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Showing posts from April, 2024

संवेदनाओं का क्रंदन

मानव मन की सुन्दर कोमल  भावनाओं का दाह संस्कार होते देख  मेरी संवेदनाऐं जागृत हो ह्रदय रुदन करने लगीं आततायी संवेदन शून्य हो,  भावन रहित हो गये थे.. क्रूरता पशुता  राक्षस वृति को अपनाकर , आंतक  का घिनौना गंदा खेल रहे थे  घायल हुये थे कुछ लोग,  कुछ इस दुनिया से चले गये थे,  एक बार फिर तहलका मचा था मर गयी थी,करूणा, दया,संवेदना  मची थी तबाही,सब कुछ अस्त -व्यस्त था सब सहमें हुये से डरे हुये थे  बच्चे घरों में कैद थे,घरों में सन्नाटा पसरा हुआ था, हर कोई भयभीत था  मनुष्य के भीतर पशुता, राक्षसवृत्ति जन्म ले  अत्याचार पर अत्याचार कर रही थी   मां की ममता कराह रही थी, दुहाई दे रही थी  उस मां की जो जगतजननी है, सबकी मां है..  कह रही थी मनुष्य जाति का मान रख..  निसर्ग से प्राप्त कोमल संवेदनाओं का  क्रन्दन मचा रहा है तबाही... अंहकार  किस बात का अंत तो सबका एक ही है। 

नयी - नवेली

 समय की रफ्तार के साथ  मैं भी बह गयी, रोकना चाहा पर जल की धारा थी आगे की  ओर बहने लगी।  बहना मेरा स्वभाव है, बहुत कुछ समाया स्वयं में  पर कुछ ना एकत्र किया  जब-जब हलचल हुई  सब किनारे पर लगाती गयी वक की रफ्तार के साथ बहती चली गयी, हर दिन नूतन नवेली पर समय की रफ्तार के साथ मैं बहती रही  रुकी नहीं, रुकती तो बासी हो जाती विकार उत्पन्न हो जाते मुझमें  मैं बदली नहीं, हर दिन नयी नवेली आगे की और बढती जल धारा की तरह... 

करूण संवेदना

आज फिर जागी थी संवेदना, आंखों में चमक थी, दूर हूई थी वेदना  चेहरे पर खुशी थी,जीवन में नयी आस दिखी थी आज फिर से घर के दरवाजे खुले थे  रसोई घर से पकवानों की सुगंध महक रही थी  घर के आंगन पर जो तख्त पड़ा था,  उस पर नयी चादर बिछी थी,  आज दो कुर्सियां और लगीं थीं  चिडियां चहक रही थीं.. दादी की नजरें दरवाजे पर टिकी थीं।  आंगन में कुछ पापड़ वडियां सूख रही थीं  आज दादी ने नयी धोती पहनी थी।  दादी उम्र से कम दिख रही थी  साठ पार आज पचास की लग रही थीं  सारी बिमारियां दूर हुई थी.. आज दादी की बात  पोते से हुई थीं, इंतजार की घडियां  करीब थीं आज फिर पोते के दिल में  दादी के प्रति संवेदना जगी थीं  नेत्रों से प्रेम की अश्रु धारा प्रवाहित थी,  आज फिर करूण संवेदना हर्षित थी।।  जिन्दगी फिर जी उठी थी।। 

संवेदना का दम घुट रहा...

 संवेदना कहाँ लुप्त हुयी..  अंहकार के पैरों में गिरी  स्वार्थ ने कुचल दी..  संवेदना बिचारी सहम गयी  संवेदना घुट-घुट दम तोड़ रही..  मृग तृष्णा सी दुनियां में, अंध छलावा हो रहा हासिल कुछ नहीं होगा, भाग रहा है हर कोई। नाटक में नाटक चल रहा,जाने क्यों मानव भटक रहा। ऊंचाई पर पहुंचने की खातिर,मानवता है गिर रही, संवेदन शून्य हुआ मानव, मैं का दम्भ भर रहा गिनता कागज की कश्तियां, पानी में सब बह रहा। समाजिक मेलजोल है ज्यादा,बुजुर्ग माता-पिता से कटा.. घर की दिवारें रो रहीं, बाहरी रुतबा खूब बड़ा  कर्मों में कर्मठता जागी. भीतर से सब टूट रहा  संवेदना शून्य हुआ मानव, राक्षस वृत्ति जाग रही।  एक दिन जब संवेदना जागेगी..  सब होगें मौन.. आंखों से अश्रु धारा बह रही होगी  ह्रदय होगा द्रवित.. जीवन का यह गणित।।  जीवन का यह गणित।। 

संवेदना की बाती

  सहयोग मीठा एहसास है ह्रदय में संवेदना  परस्पर प्रेम को जीवन का गणित बना।।  स्वार्थ बना सर्वोपरी, संवेदना मानों मरी कौन किसका है यहां, स्वार्थ ही सब कुछ हुआ।। मैं-मैं सब कर रहे, हम तो जाने कहाँ गया मेरा -मेरा का घमंड हुआ,समर्पण जाने कहाँ गया।। मैं-मैं की शोर मचा, बांध गठठ्रर सब खड़े मानों ले जायेगें सब साथ यह,इतरा रहे बड़े-बड़े।।    स्वप्न में स्वप्न दिखे हर्षा रहे, सब स्वप्न में,  नींद में सब थे दिखे, जाने क्यों लड़ रहे।।     अंहकार किस बात का ,आये शहंशाह बडे-बडे। महल ऊंचे सब .. धरे यहीं, दौलत पर संग्राम हुआ मिट गये नामोनिशान यहीं।।    जी गये जो जिन्दादिल थे, संवेदना थी जिनमें बची  त्याग, प्रेम दया सहानुभूति की बाती जगा रोशन किया जग सभी...  सहयोग की मशाल जला, जग होगा रोशन तभी।। 

संवेदना की आस

संवेदना की आस पर, जी रहे हैं सब यहां  एक दूजे के प्रेम से जीवन का यथार्थ यहां  वसुन्धरा का उपकार बढा, भार जो सबका सहा  मुझमें हो जो संवेदना,धरती मां को संरक्षण करूं।।  वृक्षों ने हमें फल दिये,शीतल छाया की शरण मिली  प्राण वायु जो दे रहे,वृक्षों के उपकार बढे.. संवेदना  मुझ में जगा..  क्यों प्राण उनके संकट में पड़े, कंक्रीट के महल  खड़े किये.. कहां गयी संवेदना प्राण अपने भी  दाव पर लगे..  जल ही जीवन तो कहा.. पर उस जल पर ही संकट पड़ा..  स्वार्थ की धुंध में सब कुछ थुमिल हुआ..  आंधियों की उठापटक, सब कुछ तितर-बितर हुआ  अपना ही सब समेट रहे.. रो रहा कोई दूजी और खड़ा.. पेट किन्हीं के फट रहे, कोई भूख से तड़फ रहा।  कहाँ गयी संवेदना कोई देखो तो जरा..  ऊंच-नीच के भेद में अंहकार का तांडव बड़ा  कराह रही मानवता.. संवेदना तू जाग जरा..  आस में तेरी यहाँ, मानवता को जगा, त्याग, दया प्रेम भाव की संवेदना की मशाल को जला।। 

संवेदनाओं का सौन्दर्य

संवेदनाऐं ही मनुष्य जाति का वास्तविक सौन्दर्य है। संवेदनाऐं मन के कोमल भाव हैं।  संवेदनाऐं मनुष्य मन का सौन्दर्य है संवेदनाओं से मनुष्य, मनुष्यता को प्राप्त करता है..  संवेदनाऐं ही मनुष्य का वास्तविक स्वरूप है।  संवेदनाऐं ही इस संसार को सुन्दर बनाती हैं... दया, प्रेम, करूणा का पाठ पढाती हैं।  संवेदना विहीन मनुष्य पशु समान है.. संवेदना ना हो तो दुनिया में जंगल राज बढ जायेगा..मनुष्यता काअंत हो जायेगा.. मनुष्य ही मनुष्य का भक्षण कर जायेगा।। संवेदनाओं का जीवंत रहना अति आवश्यक है... संवेदनाऐं ही मनुष्य जीवन का मनुष्य मन का वास्तविक सौन्दर्य है।। 

संवेदनाओं का भव्य संसार

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम संवेदनाओं का भव्य संसार। लंका का राजा रावण,सवंदेन विहीन पशुवत व्यवहार।  कौशल्या,सुमित्रा ममतामयी दिव्य स्वरूप  मंथरा भयी संवेदनविहीन,प्रभाव कैकयी बनी विवेकशून्य।  संवेदनाओं का पतन, दिया श्रीराम को वनवास गमन।  भरत दिव्य रुप,संवेदनाओं का भव्य स्वरूप,  भ्रात प्रेम से ह्रदय व्याकुल.. संवेदनाओं की विरह पीड़ा।  मन व्यथित, ह्रदय द्रवित वन गमन, लक्ष्मण गंभीर  राम अमृत मन सुख देने वाला,भ्रात मिलन का भाव मिलन... संवेदनाओं से भरपूर तन - मन।  रामचन्द्र जी के खड़ाऊं.. पूजे जो अमृत पुंज पाऊं  अमर है, संवेदनाओं का दिव्य,संसार श्री राम,सीता लक्ष्मण भरत माताओं का व्यवहार - - -  संवेदन विहीन रावण का राक्षसी व्यवहार.. करता था जो अत्याचार..  अमर है संवेदनाऐं, नष्ट सब संवेदविहीन।।।। 

संवेदना मर रही

मर रही संवेदनाऐं..  वेदना चहूं ओर है..  भागने की होड़ है.  आगे बढने की दौड़ में ..   मानवता कुचल रही..  कंक्रीट का शोर है..  प्रकृति का दमन हो रहा..  प्राण वायु घट रही..  संवेदना है मर रही..  पनप रही पाषाणता  मानवता है रो रही..  मानवता पर दानवता  सिर चढ कर चिल्ला रही  पाषाणता है बढ़ रही, मानवता है  रो रही, संवेदना कराह रही,  भावनाओं के पुष्प मुरझा रहे  सौन्दर्य भी अब लुप्त हुआ  संवेदनाओं का कत्ल हुआ  मानवता पर दानवता सिर चढ़कर  बोल रही.. कंक्रीट की मीनारों में  आधुनिकता बोल रही...  प्रकृति की सौम्यता अब कहाँ रही  सौन्दर्य प्रसाधन अब बढ रहे  लीप पोत कर सब खड़े.. भीतर से अभद्र हुये  संवेदना है रो रही, भाव शून्य सब हुये  सौन्दर्य अब लुप्त हुआ, पाषाणता के युग में  शूल सा मानव हुआ... 

रामनवमी की शुभकामनाएं

रामनवमी की शुभकामनाएं  हर्षित हैं सभी दिशाऐं  राम नाम से शुभ आशायें   राम नाम मिश्री सा मीठा मुख जापे तन प्रफुल्लित दीखा  ह्दय आनन्दित ,मन हर्षित भीगा  नयन की चमक.. चंद्रमा सी शीतल  मन चंचल स्थिर सा दीखा  तन नाचे  मुख राम नाम मीठा सा जापा  तन-मन का वियोग.. दूर हुये सब भ्रम के रोग  चहूं ओर सब शुभ संयोग  राम नाम अमृत का प्याला  पीवें जो मन हर्षित हो मतवाला  राम नाम है.. मन सुख देने वाला राम नाम अमृत का प्याला  पिये जो मन हर्षित हो नाचे मतवाला  राम राज्य का शंखनाद  दूर हो सब संवाद  राम नाम का बिगुल बजाओ  शंखनाद करवाओ  आरती थाल करो तैयार  श्री राम आये हैं घर - घर आज 

ऋषिकेश गंगा आरती की भव्यता

ऋषिकेश त्रिवेणी घाट संध्याकाल आरती का भव्य चित्र यह दर्शाता है की यहां मां गंगा  की आरती कितने भाव और भक्ति से की जाती है..।गंगाजी की आरती में सभी लोग बड़ी श्रद्धा से भाग लेते हैं। देश - विदेश से भक्त आकर गंगा आरती पूजन.. से मन को भक्ति मय रंग से सरोबार कर मन को संतुष्ट करते हैं...  गंगा आरती के बाद होने वाले भजन भक्तों को मंत्रमुग्ध कर भक्ति के रंग में रंग नाचने को बाध्य कर देते हैं।   उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री धाम स्थित है.. वहां के बर्फीले पहाड़ों से कुछ किलोमीटर की ऊचाईय पर गौमुख से भागिरथी नदी निकलती है...  .

ऋषिकेश की विरासत

☺☺☺  ऋषिकेश की विरासत - - - मां गंगा का अमृतमयी पवित्र जल... गंगा का जल... मात्र जल नहीं अमृत है... भारतीयों के लिये,समस्त संसार के लिये.... वरदान है औषधि है।  तन-मन को पवित्र करने वाली मां गंगे का अमिय जल अद्भुत है अतुलनीय विरासत है ऋषिकेश के लिए...   ऋषिकेश.... ऋषियों की भूमि... दिव्य शक्तियों की भूमि... ऋषिकेश की महिमा... मां का गंगा का अमृत जल... बद्रीनाथ.. केदारनाथ का आशीर्वाद... गंगोत्री - यमुनोत्री की शीतलता.. जो तन मन को शांति प्रदान करती है.... *त्रिवेणी घाट* - - - मां का पवित्रतम घाट... त्रिवेणी - - तीन नदियों का संगम... जहां तीन नदियों का जल *मां अलकनंदा* मां सरस्वती *भागीरथी का जल एक साथ मिलकर मां गंगा के अमृतमयी जल के रुप में प्रसाद देता है... 

नये रंग

मेरी मित्र अराधना जो बहुत ही खुशमिजाज इंसान थी।  लेकिन कुछ समय से गुमसुम, चुपचाप रहने लगी थी... यूं तो वो किसी से कुछ कहती नहीं थी... लेकिन मेरे बहुत कहने पर वो फूट-फूटकर रोने लगी...  फिर अराधना ने बताया कि जिसे वो अपना समझ रही थी... वो अपना नहीं निकला..  मेरा उपयोग किया जा रहा था, जब मुझे पता चला, तब मैं बहुत दुखी हुई.... दुख की बात थी.. अराधना को लगने लगा था, उसकी भी अहमियत है.. उसे भी कोई पसंद करता है। जब कोई आपको अपनापन दे.. आपका ध्यान रखे.. आपको पल-पल समझाता रहे... कि आपके लिए अच्छा क्या है बुरा क्या है.. तो निसंदेह आप उस व्यक्ति को अपना अजीज समझने लगते हैं। आप कई सपने देखने लगते हैं... आपके जीवन के तार आपके उस अजीज से जुड़ जाते हैं... फिर तो जागते - उठते हर पल आप उस अजीज व्यक्ति से संबंधित अपने जीवन की खुशियां ढूढ़ने लगते है। स्वर्ग सा सुंदर रामराज सा लगने लगता है सब कुछ.... किन्तु यह भी सच है कि, रामराज में भी मंथरा थी...  फिर यह तो कलयुग है... कलयुग में अनगिनत मंथरायें हैं... अब मर्याद की बात तो कहानियों में ही मिलती है... कैकयी तो हर कोई है यहाँ ...  बस...

शुभ संजोग नववर्ष मंगलमय

चैत्र प्रतिपदा शुक्ल पक्ष नव वर्ष नव आगमन  मां के शुभ नवरात्रों की  शुभकामनाएं,मां देने आयीं हैं दुआएं लेने आयीं हैं बलायें, मां के आशीर्वाद  की आ रही हैं सदायें.. स्वस्थ रहो  मस्त रहो... मां के आशीर्वाद से भर लो झोलियां  आ रही हैं भक्तों की टोलियां  लगा रहे हैं भक्त माता के जयकारों की बोलियां  आयो सब मिल माता की ज्योत जलायें  मन का अंधियारा दूर भगायें  शुभ मंगल बेला का लगा है रेला  खुशियों का लगा है मेला  जागृति की शुभ मंगल बेला  शुभ का दर्शन  शुभ कर्मों का लगा दो योग होगा जीवन में शुभ संजोग..  मां ही सृष्टि की पालनहार  मां की ममता से भरपूर रहे समस्त संसार।। 

सत्य की खोज

जानते तो सब हैं... पर जानना नहीं चाहते... भ्रम में ही रहना पंसद है सबको... जब भ्रम बेहद खूबसूरत हो... तो खूबसूरती में ही कुछ पल रह लेना बेहतर है.. हाथ में खिलौना पकड़ा कुछ पल बच्चों का दिल बहलता है... बेहतर है... बस ऐसे ही जीवन कट रहा है हम मनुष्यों का....   *सत्य की खोज... निकल पड़ी सत्य की खोज में... जाना *सत्य तो मौन है*... सत्य शांति का महासागर ** सत्य प्रदर्शन नहीं करता.. *सत्य तो स्वयं सिद्धा स्वयं में पूर्ण है.... आकर्षणों की भीड़ मे... उजालों की चकाचौंध में सत्य नहीं है..  यह सब तो नश्वर है.. दिखावा है, मन को बहलाने का साधन है... सत्य तो अजन्मा है...  सत्य मात्र किरणों का प्रकाश नहीं.... उजालों काअम्बार ही नहीं... **सत्य स्वयंमेव सूर्य है **जिसके  आगे हम सब राख हैं.... अस्तित्व मनुष्य का धरती पर... तन के पिंजरे में प्राण... प्राणों ने छोड़ा तन मिटा इंसान का नामोंनिशान...  इंसान के शुभ कर्म ही उसकी पहचान है... रह जाना भावों का समुंदर विचारों का कौलाहल... रसायनों का उठता कोहराम है.... माना की रसायनों की शक्ति.... शक्ति में ऊर्जा...  ऊर्जाओं का सं...