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अंधेरा यानि विश्राम

 #अंधेरा एक विश्राम है ..  क्यों कोसते हो अंधेरों को . ‌‌अधेरा नये सपनों की बुनियाद भी होता है 

जीवन एक चक्र है .. ‌‌‌‌

गाड़ी के पहिए की तरह दौड़ती - भागती जिंदगी ...दिन और रात का क्रम .. अंधेरे के बाद उजाला ..  उजाला के बाद फिर अंधेरा ..  ‌

#इंसान का दिमाग ... कम्प्यूटर से भी तेज भागता है .... आप स्वयं ही सोचिए ... कम्प्यूटर बनाने वाले भी हम जैसे .. इंसान ही हैं .... आपके मेरे और हम सब के जैसे इंसान .... 

अपने आप को कमजोर समझना .. कम बुद्धि समझना ... बेवकूफी है ... जब तक आप अपने दिल दिमाग पर चढ़ी नाकारात्मक बातें नहीं हटायेंगे ... आप कुछ भी साकारात्मक नहीं कर पायेंगे ....

डर मतलब.... नाकारात्मक सोच ... कहते भी हैं जब तक हम डरते हैं डर हमें और ज्यादा डराता है ... हमें डरना नहीं है.....हम कमजोर नहीं हैं ... स्वयं को‌ कमजोर समझना भगवान द्वारा दी गयी ... हमें हमारी शक्तियों पर विश्वास ना करना है ...

विश्वास ....उस दिव्य शक्ति पर जिसे हम परमात्मा कहते हैं ...उस विश्वास को कम मत होने दीजिए ....

जिस तरह मोबाइल फोन को चार्ज करने के लिए ..चार्जर लगाना पड़ता है .... ठीक उसी तरह अपने भीतर की शक्तियों को जागृत करने के लिए .... परमात्मा का ध्यान योग .... meditation आवश्यक है ..... 

 

  बशर्ते आपका दिमाग किस दिशा में काम करता है .... सारा ज्ञान , अद्भुत शक्ति आपके भीतर छिपे बैठे हैं .... भीतर तो जाना पड़ेगा .... मन मस्तिष्क के गहरे समुन्दर में डुबकी तो लगानी पड़ेगी ... योग ही इसका सही रास्ता है ...

बाहर की दुनियां में उलझन ही उलझन है ... 

वास्तव में अगर इस दुनियां की रंगीनियों को सही तरीके से जीना है तो .... भीतर की एक यात्रा दिन में एक बार आवश्यक है .... बाहर की दुनियां ..  यानि संसार जिसमें हम रह रहे हैं ... खूबसूरत तो बहुत हैं ....   

 

जैसे तन को तंदुरुस्त रखने के लिए ... शारीरिक व्यायाम आवश्यक है .... वैसे ही मन को स्वस्थ रखने के लिए मानसिक व्यायाम ..  यानि Meditation बहुत जरूरी है .... 

पेड़ पर फल लगें हैं ... तोड़ने की मेहनत तो करनी ही पढेगी .... कोई भी मशीन ‌‌‌‌‌‌‌‌ ...  किसी ना किसी को तो दिमाग लगाना पड़ेगा . ...   श्रम या मेहनत संयम और समय तो अवश्य ही चाहिए .... 

 #दर्द तो सहना पड़ता है ....

धैर्य और सब्र का इंतहान भी देना ही पढता है....

अजी इंसान होना भी कहां आसान है .... 

कभी अपने .. और कभी अपनों के लिए रहता परेशान हैं . ‌

मन में भावनाओं का रसायन मचाता कोहराम है 

उस पर बदनाम होता इंसान हैं    

ऐ मानव तुम अपने मन की किया करो ....

दिल खोलकर हंसा करो .. ‌‌

हर वो काम जो तुम्हें पसंद हो किया करो .. ‌‌

बस दिल ना दुखे किसी का ... याद इतना किया करो . 

ज़िन्दगी एक बार मिलती है... कीमत है बहुत. एक - एक पल सोच समझ कर खर्च किया करो। ..

खुश रहने की .. हर पल कोशिश किया करो ...

 

  * स्वास्थ्य यानी तन-और मन दोनों की सुदृणता *

जहाँ *शारीरिक स्वास्थ्य के लिये पौष्टिक आहार ,व्यायाम , योगाभ्यास लाभदायक है....
    वैसे ही मन की स्वस्तथा के लिये मेडिटेशन,योगा ,साथ ही साथ विचारों की सकारात्मकता क्योंकि, ज़िंदगी की दौड़ में अगर जीत है तो हार भी है*

 मुश्किलें भी हैं ,बस हमें अपनी हार और नाकामयाबी से निराश नहीं होना है ,ये नहीं तो दूसरा रास्ता अपनाये अपने मन की सुनिए ...मन की पहली आवाज सुनिए ....जो हमेशा अपने अंदर की आवाज होती है ...

    *हमारे विचार बहते हुए पानी की तरह हैं, और पानी का काम है बहते रहना....और पानी में हम जो मिलाते हैं ... पानी वैसा ही हो जाता है ... आगे की और बहुत हुआ पानी कभी भी मैला नहीं होता ... रुके हुए पानी मे से दुर्गन्ध आने लगती है *जैसे तालाब ...

 हमारे विचार ही हमारी वास्तविक सम्पत्ति हैं ....
 *  जहाँ तन का स्वस्थ होना आवयशक है वहीं मन मस्तिष्क का स्वस्थ होना भी अनिवार्य है *


   आज की भागती दौड़ती जिन्दगी में हम मन के स्वास्थ्य पर बिल्कुल भी ध्यान ही नही देते मतलब कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ते- चढ़ते हम मनुष्य अपने दिमाग़ पर एक बोझ बना लेते हैं, बोझा कामयबी और काम के दवाब का ;
    कामयाबी तो मिलती है धन भी बहुत कमाते हैं ,परन्तु अपना सबसे बड़ा धन अपना स्वास्थ्य बिगाड़ देते हैं।

  किस काम की ऐसी कामयाबी और दौलत जिसका हम सही ढंग से उपयोग भी न कर सकें।
दुनियाँ का सबसे बड़ा धन क्या है ,आम जन तो यही कहेंगे रुपया, पैसा, धन-,दौलत गाड़ी, बंगला ,और बैंक बैलेंस
   परन्तु मुझे अपने एक मित्र की बात हमेशा याद रहती

अरे ! अरे ! 

कहां चले जा रहे हो ... ? 

जिस तरफ जमाना चलेगा हम उसी तरफ चलेंगे ना ...  अपनी डफ़ली अपना राग थोड़े .. रागेगें ....

अच्छा ही होगा ..  जिस राह सब चले ..  हम भी चले ...

धैर्य और सब्र का इंतहान भी देना ही पढता है.

धरती पर जब किसी भी अन्न के बीज डाले जाते हैं ....-तो खेत को जोतना पड़ता है ..  उचित देखरेख पानी ,सिचाई... उचित समयावधि के बाद ... ही फसल तैयार होती है ...  कोई भी प्रकिया समय और कर्मठता और उचित परिवेश तो मांगती ही है ... उसके बाद ही ... फल पाते हैं ....

कभी - कभी किसी काम का फल मिलने में समय लगता है ...और हम परेशान हो जाते हैं ... फिर कोसने लगते हैं अपनी किस्मत को ....हे भगवान ! मेरी किस्मत तो किस्मत ही खराब है ... भगवान मेरी ही किस्मत क्यों खराब है ....

पर यह अवश्य याद रखना है .... अंधेरे के बाद दिन  रात के बाद सुबह अवसर 

क्यों रोता है मानव अंधेरे को क्यों कोसता है 

अंधेरा यानि विश्राम की रात्रि भी तो होता है 

रात्रि में सतर्कता के गुणों की भरपाई 

भी तो होती है रात्रि का अंधकार पश्चाताप की 

पीड़ा को कम करने की गहराई है 

हर रात के बाद सवेरे की घड़ी आयी है 

आज तबाही का मंजर देख आंसुओं से 

अपना दामन भीगोता है 

भूल को सुधार यह तेरे ही

 कर्मों का लेखा-जोखा है 

सम्भल जा अभी भी ए मानव,

 वही पायेगा जो तूने रौपा है

हारना नहीं हराना है 

माना की मुश्किलें भी बड़ी हैं 

किन्तु हमारे हौसलों के आगे 

पर्वतों की चोटियां भी झुकी हैं 

लगता है राक्षस योनि फिर से 

जीवंत हो आयी है ।्

सम्भल जा अभी भी ए मानव , 

वहीं पायेगा जो तूने रौपा है ।

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