चाहत सबकी मोहब्बत है, फिर भी..
ना जाने क्यों नफरत की पगडंडियाँ बनाते हैं।
अपनों से ही मोहब्बत है..
जाने कहाँ से गलतफहमियां ढूढ लाते हैं।
जीवन की कश्ती में,अंहकार का चापू चलाते हैं।
स्वार्थ में अंधों की तरह अकेले ही महल बनाते हैं,
और महल की दिवारों से अकेले ही बातें करते हैं।
फिर घबराकर जमाने में लौट आते हैं
और अकेलेपन का गान गाते हैं।
मंजिल सबकी एक है,
चाहत सबकी एक है ,
चलो फिर हंस के रास्ते काटते हैं,
कुछ गीत गुनगुनाते हैं, कुछ ठहाके लगाते हैं।
जीने के खूबसूरत अंदाज बनाते हैं
जमाने को परस्पर प्रेम का पाठ पढाते हैं।
तेरे-मेरे की दूरियां मिटाते हैं
स्वार्थ को भूल जाते हैं,
परमात्मा नहीं किसी को कम-या
किसी को अधिक देता,
प्रकृति से यह बात सीख जाते हैं,
नदियाँ, सागर, वृक्ष, खेत-खलिहान
सभी तो एक सामान सबकी क्षुधा मिटाते हैं
चाहत सबकी मोहब्बत है
चलो फलदार वृक्ष लगाते हैं,
प्रेम के दरिया से जीवन को रसमय बनाते हें।
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