ओढ कर कोहरे की श्वेत मखमली चादर
धरा ..आकाश कहीं गुम हुए
राहें नही आती नजर..
जाना है पर.. सफर पर ..
धीमे- धीमे बढाने होगें कदम
बैठा है कोहरा राह घेरकर
चलना होगा सम्भलकर
दिख रहा है कुछ कम -कम ना डर
सरक रही कम - कम मगर
ओढ़नी से झाँककर
भानू की किरणें उधर
दूर आकाश से आ रहा उजाला है तो
पर जरा सी देर से ...
हट जायेगा कोहरा मगर.. सम्भल ...
जल्द बाजी ना कर.. गम ना कर देर
देर हो थोडी अगर ...
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