तो सोच मनुष्य जमाने में तेरी औकात क्या होती
नतमस्तक हो कर प्रणाम,धन्य तेरा जीवन कर सम्मान
मेरी पहचान के क्या कहने
मात्र कुछ रुपए पैसे और गहने
जीविका के साधन का सामान
मैं जाने क्यूं करता हूं बिन बात अभिमान
जबकि सबसे अनमोल है तन के भीतर प्राण
प्रकृति अनमोल सम्पदा वृक्ष,नीर,प्राण वायु अमूल्य धन
जिनसे धरती पर जीवित है जीवन
प्रकृति में निहित प्राणवायु का आधार
इन हवाओं का भूलूं कैसे उपकार इन हवाओं से रचा-बसा है मेरा जीवन संसार
इनके बिना मैं कुछ भी नहीं
मेरे अस्तित्व की खबर भी ना होती
अगर वातावरण में प्राणवायु ना होती
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