हथौड़ा भी कहां चैन से सोता है
मार - मार के चोट वो भी तो रोता है ।
निसर्ग के लावण्य पर, व्योम की मंत्रमुग्धता
श्रृंगार रस से पूरित ,अम्बर और धरा
दिवाकर की रश्मियां और तारामंडल की प्रभा
धरा के श्रृंगार में समृद्ध मंजरी सहज चारूता।
प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ
श्रृंगार के दिव्य रस से प्रकृति ने अद्भूत रुप धरा
भाव भीतर जगत में प्रेम का अमृत भरा
प्रेम से सृष्टि रची है, प्रेम से जग चल रहा।
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