Skip to main content

Posts

भाव समुंद्र प्रेम रत्न

प्रेम आत्म रत्न धन, प्रसन्न ह्रदय आनन्दित मन प्रेम की ना कोई जाति, प्रेम सत्य धर्म प्रजाति।।  क्यों कहे प्रेम व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है  प्रेम आत्म रत्न, प्रेम दिव्य मन भाव भाव समुद्र प्रेम रत्न, सालाखों में नजरबंद  कुचल कर कोमल प्रेम पंख, नीम का लेपन चढा. मूर्च्छित मन कराह रहा, नेत्र अश्रु बहा रहा  भीतर प्रेम उद्गार है...  बाह्य भय कारावास  तोड़ के सब बेड़ियाँ, प्रेम का इकरार हो  क्यों कहे सब व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है  प्रेम से संसार है, प्रेम ही व्यवहार है  प्रेम ही सद्भावना, प्रेम ही अराधना
Recent posts

अनोखा प्यार

  अनोखा प्यार *     *आव्यशक नहीं जो सामने है वो सत्य ही है किसी भी फल की पहचान ऊपरी परत हटाने पर ही पता चलती है *           यार तू रहने दे ,मैं इस दुनियां में अकेला था ,और अकेला ही ठीक हूं मेरा इस दुनियां में कोई नहीं।    मेरी मां तो पहले ही इस दुनियां से चली गई थी और मेरा पिता वो तो जीते जी ही मेरे लिये बहुत पहले ही  मर गया था । जब मैं आठ साल का था मेरे बाप को शौंक चड़ा था मुझे तैराकी सिखाने का ...... क्या कोई पिता अपने बच्चे को ऐसी तैराकी सिखाता है , धकेल दे दिया था मुझे स्विमिंग पुल में और छोड़ दिया था अकेला मरने के लिए,मैं चिल्ला रहा था पापा मुझे निकालो मैं मर जाऊंगा मुझे तैरना नहीं आता है पर मेरा पापा टस से मस नहीं हुआ ,आखिर दस मिनट बाद बहुत मशक्त करने के बाद मैंने हाथ -पैर मार के तैरना ही सीख लिया।   वैभव बोला हां और आज तू तैराकी चैंपियन भी है और कई अवार्ड भी ले चुका है,जानता है इसके पीछे कौन है ,तेरे पिताजी अगर उस दिन तेरे पिताजी तुझे अकेला ना छोड़ते तो तू आज तैरना ना सीख पाता और इतना बड़ा चैंपियन ना बनता ।  अरे विशिष्ट अपनी आंखो से देख, अपने चाचा की बनाई बातों की झुठी पट्टी हटा

अल्हड़ मन

 दीदार नयन होता रहे, प्रेम को अनकहा करे  कसक मन की ना थमें , दिल कहीं भी ना रमें अल्हड़ मन चंचल चपल, निष्ठुर बेमानी  सजाता सपनों की कहानी, करे सदा मनमानी।।  प्रेम परिभाषित करुं, निर्मल मन की कसक  प्रेम में समर्पण, ज्यों भीतर करे देवत्व दर्शन।।  प्रेम जीवन उपसंहार, प्रेम जीवन का सारांश  प्रेम को भटके सभी, प्रेम को तरसे सभी।।  प्रेम मन की मीठी ठसक, अनकही सी कसक  प्रेम मर्यादा में बंधी,  लक्ष्मण रेखा ना भटक।।  सरल मासूम बालक, सा मन  करता नादानी  बन पंछी भरता उडान, मन ज्ञानी भ्रम अज्ञानी  ।। 

चलती रेल

चलती रेल  अद्भुत मेल बढे लोकाचार  समाजिक व्यवहार  यात्री सवार  आवश्यकता आधार  सुहानी डगर  ताके इधर- उधर  मंजिल किधर   अन्जाना सफर  जीवन सरक संसार आनंद प्रकृति देवानंद  सुर उपजे  गाते गीत  दिल पीर  ख्वाब जंजीर  मन अधीर  नामुमकिन मनमीत  आशा  दीद  चक्षु नीर  मुख प्रसन्न  दिल पीर  अद्भुत कला  बाहर आकर्षण  भीतर जंजाल  भाव कोलाहल  सविकृत सत्य  मन भेद  जीवन संक्षेप  तालमेल  सब खेल   चलती जीवन रेल  यात्री सवार  सफर यादगार  कर इकरार  ना इंकार  कर्म आधार जीवन सार... 

दोस्ती करोगे मुझसे

  दोस्ती करोगे मुझसे .... चलो कर ही लो... कभी घाटा नहीं होगा... फायदे में ही रहोगे.... जब कभी मन उदास हो, हताश हो... निराश हो....चले आना मेरे पास... मैं हल दूंगी ...  उदास मन में उम्मीद की नयी किरण जगा दूंगी ..... सब दुविधाओं का हल है मेरे पास....साकारात्मक विचारों का अद्भुत भंडार है....  जीवन के अनुभवों के आधार पर... मुझमें जीवन जीने की कला की अलौकिक सीखें हैं.... जिसमें परमात्मा की दिव्यता का प्रकाश है... मैं जीतना सिखाती हूं.... आगे की बढने के रहस्य बताती हूँ.....  हां मैं साकारात्मक विचारधारा आपकी हमसफर  बनने के काबिल हूं.... मैं वादा करती हूं.... मैनै  दोस्ती का हाथ बढाया है.... मेरी तरफ से दोस्ती पक्की है.... सोचना आपको है.... क्या मुझ किताब से दोस्ती करोगे......    दोस्ती को कभी हल्के में मत लेना...... दोस्ती हर रिश्ते से ऊपर होती है... दोस्ती फायदे या नुकसान के लिए नहीं होती.... दोस्ती दो दिलों की आवाज... आत्मा का आत्मा से सम्बंध होती है। दोस्ती फरिश्तों की नियामत होती है।  ।  अपने हिस्से की जमीन अपने हिस्से का आसमान स्वयं बनाना पडता है....  लक्ष्य पर पैनी नजर..मुश्किलों की डगर

विजय की दशमी

 विजयदशमी- विजय की दशमी  त्रेता युग में आज ही के दिन श्रीराम  ने अत्याचारी,अंहकार रावण को मार  बुराई का अंत किया था...  तभी से आज ही के दिन अश्विनी मास की   कृष्ण पक्ष की दशमी को....  दस सिरों वाले राक्षस रावण को मारने की  परम्परा चली आ रही है.... रावण, मेघनाद,  कुम्भकर्ण के पुतले तो हर वर्ष जलाये जाते हैं  जलाने वालों में वो लोग शामिल होते है  जिनके मनों में स्वयं असंख्य रावण रुपी  विकार घर बनाये बैठे होते हैं..... अब  आवश्यकता है, मन में पल रहे लोभ  इर्ष्या,द्वेष, अंहकार रुपी विकारों के रावणों को मारने की.....  हर वर्ष पुतले जलाकर पर्व मनाना स्वयं को याद दिलाना मनाना अच्छी बात है..  खुशी तब होगी जब मन के विकार रुपी रावणों का अंत होगा....   

आकर्षण

  आकर्षण* मेरे मित्र के अनुभव और मेरे शब्द...  मेरे मित्र ने अपने कुछ अनुभव मेरे साथ साझा किये.... जिन्हें मैं अपने शब्दों के माध्यम से साझा कर रही हूँ....  यह फितरत है मनुष्य की....अधिकांशतया मनुष्यों को बाहर की दुनियां आकर्षित करती है, मन को आकर्षण भाता है....... भागता है, मनुष्य बाहर की ओर....... जाने क्या पाता है.. जाने कितनी खुशी मिलती है.... जाने वो खुशी मिलती भी है की नहीं..... जिसे पाने के लिए वह अपना घर - परिवार छोड़..... बाहर निकलता है..... या फिर जीवन पर्यंत संघर्ष ही करता रहता है....... मन ही मन सोचता है...... अपना घर तो अपना ही  होता है...... जो सूकून जो सुख-चैन आराम अपने घर में है..... वो कहीं नहीं..... जाने कहां जा रहे हैं सब मंजिल कहीं ओर है, रास्ते कहीं ओर जान -बूझकर मंजिल से हटकर अन्जानी राहों पर चल रहे हैं लोग, सब अच्छा देखना चाहते हैं सब अच्छा सुनना चाहते हैं अच्छाई ही दिल को भाती भी है, अच्छाई पाकर गदगद भी होते हैं सब..भीतर सब अच्छाई ही चाहते हैं, फिर ना जाने क्यों भाग रहें हैं ,बिन सोचे समझे अंधों की तरह भेङ चाल की तरह ,जहां जमाना जा रहा है हमारी समझ की ऐसी की तैस