अनुगामी हूं सत्य पथ का
अर्जुन सा लक्ष्य रखता हूं
माना की है संसार समुंदर
तथापि मुझे सरिता ही बनना है
गंगाजल सम अमृत बनकर
जनकल्याण ही करना है।
अनुसरण करुं प्रकृति का मैं तो
व्यग्र तनिक ना अंधड़ से होना है।
कल्प तरु सम उन्नत बनकर
हर क्षण प्रफुल्लित रहकर
परहित करना है।
अनुगामी हूं श्रीराम राज का
मर्यादा का अनुसरण करना है।
पथगामी हूं साकारात्मकता का
नाकारात्मकता में नहीं उलझना है।
प्रेरणादायी सुंदर प्रस्तुति
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