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आधुनिकता का अंधकार


मेरी ज़िन्दगी मेरी मर्जी 

वाह रे! पढ़ें लिखे मूर्खो.. गुलाम होते मूर्खो 

स्वयं को समझ होशियार लेते हो धुम्रपान के नशे का आधार तुम्हारी गुलामी का इकरार ..

 कमजोर मानसिकता का 

झूठा ..  जहरीला ... बदनुमा ... अंधकार .. 

मार्डन कहलाने की लत जो लगी है 

आधी- अधूरी..आड़ी -तिरछी ,कटी- फटी पोशाकें 

धुम्रपान के जहरीले धुऐं को अपनी सांसों में समाता 

 स्वयं को आधुनिक दर्शाने की होड़ में 

स्वयं के ही मौत का मौहाल तैयार करता 

गिरता- फिरता - स्वयं की चाल भी ना सम्भाल पाता 

होशियार बनने का दिखावा करता ..  

अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारता 

स्वयं की तबाही का मंजर बनाता 

आंखों पर बांधे आधुनिकता की पट्टी 

आज का युवा स्वयं मे जहरीले धुएं को भी समाने से  

परहेज़ नहीं करता ... माने है.. जाने है.. कहे है‌..

धुम्रपान की लत 

तुम्हारी गुलामी का इकरार .. कमजोर मानसिकता का 

झूठा ..  जहरीला ... बदनुमा ... अंधकार .. मत कर स्वीकार नशे का अंधकार ..  कमजोर मानसिकता का 

का झूठा हथियार कर रहे। स्वयं ही स्वयं पर अत्याचार

मार्डन कहलाने की लत जो लगी है 

आज का युवा आधुनिकता की दौड़ में आधुनिक दिखने.. और आधुनिक दिखाने की होड़ में कुछ भी करने को तैयार हैं .. 

अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को तैयार बैठा ...मूर्खो की भीड़ में अक्लमंद समझे है स्वयं को....

 महामूर्खों की श्रेणी में खड़ा है दिल दिमाग पर चढ़ा कर आधुनिकता का चश्मा मौत की खाई में धकेल रहा है स्वयं को .....






 

Comments

  1. सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. अभिलाषा जी नमन . ‌‌‌‌विचारणीय विषय है

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 06 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. सजग करती सुन्दर रचना...बधाई !!

    ReplyDelete
  4. चेतावनी सी देती रचना ।।

    ReplyDelete

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