकार घर बनाये बैठे होते हैं..... अब आवश्यकता है, मन में पल रहे लोभ इर्ष्या,द्वेष, अंहकार रुपी विकारों के रावणों को मारने की..... हर वर्ष पुतले जलाकर पर्व मनाना स्वयं को याद दिलाना मनाना अच्छी बात है.. खुशी तब होगी जब मन के विकार रुपी रावणों का अंत होगा....
आकर्षण* मेरे मित्र के अनुभव और मेरे शब्द... मेरे मित्र ने अपने कुछ अनुभव मेरे साथ साझा किये.... जिन्हें मैं अपने शब्दों के माध्यम से साझा कर रही हूँ.... यह फितरत है मनुष्य की....अधिकांशतया मनुष्यों को बाहर की दुनियां आकर्षित करती है, मन को आकर्षण भाता है....... भागता है, मनुष्य बाहर की ओर....... जाने क्या पाता है.. जाने कितनी खुशी मिलती है.... जाने वो खुशी मिलती भी है की नहीं..... जिसे पाने के लिए वह अपना घर - परिवार छोड़..... बाहर निकलता है..... या फिर जीवन पर्यंत संघर्ष ही करता रहता है....... मन ही मन सोचता है...... अपना घर तो अपना ही होता है...... जो सूकून जो सुख-चैन आराम अपने घर में है..... वो कहीं नहीं..... जाने कहां जा रहे हैं सब मंजिल कहीं ओर है, रास्ते कहीं ओर जान -बूझकर मंजिल से हटकर अन्जानी राहों पर चल रहे हैं लोग, सब अच्छा देखना चाहते हैं सब अच्छा सुनना चाहते हैं अच्छाई ही दिल को भाती भी है, अच्छाई पाकर गदगद भी होते हैं सब..भीतर सब अच्छाई ही चाहते हैं, फिर ना जाने क्यों भाग रहें हैं ,बिन सोचे समझे अंधों की तरह भेङ चाल की तरह ,जहां जमाना जा रहा है हमारी समझ की ऐसी की तैस