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यादें बिन बुलायी मेहमान होती हैं

भूलने की आदत है अक्सर मेरी  पर कुछ यादें भूलने पर भी याद  रह जाती हैं - - क्या इत्तेफाक है  जो याद रखना चाहता हूं वो याद  नहीं रहता,जो याद नहीं रखना चाहता  वो हमेशा याद रहता है।  यादें बिन बुलाये मेहमान की तरह अक्सर दस्तक दे जाती हैं - - -  दबे पांव वो मेरे घर में चली आती है  आंगन में वो हवा के झोंकें सी बिखर जाती है।  फिर इतराकर खूशबू ए बहार बन ठहर जाती है।  वो ना होकर भी अपने होने का एहसास दिलाती है।  अपनी यादों को ना मुझसे जुदा होने देती है  उसकी यादों से मेरे सांसों की गति चलती है।  मैं निकल जाता हूँ, दूर कहीं दिल बहलाने को  दबे पांव वो मेरे पीछे चली आती है,    मेरी यादें ही मेरी हमसफर बनकर   मेरा साथ सदा निभाती हैं।    दिल बहल जाता है, बीत यादों पर मुस्करा लेता हूं  वो भी क्या दिन थे, सोच खुश हो जाता हूँ 
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राधा प्रेम कृष्ण कर्तव्य

सुनों री सखियों - सुनों री सखियों - - आंखें मूंदों तो बुझो पहेली - -  एक गोपी फट से बोली- - क्यों कर हमें उकसाती हो - - जो हिय में है - - क्यों ना फट से बताती हो - - गोपी - - बोली, बताती हूँ - बताती हूँ - हिय की पीड़ा जाताती हूं। नटखट है- वो बड़ा ही नटखट - - पहुंच गया आज फिर पनघट.. मैं भरती थी - यमुना से गागार.. मारी कंकडीया गगरी फोडी.. चुनरिया झीनी हो गयी गीली.. मैं भी हुई पानी-पानी - - घाघरा चोली बंसती पीली - - गालों पर छा गयी लाली-- आठ बरस का नटखट कान्हा - - सारा नन्द गांव उसका दीवाना - -  माखनचोर,,नन्द किशोर - - - मनमोहन  बड़ा ही चितचोर  गोपियों का प्यारा कान्हा - -   कृष्ण प्रेम में राधा ही कान्हा - - कान्हा ही राधा  सांय काल यमुना के तीरे  तिरछी कमरिया,पीला पटका  सिर मोर मुकुट भी अटका - -  बंशीधर जब साजे अधरों पर बंशी - -  हिय प्रेम का सागर - - सागर से भर -भर गागर अधरों पर बाजे - - मधुर ध्वनि राग रागिनी गोपियां सुध-बुध भूल सब भागे --- पायल मधुर साज बाजे, धेनु पद-चाप ढोलक की थाप- एकत्रित नंदगाव यमुना के तीरे..  कान्हा ही र...

नववर्ष

एक जनवरी नववर्ष प्रारम्भ  बारह मास बाधे मन में आस तीस - इकत्तीस दिन का मास हर दिन उज्जवल रख विश्वास  नव प्रयासो का नव आधार  उम्मीदों से रचा-बसा संसार  प्रयासों के विभिन्न प्रकार  सही दिशा, सटीक विचार  साकारात्मकता के उत्तम विचार  सद्भावनाओं भरा व्यवहार  स्व की रक्षा प्रथम आधार  ना हो कोई अत्याचार  स्व कल्याण संग जन कल्याण 

नववर्ष दस्तक दे रहा है

नववर्ष दस्तक दे रहा है, यह वर्ष अलविदा कह रहा है।  कुछ सपने पूरे करके, कुछ सपनों की कमान  नये वर्ष को सौंप रहा है।  एक बार फिर से तीन सौ पैसेंठ दिन का कारवां चलेगा एक बार फिर नववर्ष धूम-धाम से मनेगा। एक बार फिर नये साल का चांद निकलेगा  पहली तारीख से नववर्ष की पूर्णिमा लगेगी  चांद सोलह कला सम्पूर्ण होगा।  नये सपने उडान भरेगें  उम्मीदों की दुनियां मे प्रयासों का जोर होगा।  कई सपनों को उड़ान मिलेगी  कई सपने धरातल पर होंगें।  नयी उम्मीदों की दुनियां बसेगी, कई आवश्यक कामों पर मुहर लगेगी कई को नयी तारीखे मिलेगीं।  365 दिन का नया कारवां फिर से चलेगा  रंगों भरी होली होगी, दिवाली पर जगमग प्रकाश होगा... एक बार फिर 365 दिन का कारवां चलेगा। 

नववर्ष मंगलमय हो

365 दिन के सफर के लिए फिर से तैयार है   नया नवेला रुप लेकर 1जनवरी 2025 नये सफर का शानदार स्वागत करो। एक बार फिर से तीन सौ पैसेंठ दिन का कारवां चलेगा एक बार फिर नववर्ष धूम-धाम से मनेगा। एक बार फिर नये साल का चांद निकला है पहली तारीख से नववर्ष की पूर्णिमा लगी है चांद सोलह कला सम्पूर्ण है।  सफर को बेहतरीन बनाने की करो तैयारी - - नये साल  की नयी पुस्तक  आज  पहली तारीख  का  पहला पन्ना मनचाहे सुन्दर   आकर्षक रंग  ही भरना  सुख समृद्धि  से भरपूर  रहे  जीवन  का हर सपना .. नव वर्ष  हर्षित  चेहरे  नवीनता का संदेश  मन प्रफुल्लित शुभ परिवेश उम्मीदों की नयी राह  संयम,हौसलों और लगन से  नव वर्ष  को बनाना है विषेश  दुनियां मिसाल देकर  कहे  स्वयं के ही कर्म तो सपनों की उङान भरते हैं .. तू भर के तो देख..

वंशज

एक हैं सब एक हैं, लहू सबका एक है  रंग भेद हो भला आकार सबका एक सा  एक वृक्ष की शाखायें हम  टहनियाँ विकास है  वंशज हम एक के - - -  पुष्प उपजते प्यारे - प्यारे.. एक से बड़ते रहे  अनेक हम होते रहे...  एक की संतान हम फिर क्यों मतभेद हुये  जात-पात में फंस गये हम आपस में लहूलुहान हुये एकत्व से अनेकत्व बने जड़ें सभी की एक हैं  शाश्वत जन्म की कहानी, फिर क्यों उलझती जिन्दगानी, मन का पंछी सपनों की उड़ान भरने में व्यस्त रहा, एक दिन आ टिका धरती पर..  नजरें थम गयीं, मन रुक गया  वसुंधरा थी कह रही - - बोली धरती पर रुको हाल मेरा भी   लिखो, हाल मेरा बेहाल है  हालात देखो तो जरा सब लहूलुहान है  पपड़ियाँ है उतर रही, छीलती अब खाल है  सपनों के महल बनाता मनुष्य  किया मुझे बेहाल है   सपनों की उड़ान  नहीं -   धरती पर जीवन की सच्चाई लिखो  पेट सपनों से नहीं  भरते  मेहनत की बिबाई लिखो पेट की आग को दौड़ धूप तो लिखो  मेहनत की कशमकश लिखो धरती पर रहते हो   धरती के लोगों की बात करो....

देना सीखो

देखो इस दुनियां से कोई लेकर तो कुछ जा नहीं सकता - - - -  फिर क्यों ना देकर ही जाने की सोच बना लें - - - हम तो रहेगें नहीं - - हमारे बाद हमारा नाम - हमारे नाम से हुआ काम तो रह जायेगा.. कम से कम लोग कहेंगे उस शक्स ने यह किया था - - देखो वो तो इस दुनियां से चला गया - - लेकिन काम बहुत अच्छे कर गया - -  जोआज भी उसको याद किया जा रहा है।  मेरे मायने में तो सफल है ऐसा जीवन की आप किसी के काम आ सकें।