खेल - खेल में खूब तमाशा
छूमंतर हुई निराशा
मन में जागती एक नई आशा
आशा जिसकी नहीं कोई भाषा
खेल- खेल में बढता है सौहार्द
आगे की ओर बढते कदमों का एहसास
गिर के फिर उठने की उम्मीद
सब एक दूजे को देते हैं दीद
मन में भर उत्साह
अपना बेहतर देने की जिज्ञासा
जिसका लगा दांव वो आगे आया
प्रथम ,द्वितीय एक परम्परा
जो खेला आगे बढा वो बस जीता
फिर भी कहती हूं ना कोई हारा ना कोई जीता
सब विजयी जो आगे बढ़कर खेले
उम्मीदों को लगाये पंख मन में भरी नव ऊर्जा
प्रोत्साहन की चढी ऊंचाईयां
जीवन यात्रा है बस खेल का नाम
दांव - पेंच जीने के सीखो
जीवन जीना भी एक कला है
माना की उलझा - उलझा सा है सब
जिसने उलझन को सुलझाया
जीवन जीना तो उसी को आया
खेल-खेल में खेल रहे हैं सब
ना कोई हारा ना कोई जीता
विजयी हुआ वो जोआगे बढकर खेला..
मक्सद है जीवन को खेल की भांति जीते रहो
माना की सुख- दुख ,उतार-चढ़ाव का होगा
आना - जाना ..वही तो है हर मोङ को पार
कर जाना हंसते मुस्कराते ,गुनगुनाते खेल जाना ..
खेल खेल में जीवन को जीना ही असली जीना है, अति सुंदर सृजन
ReplyDeleteजी अनिता जी असली होता आगे बढकर कर्म करना
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 01 अगस्त 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteजी जरुर यशोदा जी आभार मेरी लिखी रचना को पांच लिंक के आनन्द म् सम्मिलित करने हेतु
Deleteवाह! लाजवाब! ये जीवन खेल ही तो है ....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत सृजन
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