नव दिवस का नव आगमन
तन- मन को करके पावन
जैसे आज फिर खिली है धूप
आज फिर धरा का निखरा है रूप
मन में भर शुभ भावनाओ का
शुभ स्वरूप पत्ता - पत्ता डाली -डाली
झूम रहें हैं ..शीतल समीर मधुर संगीत
प्रकृति की है रीत .. निस्वार्थ भाव से
हर पल देती रहती है ..निरंतर आगे की ओर बढने की प्रीत
मन को पावन करता झरनों का संगीत
ऊंचे- ऊंचे वृक्ष सफलता की जीत
मीठे रस से सरोबार वृक्षों पर झूलते फल
बीजों का महत्व जानों और मानों
जैसे बीज वैसे वृक्ष
जैसी सोच वैसा संसार
हमारे ही विचारों से रचा-बसा संसार ...
शुभ व्यवहार शुभ संस्कार
जीवन की अमूल्य सम्पदा मान ..
प्रकृति का कर सम्मान
इसी से मनुष्य जीवन की शान ..
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
नमन सुधा जी आभार
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