निसर्ग के लावण्य पर, व्योम की मंत्रमुग्धता श्रृंगार रस से पूरित ,अम्बर और धरा दिवाकर की रश्मियां और तारामंडल की प्रभा धरा के श्रृंगार में समृद्ध मंजरी सहज चारूता प्रेम जगत की रीत है, प्रेम मधुर संगीत है सात सुरों के राग पर प्रेम गाता गीत है प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ श्रृंगार के दिव्य रस से प्रकृति ने अद्भूत रुप धरा भाव भीतर जगत में प्रेम का अमृत भरा प्रेम से सृष्टि रची है, प्रेम से जग चल रहा प्रेम बिन कल्पना ना,सृष्टि के संचार की प्रेम ने हमको रचा है, प्रेम में हैं सब यहां प्रेम की हम सब हैं मूरत प्रेम में हम सब पले प्रेम के व्यवहार से, जगत रोशन हो रहा प्रेम के सागर में गागर भर-भर जगत है चल रहा प्रेम के रुप अनेक,प्रेम में श्रृंगार का महत्व है सबसे बड़ा - श्रृंगार ही सौन्दर्य है - सौन्दर्य पर हर कोई फिदा - - नयन कमल, मचलती झील, अधर गुलाब अमृत रस बरसे उलझती जुल्फें, मानों काली घटायें, पतली करघनी मानों विचरती हों अप्सराएँ... उफ्फ यह अदायें दिल को रिझायें प्रेम का ना अंत है प्रेम तो अन...
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सुंदर रचना
ReplyDeleteअभिलाषा जी नमन . विचारणीय विषय है
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 06 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी यशोदा जी आभार
Deleteसजग करती सुन्दर रचना...बधाई !!
ReplyDeleteआभार
Deleteचेतावनी सी देती रचना ।।
ReplyDeleteआभार
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