*तारीफ़ करना भी एक गुण है
तारीफ भी वही कर सकता है
जो नम्र है, अंहकार रहीत है..
तारीफ करना भी उसी की काबिले
तारीफ है, जो तारीफ सुनने के बाद भी
सहज रहे, अंहकार का दंभ ना हो
समझ परमात्मा प्रदत काम अपने
काम में एकत्व हो।
तारीफ में किसी की खूब तालियां
बज रहीं थी.. कुछ एक हाथ भी ना
उठा हिला पा रहे थे, शायद अकड़न
ज्यादा थी उनके मन - मस्तिष्क में
उन्हें मानसिक और शारीरिक
योगाभ्यास की अधिक आवश्यकता थी।
तारीफ करना सिर्फ सिर चढाना नहीं
किसी का मनोबल बढाना भी होता है
किसी को प्रोत्साहित कर ऊंचा उठाना भी होता है।
अद्भुत, अविष्कारक, चमत्कार कराना भी होता है।
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