सूक्ति बनों जीवन की ऐसी हठ,निंदा ईर्ष्या मानों अपराध त्याज्य हो व्यर्थ पदार्थ आवयशकता बनो एसे किसी की तन लागे औषधि जैसी व्याधि पीड़ा बन उपचार उपकारी जीवन सद्व्यवहार दुरूपयोग ना कर पाये कोई उपयोगी समझ पूजे प्रत्येक इस सृष्टि में है रंग अनेक पर रंग लहू का सबका एक फिर काहे का रंग भेद सूक्ति एक जीवन में यह भी अपनाओ रंग भेदभाव का भेद मिटाओ। परस्पर प्रेम की फसल उगाओ।
अनुगामी हूं सत्य पथ का अर्जुन सा लक्ष्य रखता हूं माना की है संसार समुंदर तथापि मुझे सरिता ही बनना है गंगाजल सम अमृत बनकर जनकल्याण ही करना है। अनुसरण करुं प्रकृति का मैं तो व्यग्र तनिक ना अंधड़ से होना है। कल्प तरु सम उन्नत बनकर हर क्षण प्रफुल्लित रहकर परहित करना है। अनुगामी हूं श्रीराम राज का मर्यादा का अनुसरण करना है। पथगामी हूं साकारात्मकता का नाकारात्मकता में नहीं उलझना है।