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Showing posts from July, 2024

अमृत वचन

 तन लागे पीड़ा ,  रोए उदास दृग नीरा ताके नयन उपवन, मन सताये पीरा ।। भूखे का अपराध ,सदा  रहे निष्पाप  अपराध का संताप ,अपराधी यही पश्चाताप।।   नयन नीर की पीर, बात बड़ी गम्भीर  ह्रदय पीड़ा का तीर ,चक्षु अश्रु अधीर  ।। विरह वेदना लघु रात, रुदन ह्रदय अश्रुपात झूठी जग की सब रीत प्रभु कृपा संभले हालात।। अभावों का दर्द ,‌बढें कदम शहर ओर स्वर्ण कनक छोड़, मिली ठोकर हर छोर   ।। छिपा संदेशे में दर्द,ह्रदय विदारक पैगाम ।    समा तस्वीर गया, ताका जिसे सुबह-शाम ।। अज्ञात शव दरिया बहे, परिचित रहे अंजान  । गिद्ध,जीव भोज करें समय बड़ा बलवान।।   पशुता का वरण मानवता दी भुला । मानव तुम ही देव चिंता रही सता।।  रहस्य मय जगत , रहस्य अदृश्य अनेक । दामिनी जल मध्य ,जलकण जैसे मेघ ।। वाणी का अपना मोल, मृदुभाषी मीठा बोल।‌‌          वाचाल हुआ बेमोल,मौन भाषा अनमोल ।। रहस्य मय जगत में, रहस्य अदृश्य अनेक । दामिनी जल मध्य में, आत्मबल धन सर्वश्रेष्ठ ।।  सेवा धर्म सर्वोपरि   समर्पण की शक्ति बढ़ी । धर्म मर्...

जीत का बिगुल बजा

 जीवन  में आगे बढने के लिए   बहाव संग ठहराव भी जरुरी है   देने की चाह से कर्म  प्रारम्भ  करिये  मिलने की प्रक्रिया स्वतः सिद्ध  होती जायेगी  डर के आगे जीत है  चुनौतियां आपके दरवाजे पर आकर   निरंतर  दस्तक देगीं  आपको धमकायेगीं  आपके हौसलों को इसकदर कमजोर कर   देगीं कि आप टूट कर  बिखर जाओ ... पर आप टूटना नहीं .. उम्मीद  की एक किरण  अपने संग रखना ... अपने हौसलों के पंखो को उड़ान के लिए  तैयार  रखना  और  कभी भी मौका देखकर   उङ जाना दूर आसमान  की उंचाईयों में  और रच देना इतिहास  ... अक्सर  दुआओं में कहता है यह मन  थोङा आप मुस्कराओ थोङा हम मुस्कराये   एक दूजे शुभचिंतक बन जाये  ऊपर वाले ने भेजा है देकर जीवन   फिर क्यों ना पुष्पों सा जीवन बिताएं हम  फलदार वृक्ष बन जायें हम नदियों का जल बन जायें हम ..  आंगन की शोभा बन बागों की रौनक बढायें हम  हवाओं में घुल- मिल सुगन्धित संसार कर जायें हम अक्सर ...

उद्देश्य होना जरूरी है

उद्देश्य से ही जीवन का अर्थ है, बिना उद्देश्य जीवन व्यर्थ है।  उद्देश्य ही जीवन का माध्यम है, उद्देश्य से जीवन सुगम्य है। उद्देश्य के रस ने जीवन में रस घोला  मन के सभी गुण दोष भीतर से बोला।  उद्देश्य जीवन को धारा प्रवाह देता है। उद्देश्य ही जीवन का औचित्य बताता है।  विषय का चयन मनुष्य जीवन के चरित्र को दर्शाता, विषय ही मनुष्य जीवन के अर्थ को बतलाता। शुभ विषय मनुष्य जीवन का उद्धार करता अशुभ विषय वहीं पाताल की ओर धकेलता।  शुभ विषय मनुष्य को सही राह दिखाता दुविधाओं से लड़ आगे बढ़ने की राह दिखाता। किस मनुष्य ने किस विषय का चयन किया  उसके चरित्र का दर्पण बोलता. फिर दर्पण ही जीवन के सच के रहस्य खोलता। 

Teej

ऊं नमो शिवाय ऊं नमः शिवाय   शिवमय है समस्त संसार  शिव ही जीवन का आधार  ढूंढता हूं शिव को आंखें मूंद  जबकि शिव तुझमें- मुझमें भीतर- बाहर  दिव्य ज्योत का लो आधार  तभी होगा शिव से होगा एकीकार   ऊं नमः शिवाय ऊं नमः शिवाय ।।  खनकती चूड़ियों का आगाज   सुहागनों के हाथों में रचती पवित्र    मेहंदी की सौगात    आओ सखियों   झूमे नाचें गाएं आया है हरियाली तीज का त्यौहार      **सावन का मौसम आया संग अपने सुख-समृद्धि लाया वर्षा की फुहार, हरा-भरा सुख-समृद्धि.  दोस्ती की परम्परा फरिश्तों के जहां से आयी होगी  तभी तो बिना किसी बंधन के धरती की खूबसूरती बढ़ायी होगी तभी तो दोस्तों की महफिल में बचपने की फितरत आयी होगी  मेरे आने की आहट भी वो पहचानता है  वो मेरी फिक्र करता है  वो अक्सर दिन रात मेरा ही जिक्र करता है मुझे बेझिझक डांटता है  मुझ पर हुक्म भी चलाता है  मेरी कमियां गिन गिन कर मुझे बताता है  कभी कभी वो मुझे मेरा दोस्त  मेरा दुश्मन सा लगता है  वो मेरा मित्र मेरे...

आकाश का वसुंधरा को दुलार

 आकाश का वसुंधरा को दुलार  मानों प्रकृति पर लुटाती जी भर प्यार  सुख-समृद्धि से भरपूर रहे प्रकृति का आंचल  वसुंधरा की मिटाने को तपन  सावन में फिर जी भर बरसी वर्षा की फुहार  हरियाली का बिछा के कालीन  वृक्षों पर लदी फलों की भरमार  सुख-समृद्धि से भरपूर रहे  वसुंधरा का संसार  सावन में झूम-झूम बरसा  आसमान से वर्षा की रस बहार  आनन्दित वन कानन,बागों में हरियाली की कतार  मानों प्रकृति लुटाती हो वसुंधरा पर जी भर प्यार... 

पशुओं को आवारा ना छोडें

   जरा सोचिए - - - -   पशुओं को सड़कों पर आवारा छोड़ने की परम्परा को बदलना होगा... यह तो वही हो गया जब तक कोई भी वस्तु या जानवर आपके काम का है.. उससे काम निकालो.. और जब काम की ना हो तो सडकों पर छोड़ दो.... हे भगवान आज आप ऐसा किसी पशु के साथ करते हैं.. कल कोई आपके साथ भी ऐसा करे तो क्या होगा?  जरा सोचिए  ?  भारत एक संस्कृति प्रथान देश है... यहां सभी जीवों को जीने का सामान अधिकार है। सभी जीवों के अंदर आत्मा है, चाहे वह मनुष्य हो, पशु हो पक्षी हो या अन्य कोई जीव... किसी भी जीव को सताना, हत्या करना महापाप है। निस्संदेह सत्य... किन्तु प्रत्येक प्राणी का स्वभाव अलग-अलग है... तभी तो हिंसक जानवर, शेर, हाथी, चीता, आदि जंगलों में रहते हैं। हां कहते हैं जानवरों को अगर प्रेम से पाला जाये.. तो वो भी मनुष्य भावों को समझते हैं... जैसे गाय, कुत्ता आदि यह जानवर घरों में भी पाले जाते हैं... गायों के रहने के लिए अलग गौशालाऐं भी बनायी जाती हैं।  मेरा आज का विषय थोड़ा अलग है... हमारे यहां कुछ जानवरों का उपयोग ना होने पर उन्हें आवारा छोड़ दिया जाता है... जिसमें... गाय,...

दोस्ती की परम्परा

   06, 2017   1 टिप्पणी:  इसे ईमेल करें इसे ब्लॉग करें! Twitter पर शेयर करें Facebook पर शेयर करें Pinterest पर शेयर करें मित्र मेरी फिक्र दोस्ती की परम्परा फरिश्तों के जहां से आयी होगी  बिना किसी बंधन के धरती की खूबसूरती बढ़ायी होगी तभी तो दोस्तों की महफिल में बचपने की फितरत आयी होगी  मेरे आने की आहट भी वो पहचानता है  वो मेरी फिक्र करता है  वो अक्सर दिन रात मेरा ही जिक्र करता है मुझे बेझिझक डांटता है  मुझ पर ही हुक्म चलाता है  मेरी कमियां गिन गिन कर मुझे बताता है  कभी कभी वो मुझे मेरा हम मीत मेरा दुश्मन सा लगता है मगर वो मुझे अपने आप से भी अजीज है वो मेरा मित्र मेरे जीवन का इत्र जिसका मैं  अक्सर और वो मेरा अक्सर करता है जिक्र  उसे मेरी और मुझे उसकी हरपल रहती है फिक्र... 

सावन का मौसम है आया

 आओ सखियों झूमें नाचे गायें  आया सावन तीज का त्यौहार  पक्षियों के चहकने की आवाज   खनकती चूड़ियों का आगाज   सुहागनों के हाथों में रचती पवित्र    मेहंदी की सौगात    आओ सखियों   झूमे नाचें गाएं आया है हरियाली तीज का त्यौहार      **सावन का मौसम आया संग अपने सुख-समृद्धि लाया वर्षा की फुहार, हरा-भरा सुख-समृद्धि  से भरपूर रहे संसार...  वृक्षों की डालियां अपनी बाहें फैलाती  झूला झूलन को सखियों को बुलाती प्रकृति संग सखियां भी सोलह श्रृंगार करती हैं वृक्षों की ओट में बैठ कोयल भी मीठा राग सुनाती है समस्त वातावरण संगीतमय हो जाता है चूड़ियों की खनक मन को लुभाती है हरियाली तीज को देवी पार्वती ने भी सोलह श्रृंगार और कठिन उपवास कर शिव को प्रसन्न किया था उस दिन से हरियाली तीज की शुभ बेला पर सुहागनें उपवास नियम करती हैं वृक्षों पर झूलों की पींगे जब चड़ती हैं आसमान की ऊंचाइयों में सखियां झूल-झूल कर हंसती है धरती झूमती है प्रकृति निखरती है पक्षीयों की सुमधुर ध्वनियों से सावन में प्रकृति समृद्ध और संगीतमय हो जाती है**

ऊं नमः शिवाय

ऊं नमो शिवाय ऊं नमः शिवाय   शिवमय है समस्त संसार  शिव ही जीवन का आधार  ढूंढता हूं शिव को आंखें मूंद  जबकि शिव तुझमें- मुझमें भीतर- बाहर  दिव्य ज्योत का लो आधार  शिव से होगा एकीकार   भय पर...  पाकर विजय   बना मैं अजेय ...  भय- भ्रम सब का अंत  दुविधाओं का डर नहींं   दौर अग्नि परीक्षाओं का  हुए सब खोट बाहर  शिव स्तुति उपासना का आधार  शिव शक्ति दिव्य ज्योति से जब हुआ एकीकार  मिला जीवन को सुंदर आकार  कुन्दन बना ,कोयले  की खानों  में ज्यों एक हीरा नायाब जैसे  सृष्टि कर्ता जब संग अपने ‌  जीवन के अद्भुत रंग अपने  शिव शक्ति को स्मरण कर ऊं नमो शिवाय का मंत्र रख संग अपने  ऊं नमो शिवाय ।।

अपने मालिक स्वयं बने

अपने मालिक स्वयं बने, स्वयं को प्रसन्न रखना, हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है..किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी ना होने दें।  परिस्थितियां तो आयेंगी - जायेंगी, हमें अपनी मन की स्थिति को मजबूत बनाना है कि वो किसी भी परिस्थिति में डगमगायें नहीं।  अपने मालिक स्वयं बने,क्यों, कहाँ, किसलिए, इसने - उसने, ऐसे-वैसे से ऊपर उठिये...  किसी ने क्या कहा, उसने ऐसा क्यो कहा, वो ऐसा क्यों करते हैं...  कोई क्या करता है, क्यों करता है,हमें इससे ऊपर उठना है..  कोई कुछ भी करता है, हमें इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए.. वो करने वाले के कर्म... वो अपने कर्म से अपना भाग्य लिख रहा है।  हम क्यों किसी के कर्म के बारे मे सोच-सोचकर अपना आज खराब करें...  हमारे विचार हमारी संपत्ति हैं क्यों इन पर नकारात्मक विचारों का  दीमक लगाए चलो कुछ अच्छा  सोंचे  कुछ अच्छा करें "।💐 👍मेरा मुझ पर विश्वास जरूरी है , मेरे हाथों की लकीरों में मेरी तकदीर सुनहरी है । मौन की भाषा जो समझ   जाते है।वो ख़ास होते हैं ।  क्योंकि ?  खामोशियों में ही अक्सर   गहरे राज होते है....

परिस्थितियां

परिस्थितियों की बात तो क्या कहिये  बड़ी ही जिद्दी, अड़ियल....  बिडम्बना तो देखो, हम भी तो कम नहीं,  परिस्थिति जो चाहती है, वो हमें मंजूर नहीं  जो हम चाहते हैं, वो परिस्थितियों को मंजूर नहीं  कभी हम परिस्थिति के अनुरूप नहीं, कभी परस्थिति हमारे अनुरूप नहीं...  परिस्थिति कभी किसी के अनुसार नहीं चलती  जब हम परिस्थितियों के अनुसार चलने लगे, परिस्थितियां के रंग बदलने, पहले हम परिस्थितियों के अनुसार चलते थे, अब परिस्थितियां कुछ  हमारे हक में होने लगी, शायद हमें भी परिस्थिति के अनुसार जीना आ गया...  परिस्थितियों को हमारे रंग में ढलना आ गया..  हमें भी चलना आ गया, जीवन जीने का ढंग आ  गया, परिस्थितियों को हमारे अनुरुप ढलना आ  गया, हमें भी हर रंग में रंगना आ गया।  परिस्थितियों संग तालमेल बिठाना आ गया। 

मेघ - मल्हार की धुन पर

                                                             प्रकृति ने मेघ-मलहार जब गाये   रोम-रोम नील-गगन का रोमांचित हो गया घूमड-घूमड बादल घिरआये....  बरसे आसमान से वर्षा की बूंदों की फुहार हरा-भरा हो  गया संसार  नाचे मन मयूर बनकर कोयल की कूक की रसभरी आवाज  वृक्षों पर पकते मीठे फलों की मिठास  वातावरण में रस घोले मधुर एहसास  वृक्षों की डालियां झूमें  पत्ता -पत्ता बजाये ढोलक की थाप  झम झमाझम वर्षा के बूंदों की आवाज  भाव-विभोर हो प्रकृत्ति करे वसुंधरा का साजो - श्रृंगार  जब-जब बरसे आसमान से वर्षा  मानों आकाश लुटाये वसुंधरा पर बेशुमार प्यार...  प्रकृति मेघ-मलहार जब गाये  अम्बर भी वसुंधरा पर जी भर अपनत्व लुटाये  वसुंधरा में हरित क्रांति ले आये  हरे-भरे वृक्ष झूम-झम लहराये  नदियां संगीत सुनायें  प्रकृति मेघ-मलहार जब गाये।।  , 

खिलौना जिन्दगी

खिलोने सी जिन्दगी,  पर खिलौना भी तो नहीं जिन्दगी  जितनी चाबी भरी है, उतनी ही चलेगी।  फिर भी स्वेच्छा से जीने का नाम है जिन्दगी  खिलौना सी जियो पर दिल ना किसी का तोड़ो माना की सबको रिझाता है खिलौना हंसता है, बोलता है, मुस्कराता है मन बहलाता है  पर भीतर एहसासों का गहरा  तूफान भी भरा होता है  जो सहलाता, कहराता है, हंसाता है, रुलाता है  पर खिलौना नहीं जिंदगी इसमें भावों का गहरा तूफान है  जो दिल को दर्द देता है.  खिलौने सी जिन्दगी पर स्वेच्छा से  जीने का वरदान, कुछ बेहतर कर दिखाने का जूनून है जिन्दगी  मनुष्य रुपी जीवन का खिलौना  दिव्य ऊर्जाओं का स्रोत है जिन्दगी  खिलौने से तन में, गहरे  एहसासों का स्रोत है जिन्दगी  दिल चीर के रख देता है जब  कोई खिलौना समझ तकलीफ देता है  तोड़ने की हद तक चला जाता है  खिलौने तन में सच्चे भावों का गहरा संमुद्र   अमूल्य रत्नों का भाव है जिन्दगी।।   

सब स्वयं में पूर्ण हैं

अपूर्णता से पूर्णता की और भटकता मानव भटकता है पूर्णता पाने के लिए  अपूर्ण जगत में खोजता है पूर्णता  पूर्णता कहां से लाये, अपूर्ण हैं सभी  बाहर खोजते - खोजते जब थक जाता है  तब शांत अवस्था में मिलता है  शांति का द्वार स्वयं के ही भीतर  अचंभित, विस्मित, फिर माया का प्रवाह  कुछ पल में फिर गुमराह   क्यों भटकता है मानव दर ब दर सब तेरे भीतर है, बाहर सब आकर्षण है माया है।  पहुंच तेरी पहले हो अपनी ओर सब कुछ मिल जायेगा। बाहर कुछ नहीं भीतर पूर्णता है   बाहर सब अपूर्ण हैं तभी तो  भटक रहें हैं, जो स्वयं अपूर्ण है वह किसी ओर को क्या पूर्ण करेगा। और स्वयं भी क्या पूर्ण होगा। सब स्वयं में पूर्ण हैं। 

प्रयत्न की कूंजी

  प्रयत्न की कूंजी से ताला   एक बार में खुल जाये यह   आवश्यक नहीं,कई बार बहुत  अधिक प्रयास करने के बाद भी  ताला नहीं खुलता..लेकिन प्रयत्न तो  हम फिर भी करते हैं.. ताला ना टूटे  सब यही चाहते हैं।  सूझ-बूझ से विवेकी बुद्धि का  उपयोग भी करना पड़ता है रोना  नहीं बहुत कुछ करना पड़ता है,  फिर भी अंधविश्वास में नहीं घिरना  होता है....  मन कई द्वन्द्व आते हैं घेरा बनाते हैं  चक्रव्यूह में फंसने नहीं निकलने  की तरकीब आनी चाहिए।