मोहब्बत ही केन्द्र बिन्दु चलायमान यथार्थ सिन्धु
धुरी मोहब्बत पर बढ रहा जग सारा
मध्य ह्रदय अथाह क्षीर मोहब्बत
ना जाने क्यों मोहब्बत का प्यासा फिर रहा जग सारा
अव्यक्त दिल में मोहब्बत अनभिज्ञ भटक रहा जग सारा
मोहब्बत है सबकी प्यास फिर क्यों है दिल में नफरतों की आग
जाने किस कशमकश में चल रहा है जग सारा मोहब्बत ही जीवन की सबकी खुराक
संसार मोहब्बत,आधार मोहब्बत
मोहब्बत की कश्ति में सब हो सवार
मोहब्बत ही जीवन
मोहब्बत ही सबका अरमान मोहब्बत ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु
भव्य भाव क्षीर सिंधु,प्रेम ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु
मध्यवर्ती
हिय भीतर एक जलजला, प्राणी
हिय प्रेम अमृत कलश भरा ।
मधुर मिलन परिकल्पना,
भावों प्रचंड हिय द्वंद
आत्म सागर भर-भर गागर,हिय अद्भुत संकल्पना
संकल्पना प्रचंड हिय खण्ड -खण्ड
प्रेम ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु
बहुत सुंदर
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