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Showing posts from November, 2024

कश्तियां

भाव सागर चल रही है, कश्तियां संसार की  लहरें सागर उठ रही, भीतरी एहसास की  लहरों की ऊचाईयां, या,अरमानों की उठापटक  दिल का दरिया बह रहा, समुंदर सा हो रहा।  कोई समझने वाला ही नहीं, भीतरी एहसास है  तूफान तो आयेगा, भीतर ज्वाला धधक रही  समाज की बेड़ियों में  सिसक वो कराह रही  चीखों पुकार है,  कैसा यह उद्गार है..  सिसकियों में कह रहा, तूफान की आहट हुई  भीतर जो उद्गार है.. वधिक में व्यक्त है  घाव था ना जो भरा, हाल उसका है बुरा अंतिम दौर है, कराह का शोर है,आह! सब और है। 

उड़ान

आज फिर निकला हूँ घर से ख्वाबों का नया जहाँ बनाने को  खुले आसमां में उडान भरने को - -  हकीकत धरती पर फिसल गयी  जब पाषाण के टुकड़े पर पादुका अड गयी नजर धरती मां पर रुक गयी  किया प्रणाम--बड़ा सम्मान  धरा पर चलने को दिया स्थान आसमान की बातें धरती से जुड़ गयी  धरती से आसमां की नजरे मिल गयीं  ख्वाबों की हकीकत आंखों में उतर गयी  मंजिल अभी दूर है, चलना अभी बहुत दूर तक है  धरती से मेरी मोहब्बत बड़ गयी..  ख्वाबों की जमीं आसमां से जुड़ गयी  ख्वाब सजते थे यहाँ, पलते थे वहां  धरती की हकीकत आसमां में दिख गयी  खोखले स्वार्थ की आग , आसमां में धुआं बनकर उड़ गयी  ख्वाबों की जमीं धरा पर जीवंत हो गयी  . आसमान तक की उड़ान में एक कड़ी और जुड़ गयी। 

अद्भुत रंग

कोमल मन अद्भुत रंग  भाव जागे हर्षित मन  पुष्प मरकंद कोमल अक्स  पवित्र बंधन जीवन धन  प्रेम विश्वास प्रिय अनुबंध  अनुराग प्रीती समर्पण  राग रागीनी सुरम्य संगीत  जीवन कलश अद्भुत रीत ह्रदय बसे अगम्य रस प्रसन्नचित्त ह्रदय प्रफुल्लित मन अमिय गागर-नयन नीर  भाव समुद्र अनकही तकरीर  शब्द मौन मन ही जाने मन कही  समर्पित जीवन जागीर  ह्रदय बसायी तस्वीर  दिल खींची लकीर  फिरे बन फकीर  मानों दुनियाँ का बड़ा अमीर।।   

खामोश चीखें

खामोश चीखों की तड़प  अनकही - - दास्तान - -  दर्द में कराह थी  कराह की सजा भी थी  वजह भी ना अजब ही थी  दुआ की जब अदा होगी   दिलों में लाखों के तड़फ होगी   जो हर दिल ने सही   पर शब्दों से ना कही  कुछ अनकही सी बातें  खामोश सी चीखीं इक वाह! में आह! थी  रब बनकर वो रहते हैं  इस दिल में दफन होकर  उस आह! में चाह भी थी  उस चाह! में इक राह! भी थी  राहों में पड़े थे शूल चोटिल भी हुये थे बहुत  इस दर्द ए मोहब्बत का इतना सा फसाना है जिसे चाहा कभी हमने  उसे ना पाने की खलिश होगी  जीवन की दर्द भरी साजिश होगी  साजिश के ना गवाह होगें .. ना कभी गवाही होगी  मेरी मोहब्बत, इबादत बनकर   रब बनकर भी रह लेगी  पाप नजरों से बचकर, मेरे दिल में दफन होगी।   

लेखक

  जब आप अपनी अभिव्यक्ति या कुछ लिखकर समाज के समक्ष लाते हैं, तो आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप समाज के समक्ष बेहतरीन साकारात्मक विचारों को लिखकर परोसे,   जिससे समाज गुमराह होने से बचे..प्रकृति पर लिखें, वीर रस लिखें, सौंदर्य लिखें, प्रेरणादायक लिखें, क्रांति पर लिखें ___यथार्थ समाजिक लिखें  कभी - कभी समाजिक परिस्थितियां भयावह, दर्दनाक होती---बहुत सिरहन उठती हैं.... क्यों आखिर क्यों ? इतनी हैवानियत, इतनी राक्षसवृत्ति.. दिल कराहता है.. हैवानियत को लिखकर परोस देते हैं हम - - समाज को आईना भी दिखाना होता... किन्तु मात्र दर्द या हैवानियत और हिंसा ही लिखते रहें अच्छी बात नहीं..   लिखकर समाज को विचार परोसे जाते हैं.. विचारों में साकारात्मकता होनी भी आवश्यक है।  प्रेम अभिव्यक्ति पर भी लिखें प्रेम लिखने में कोई बुराई नहीं क्योंकि प्रेम से ही रचता-बसता संसार है.. प्रेम मन का सौन्दर्य है, क्यों कहे सब व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है प्रेम से संसार है, प्रेम ही व्यवहार है प्रेम ही सद्भावना, प्रेम ही अराधना प्रेम ही जीवन आधार है.. प्रेम में देह नहीं, प्रेम एक जज्बात...

शौक अपने - अपने

शौक अपने - अपने  सपने अपने - अपने जीने के ढंग अपने-अपने  सोच अपनी -अपनी कहानी अपनी-अपनी  उड़ान अपनी-अपनी  मेहनत अपनी-अपनी  दायरे अपने-अपने  इरादे अपने - अपने  तराने अपने - अपने  बहाने अपने - अपने निशाने अपने - अपने पसंद अपनी-अपनी खुशी अपनी - अपनी अफसाने अपने-अपने  फितरत अपनी-अपनी  क्यों ना हों,आखिर जिन्दगी है सबकी अपनी अपनी  जिन्दगानी अपनी-अपनी  जीने के ढंग अपने-अपने  भरने हैं पसंद के रंग अपने-अपने।। 

देव दीपावली

देव दीपावली  धरती अम्बर से जगमगाते सितारों सी खिली    ईगास... पहाड़ी इलाकों का दीपोत्सव..  श्री राम सीता एवं लक्ष्मण आगमन की खबर जो शहरी इलाकों की अपेक्षा पहाड़  इलाकों में कुछ दिन बाद मिली.. विषेशतया उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में इसे ईगास.. बूढी होती दीपावली कहकर सम्बोधित करते हुये दीपावली का त्यौहार मनाया गया..और यह परम्परा तभी से मनायी जाती है।   

अल्हड़ मन

अल्हड़ मन की आस, मन ना पाये विश्राम  राह निहारे सर्वदा, नयनों से झलकती नर्मदा।।  दीदार नयन होता रहे, प्रेम को अनकहा करे  कसक मन की ना थमें , दिल कहीं भी ना रमें अल्हड़ मन चंचल चपल, निष्ठुर बेमानी  सजाता सपनों की कहानी, करे सदा मनमानी।।  प्रेम परिभाषित करुं, निर्मल मन की कसक  प्रेम में समर्पण, ज्यों भीतर करे देवत्व दर्शन।।  प्रेम जीवन उपसंहार, प्रेम जीवन का सारांश  प्रेम को भटके सभी, प्रेम को तरसे सभी।।  प्रेम मन की मीठी ठसक, अनकही सी कसक  प्रेम मर्यादा में बंधी,  लक्ष्मण रेखा ना भटक।।  सरल मासूम बालक, सा मन  करता नादानी  बन पंछी भरता उडान, मन ज्ञानी भ्रम अज्ञानी  ।। 

भाव समुंद्र प्रेम रत्न

प्रेम मन का सौन्दर्य है, दिव्यता का शौर्य है  ह्रदय का श्रृंगार है, रसमय व्यवहार है।  प्रेम आत्म रत्न धन, प्रसन्न ह्रदय आनन्दित मन प्रेम की ना कोई जाति, प्रेम सत्य धर्म प्रजाति।।  क्यों कहे प्रेम व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है  प्रेम अद्वितीय रत्न, प्रेम दिव्य मन भाव भाव समुद्र प्रेम रत्न, कुटिलताओं में नजरबंद  कुचल कर कोमल प्रेम पंख, नीम का लेपन चढा. मूर्च्छित मन कराह रहा, नेत्र अश्रु बहा रहा  भीतर प्रेम उद्गार है...  बाह्य भय कारावास  तोड़ के सब बेड़ियाँ, प्रेम का इकरार हो  क्यों कहे सब व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है  प्रेम से संसार है, प्रेम ही व्यवहार है  प्रेम ही सद्भावना, प्रेम ही अराधना  प्रेम ही जीवन आधार है..  प्रेम में रचा-बसा संसार है  प्रेम में देह नहीं, प्रेम एक जज्बात देह का अंत है, प्रेम तो अंनत है  प्रेम के वृक्ष पर रहता सदा बसंत है।