मानव मन की सुन्दर कोमल
भावनाओं का दाह संस्कार होते देख
मेरी संवेदनाऐं जागृत हो ह्रदय रुदन करने लगीं
आततायी संवेदन शून्य हो,
भावन रहित हो गये थे.. क्रूरता पशुता
राक्षस वृति को अपनाकर , आंतक
का घिनौना गंदा खेल रहे थे
घायल हुये थे कुछ लोग,
कुछ इस दुनिया से चले गये थे,
एक बार फिर तहलका मचा था
मर गयी थी,करूणा, दया,संवेदना
मची थी तबाही,सब कुछ अस्त -व्यस्त था
सब सहमें हुये से डरे हुये थे
बच्चे घरों में कैद थे,घरों में सन्नाटा
पसरा हुआ था, हर कोई भयभीत था
मनुष्य के भीतर पशुता, राक्षसवृत्ति जन्म ले
अत्याचार पर अत्याचार कर रही थी
मां की ममता कराह रही थी, दुहाई दे रही थी
उस मां की जो जगतजननी है, सबकी मां है..
कह रही थी मनुष्य जाति का मान रख..
निसर्ग से प्राप्त कोमल संवेदनाओं का
क्रन्दन मचा रहा है तबाही... अंहकार
किस बात का अंत तो सबका एक ही है।
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