क्यूं, कहाँ, कैसे, किसलिए, ऐसे, वैसे, अच्छे- बुरे क्यों नहीं हम ओरों के जैसे-- इसी कशमकश में उलझे अपनी बात लिखने लगे.. लिखते और लिखते रह गये। अब क्यूँ कहां, कैसे, इसलिए, ऐसे-वैसे में उलझना नहीं, सुलझाना था, विचारों को साकारात्मक किया ओर क्यूँ, कहाँ, कैसे, किसलिए, ऐसे-वैसे की खूबसूरती बड़ गयी। खूबसूरती को ही लिखकर परोस देते हैं, सोचकर की हमारी लेखनी साकारात्मक है बस लिखे और लिखे जा रहे हैं शायद परमात्मा ने हमें इसलिए चुना होगा। हमें अब लिखने के अलावा कुछ भाता ही नहीं बस शुभ विचारों के बीज डाले जा रहे हैं कभी कोई फल तो मीठा लगेगा किसी का जीवन परिवर्तन होगा और हमारा लिखना सफल होगा।