जीवन में आगे बढने के लिए
बहाव संग ठहराव भी चाहिए
देने की चाह से कर्म प्रारम्भ करिये
मिलने की प्रक्रिया स्वतः सिद्ध होती जायेगी
सिर्फ भागते रहने से ही कुछ नहीं हासिल होगा
सरल गति से अपने अस्तित्व का एहसास कराओ
तुम्हारी उपयोगिता किसी के काम आनी चाहिए।
दौड़ रहा है हर कोई
आगे बढने की होङ में
जाने आगे बढ रहे हैं
या बह- बह कर स्वयं
का अस्तित्व ही मिटा रहे हैं
कहां जा रहे हैं ... आगे की ओर
ऊंचा उठने के लिए ..
गहराई बढाओ भीतर की
भीतर की गहराई से
आत्मा की ओजिस्वता बढती है।
जिससे शुभ संकल्प सिद्ध होते हैं
वाह!बहुत खूब रितु जी ....जरूरी है ठहराव भी ....।
ReplyDeleteजी नमन
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