प्रयत्न की कूंजी से ताला
एक बार में खुल जाये यह
आवश्यक नहीं,कई बार बहुत
अधिक प्रयास करने के बाद भी
ताला नहीं खुलता..लेकिन प्रयत्न तो
हम फिर भी करते हैं.. ताला ना टूटे
सब यही चाहते हैं।
सूझ-बूझ से विवेकी बुद्धि का
उपयोग भी करना पड़ता है रोना
नहीं बहुत कुछ करना पड़ता है,
फिर भी अंधविश्वास में नहीं घिरना
होता है....
मन कई द्वन्द्व आते हैं घेरा बनाते हैं
चक्रव्यूह में फंसने नहीं निकलने
की तरकीब आनी चाहिए।
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