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Showing posts from June, 2024

फरिश्ते आसमान

 

मुझे झुकना भी अच्छा लगता है

  ऊपर उठना मेरा शौंक है. मुझे झुकना भी अच्छा लगता है, जहां मेरे झुकने से किसी का भला हो...  अपने विचारों से मैं हमेशा ऊपर की ओर ही उठना चाहती हूँ.. ऊंचा उठने के लिये किसी वस्तु या संसाधन की आवश्यकता नहीं होती..  अनमोल वस्तुएं आपके जीवनयापन का महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकती हैं.. आप अधिक से अधिक सुविधाओं से भरपूर जीवन जी सकते हैं.. आपको कोई कष्ट नहीं होता... आप महाराजाओं सा जीवन जीते हैं... लेकिन मन में शायद फिर भी कोई कमी रहती है.. मन को ओर कुछ की चाह होती है।  विचारों के प्रवाह को उपयोगी विचारों की तरफ लगाना होता है.. जहां लेने की नहीं देने की प्रक्रिया शुरू होती है.. जो आप देगें, उसी की ही वापिसी आपको मूल के रुप में होगी... तो फिर स्वयं आप क्या वापिस लेना चाहेगें ।   माना की एक गुफा है, द्वार का मुंह छोटा, और गुफा में अनमोल खजाना, अगर आपको वो खजाना चाहिए तो आप क्या करेंगे.. खजाना चाहिए तो झुक कर ही जाना पढेगा...  झुकने में कोई बुराई नहीं...   लेकिन जहां आत्मसम्मान की बात हो, वहां कभी नहीं झुकना चाहिए...  तेज आंधियां चलती है, तूफान आता है तो...
"जल की कहानी प्रकृत्ति की जुबानी,जल ही प्रकृति  की खुशरंग कहानी"

वृक्ष धरती की आत्मा

वृक्ष धरती की आत्मा  जंगल जलाशयों का  प्रमुख स्रोत..  जंगलों का कटान बंद करो  वसुंधरा का कुछ तो  मान करो..  वसुंधरा तप रही है  धधक रही..जल भी  गया सूख .. पथराई आंखों से ताकती  पत्थर की इमारतें नमी का नामोनिशान नहीं  जलाशय रहे हैं सूख..  आकाश का आक्रोश  वसुंधरा पर फैल रहा  है बनकर रोष - - -  सूर्य की धधकती ज्वालाओं  की तपन, वृक्षों का कटान किया  अब कैसे लगेगा,जड़ी-बूटियों का मरहम  मनुष्य तन में सत्तर प्रतिशत पानी  बूढ़ी होती जवानी..  वसुंधरा का क्या हाल किया  पत्थर की ईमारतें क्या देगीं  प्राकृतिक हवा,पानी जलस्रोतों  का दहन किया - -    वसुंधरा पर उपकार करो  धरती का श्रृंगार करो  वसुंधरा पर जीने का अधिकार मिला   वृक्षों की भरमार करो..   

तारीफ़ करना भी एक गुण है

*तारीफ़ करना भी एक गुण है तारीफ भी वही कर सकता है जो नम्र है, अंहकार रहीत है..    तारीफ करना भी उसी की काबिले  तारीफ है, जो तारीफ सुनने के बाद भी  सहज रहे, अंहकार का दंभ ना हो  समझ परमात्मा प्रदत काम अपने  काम में एकत्व हो।  तारीफ में किसी की खूब तालियां  बज रहीं थी.. कुछ एक हाथ भी ना  उठा हिला पा रहे थे, शायद अकड़न  ज्यादा थी उनके मन - मस्तिष्क में  उन्हें मानसिक और शारीरिक योगाभ्यास की अधिक आवश्यकता थी। तारीफ करना सिर्फ सिर चढाना नहीं  किसी का मनोबल बढाना भी होता है  किसी को प्रोत्साहित कर ऊंचा उठाना भी होता है।  अद्भुत, अविष्कारक, चमत्कार कराना भी होता है। 

शिकायतें

किससे क्या शिकायत करूं,  मेरी हर एक शिकायत पर एक दावा होगा  उन दावों का हिसाब देने का समय नहीं।  जानती हूं मैं एक शिकायत गिनवाऊंगी अनेकों शिकायतों से मैं घिर जाऊंगी  कौन सी बात किस के लिए नाराज होने  की वजह होगी, यह मैं भी नहीं जानती मेरी अच्छी बात भी, मेरे लिए सजा होगी।  ढूढ लेगें लोग कमियां जाने किस -किस बात पर मेरी हर बात ही शिकायतों का राज होगी। शिकायतें उससे करूं जो समझने के काबिल हो  वरना शिकायत करना भी मेरे लिए गुनाह होगा  और जो अपना होगा वो शिकायतों का मौका  ही नहीं देगा। 

क्यूं, कहां, कैसे, किसलिए

 क्यूं, कहाँ, कैसे, किसलिए, ऐसे, वैसे, अच्छे- बुरे  क्यों नहीं हम ओरों के जैसे-- इसी कशमकश में उलझे अपनी बात लिखने लगे.. लिखते और लिखते रह गये। अब क्यूँ कहां, कैसे, इसलिए, ऐसे-वैसे  में उलझना नहीं, सुलझाना था,  विचारों को साकारात्मक किया ओर  क्यूँ, कहाँ, कैसे, किसलिए, ऐसे-वैसे की  खूबसूरती बड़ गयी।    खूबसूरती को ही लिखकर परोस देते हैं,  सोचकर की हमारी लेखनी साकारात्मक है  बस लिखे और लिखे जा रहे हैं  शायद परमात्मा ने हमें इसलिए चुना होगा।  हमें अब लिखने के अलावा कुछ भाता ही नहीं  बस शुभ विचारों के बीज डाले जा रहे हैं  कभी कोई फल तो मीठा लगेगा  किसी का जीवन परिवर्तन होगा  और हमारा लिखना सफल होगा।