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Showing posts from August, 2021

अच्छा लगता है

 उम्र की परतों ने मुझे बड़ा बना दिया  अभी कहां हुई हूं मैं बड़ी  बचपन का अल्हड़ पन  मौज मस्ती में रमता मन  आज भी अच्छा लगता है  सखियों संग लड़कपन आज भी लौट जाना चाहता है  जाने क्यों बचपन में मन  अभी भी जीता है मुझमें मेरा बचपन  मिलते-जुलते रहा करो सखियों तुमसे मिलकर लौट आता है मुझमें मेरा जीवन .... तुम्हारे- हमारे दिल की आपबीती एक जैसी  उम्र की ऐसी की तैसी...उम्र की लकीरें  खींचती हैं लक्ष्मण रेखायें....अनदेखा कर सब लकीरों को  हां बस एक खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं हम  मरने से पहले तिल-तिल मरना नहीं मंजूर मुझको  उम्र की दहलीज पर नये खूबसूरत  रंग सजाना चाहते हैं हम    उम्र की आखिरी सांस तक मुस्कुराना चाहते है हम  और सारे जहां के लिए मुस्कुराने की वजह बनना चाहते हैं हम ,बस सवयं के लिये स्वयं की शर्तों पर जीवन जीना चाहते हैं हम  ।।

हम सरल हैं सरल ही रहने दो ..

सत्यम शिवम सुन्दरम  सत्य पर मुखौटे लगाना  आपना अस्तित्व मिटाना जैसे है  हम सरल हैं सरल ही रहने दो  चालाकियों का झूठा मुखौटा पहन  अपनी वास्तविकता छिपा स्वयं को कुरूप नहीं बनाना  सच को झूठ  .. झूठ को सच बनाना हमें नहीं भाता  सच को सच और गलत को गलत कहने की अदा ही  हमने नियति से सीखी है...  चालें चल अभी तो चल जायेगा . लेकिन जब ऊपर  वाला अपनी चाल चलेगा तो  सब बेहाल  हो जायेगा .. सत्य में सरसता ,सत्य में सरलता  सत्य ही शाश्वत ,सत्य हो सकता है आहत  किन्तु नहीं होता कभी पराजित  सत्य में निहित अदृश्य दिव्यता  पशुता का उपद्रव ,करता सब अस्त-वयस्त  मचती हाहाकार मानवता का तिरस्कार  चक्रधारी अवतरित होता  धनुष बाण तीर निशाना  विष का अंत होता  अमृत बरसता सत्य अमर है अमर रहता  शाश्वत सत्य ही जीवन आधार  सत्य से बंधा रचा-बसा समस्त संसार ..

भारत माता की जय

    *भारत माता की जय * *मेरा देश महान * *भारत भूमि *की आन में  और शान में   ये महज शब्द नहीं   मेरे मन के भाव हैं  देश प्रेम के प्रति   दिल में सुलगतीआग है   देश प्रेम की आग जो   मुझे भीतर ही भीतर   सुलगाती है आत्मा रोती है जब मेरे देश की जनता धर्म जाति और राजनीति के आड़ में हिंसा फैलाती है मेरे हृदय की आग मुझमें धधकती है जब किशोरियों की अस्मिताएं लूटी जाती हैं मेरे हृदय की आग ज्वाला बनकर मुझे मुझमें ही जलाती है जब सरहद पर तैनात भारत का वीर सपूत भारत भूमि की आन में शहीद हो जाता है मेरे भीतर देश प्रेम की आग मुझे मेरे देश की शान में कुछ लिखने को कुछ कहने को और भारत माता के सम्मान में भारत माता की जय बोलने को प्रेरित करती है । मेरे भीतर की आग मुझे भारत की आन में और शान में एक सभ्य सुशिक्षित मनुष्य  बनने को प्रेरित करती है ।

भारत माता का यशगान तिरंगा

मातृभूमि की शान में तिरंगा जब लहराता है  गीत खुशी के गाता है  भारत माता के यशगान गुनगुनाता है   प्राकृतिक सम्पदाओं की गोद में  सुख-समृद्धि से हर्षाता है  *भारत माता की जय *  यशगान गाता है‌  भारत माता की शान तिरंगा  भारत माता का अभिमान तिरंगा  हिमालय सिर का ताज , गोद में अमृतजल गंगा वास  तरक्की का आगाज,  स्वतंत्रता की खुशियों का हमराज तिरंगा  सुख-समृद्धि का प्रतीक तिरंगा  बलिदानों का गर्व तिरंगा  संस्कृति का हर्ष तिरंगा  भारत माता की आन तिरंगा    स्वतंत्रता की पहचान तिरंगा  बलिदानों का इतिहास तिरंगा  स्वतंत्रता की पहचान तिरंगा  भारत माता का‌ अभिमान तिरंगा । सुख-समृद्धि का इतिहास तिरंगा ।। भारत माता की शान में तिरंगा  लहरा रहा है गीत खुशी के गा रहा है  चांद पर आशियाने बना रहा है  अंतरिक्ष में अपनी कामयाबी के शिखर पा रहा है ।।

कहानी

आकाश ने सुनाई अपनी कहानी  घिर आया मेघों का घेरा काले घने ‌‌  मेघों से छाया घोर अंधेरा लुप्त हुआ सवेरा  रौद्र रुप धारण किया मेघों ने फिर घर्षण हुआ  दामिनी जब चमकी भय से कितनों का दिल ‌‌‌‌‌दहला    फिर बरसा आकाश से पानी अंतहीन अश्रुओं का सैलाब‌  वसुन्धरा हुई पानी -पानी ,प्यासी थी मानों कब से  समा गई  स्वयं में, आकाश से बरसता जल अमृत  हरी-भरी समृद्ध हुई वसुन्धरा ओढ़ी हरियाली की ओढ़नी  जलाशयों में भरा पानी , वृक्षों की ऊंची शाखाएं  शीतल समीर का झोंका पत्ता -पत्ता बजाता ताली मन हर्षाता , वृक्षों की डालियों पर पड़ गई पींगे  झूला झूलन को सखियों का मन रीझे ‌‌ आओ हरियाली का उत्सव आया  खुशहाली का सावन‌ आया मौसम यह मनभावन आया  देख वसुन्धरा पर हरियाली आकाश ने सतरंगी इन्द्रधनुष सजाया , नील गगन में उमड़ -घुमड़ कर फिर मेघों का समूह बनाया ‌,बरस-बरस‌कर सावन में सुख-समृद्धि की हरियाली ‌‌‌‌‌लाया।  वसुन्धरा पर आ गया था हरियाली उत्सव  आकाश से बरसता जल अमृत ‌ मौसम वर्षा का था नील गगन में मेघों का राज था मेघों का समूह गगन में ...

धरती और आकाश

  **धरती और आकाश ** ***आकाश ,और धरती का रिश्ता तो देखो कितना प्यारा है । ज्येष्ठ में जब धरती तप रही थी कराह रही थी ,सिसक रही थी तब धरती माँ के अश्रु रूपी जल कण आकाश में एकत्रित हो रहे थे।। 💐💐वर्षा ऋतु मैं.......... आकाश से बरस रहा था पानी लोग कहने लगे वर्षा हो रही है पर न जाने मुझे क्यों लगा आकाश धरती को तपता देख रो रहा है अपने शीतल जल रूपी अश्रुओं से धरती माँ का आँचल धो-धोकर भिगो रहा है धरती माँ को शीतलता प्रदान कर रहा है। धरती माँ भी प्रफुल्लित हो ,हरित श्रृंगार कर रही है वृक्षों को जड़ें सिंचित हो रही हैं। प्रसन्नता से प्रकृति हरियाली की चुनरिया ओढे लहलहा रही हैं । फल फूलों से लदे वृक्षों की लतायें रिम-झिम वर्षा के संग झूल रही हैं विभिन्न  आकृतियों वाले मेघ भी धरती पर अपना स्नेह लुटा रहे हैं। धरती और आकाश का स्नेह बहुत ही रोमांचित कर देने वाला