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सूक्ति

सूक्ति बनों जीवन की ऐसी   हठ,निंदा ईर्ष्या मानों अपराध  त्याज्य हो व्यर्थ पदार्थ  आवयशकता बनो एसे किसी की   तन लागे औषधि जैसी व्याधि पीड़ा बन उपचार  उपकारी जीवन सद्व्यवहार  दुरूपयोग ना कर पाये कोई  उपयोगी समझ पूजे प्रत्येक  इस सृष्टि में है रंग अनेक  पर रंग लहू का सबका एक  फिर काहे का रंग भेद  सूक्ति एक जीवन में यह भी अपनाओ  रंग भेदभाव का भेद मिटाओ।  परस्पर प्रेम की फसल उगाओ। 
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अनुगामी

अनुगामी हूं सत्य पथ का  अर्जुन सा लक्ष्य रखता हूं  माना की है संसार समुंदर  तथापि मुझे सरिता ही बनना है  गंगाजल सम अमृत बनकर  जनकल्याण ही करना है।  अनुसरण करुं प्रकृति का मैं तो  व्यग्र तनिक ना अंधड़ से होना है।  कल्प तरु सम उन्नत बनकर  हर क्षण प्रफुल्लित रहकर परहित करना है।  अनुगामी हूं श्रीराम राज का  मर्यादा का अनुसरण करना है।  पथगामी हूं साकारात्मकता का  नाकारात्मकता में नहीं उलझना है।    
हिय पयिस्वनी एक आग धधकती  लहरे तट आकर मचलती  जज्बात जलजला चक्रवात लाता  छिन्न - भिन्न परिवेश कर जाता ख्याल मंथन परिक्षा दौर चलाता चित्त विचलित दूरभाषी बनकर  पन्ने पलट तहें खोलता रह जाता   अमूर्त सब मूर्त बनकर  परिदृश्य भूतकाल दोहराता  कुछ सीख सबक दे जाता  चंचल मन चित को समझाता  चिंगारी,तिलमिलाती दिल जलाती ।  तरंगें व्याकुल कर हिय तूफान मचाती  कर्मों की खेती मनचाही फसल उग,  भद्दे रंग भर अब क्यों रोता  आभामंडल रंग अलबेले  प्राणी तू प्रिय रंग ही लेना  अपने कैनवास में चित्र बनाना।  जलन धधकती है अंगारों सी  जाने वो कौन सी चाहत है,जो अधूरी सी है।   अद्भुत आभामंडल रंग अलबेले हैं  रंग प्रेम भर मन और लगा जंदरा  शहर कैसा हर शक्स चातक सा  है ओढ़ अमीरी चोला, इसांन बहुत अक आकांक्षा घनिष्टता की,देने को गैरियत ही क्यों है  पूर्णता को भटकता ये मानव अपूर्णता की फितरत करता क्यूँ है।    एक कसक की कैसी ठसक है, दिल  कहानी है तुमको मैंने सुनानी  मेरी कहानींॉ तुम्हारी कहा...

जीतना सीखे

  *** स्वस्थ मन****            कहते हैं स्वस्थ तन में स्वस्थ मन का वास होता, निसंदेह सत्य भी है। आज के आधुनिक युग तन के स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है, जैसे  योगा, व्यायाम  आदि सही भी है।   आजकल कई तरह की फिटनेस क्लासेस भी जलायी जा रही हैं.. बैलेंस डाइट पर भी जोर दिया जा रहा जो निसंदेह अति उत्कृष्ट कार्य है। लेकिन आज की भागती-दौड़ती जिन्दगी मनुष्य अपने दिलों दिमाग पर एक प्रेशर लेकर जी रहा है। दिमाग में बहुत बोझा है लिए जिये जा रहा है , पूछो तो कहते अपने लिए समय कहाँ है, यहां मरने तक की फुर्सत नहीं है।   अब मेरी जगह होते तो क्या करते?   मैंने - - मेडिटेशन करना सीखा अपनी आंखे बंद की, और सासों पर ध्यान केन्द्रित किया फिर मन की आंखों से जो नजर आया अकथनीय था अब तो मैं दिन-प्रतिदिन अपने नेत्र मूंद कुछ मिनट निकल पड़ती मन के भीतर की यात्रा को...  भीतर की शांति ने मुझे सम्भाल लिया उसके मेरा विचलित होना कम हो। मन के भीतर गहन शांति है जब मैने यह जाना तो उसे बांटना शुरु कर दिया... मेडिटेशन मन की शांति के लिए अमू...

मोहब्बत ही केन्द बिंदू

मोहब्बत ही केन्द्र बिन्दु चलायमान यथार्थ सिन्धु  धुरी मोहब्बत पर बढ रहा जग सारा  मध्य ह्रदय अथाह क्षीर मोहब्बत  ना जाने क्यों मोहब्बत का प्यासा फिर रहा जग सारा  अव्यक्त दिल में मोहब्बत अनभिज्ञ भटक रहा जग सारा  मोहब्बत है सबकी प्यास फिर क्यों है दिल में नफरतों की आग  जाने किस कशमकश में चल रहा है जग सारा  मोहब्बत ही जीवन की सबकी खुराक  संसार मोहब्बत,आधार मोहब्बत  मोहब्बत की कश्ति में सब हो सवार  मोहब्बत ही जीवन  मोहब्बत ही सबका अरमान मोहब्बत ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु  भव्य भाव क्षीर सिंधु,प्रेम ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु   मध्यवर्ती  हिय भीतर एक जलजला, प्राणी  हिय प्रेम अमृत कलश भरा ।  मधुर मिलन परिकल्पना,  भावों प्रचंड हिय द्वंद  आत्म सागर भर-भर गागर,हिय अद्भुत संकल्पना  संकल्पना प्रचंड हिय खण्ड -खण्ड  मधुर मिलन परिकल्पना,मन साजे नितनयीअल्पना प्रेम ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु 

श्रम ही धर्म

*श्रम ही धर्म* श्रम की अराधना से मिटती है मुझ  श्रमिक के जीवन  की हर यातना  होकर मजबूर बनकर मजदूर    अपनों से दूर  जीविका की खातिर रुख करता हूं शहरों की ओर गांव की शांति से दूर शहरों का  भयावह शोर, ढालता हूं स्वयं को तपाता हूं तन को,बहलाता हूं मन को शहरों की विशाल,भव्य इमारतों में मुझ श्रमिक का रक्त पसीना भी चीना जाता शहरों की प्रग्रती और समृद्धि की  नींव मुझ जैसे अनगिनत श्रमिकों की देन है कभी -कभी शहर की भीड़ में खो जाता हूं  जब किसी महामारी के काल में, बैचैन, व्याकुल पैदल ही लौट चलता हूं ,मीलों मील अपनों  के पास अपने गांव अपने घर अपनों के बीच  अपनत्व की चाह में । स्वरचित :- ऋतु असूजा ऋषिकेश ।
#किस मनुष्य ने किस विषय का चयन किया है उसके चरित्र का दर्पण बोलता है, फिर दर्पण ही जीवन के सच के रहस्य खोलता है।   #यूं ना कहो हम बदल रहे हैं  वक़्त के अनुसार अपने किरदार में  ढल रहे हैं जीवन जीने की कला में  निपुण हो रहे हैं  #रहस्य मय जगत ,रहस्य अदृश्य अनेक । दामिनी जल मध्य ,जलकण जैसे मेघ ।। #वाणी का अपना मोल, मृदुभाषी मीठा बोल।‌‌          वाचाल हुआ बेमोल,मौन भाषा अनमोल ।। #इंसान होना भी कहां आसान है कभी अपने कभी अपनों‌ के लिए  रहता परेशान है मन‌ में भावनाओं ‌‌‌‌‌का   उठता तूफान‌ है कशमकश रहती सुबह-शाम है बदनाम होताा‌‌ इंसान है, इच्छाओं का सारा काम है # अपने मालिक स्वयं बने,स्वयं को प्रसन्न रखना, हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है..किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी ना होने दें।  #आत्म विश्वास यानि स्वयं में समाहित ऊर्जा को             पहचानना और उसे उजागार करना ।    तन की दुर्बलता तो दूर हो सकती है     परन्तु मन की दुर्बलता मनुष्य को जीते जी मार  ...