प्रकृति ने मेघ-मलहार जब गाये
रोम-रोम नील-गगन का रोमांचित हो गया
घूमड-घूमड बादल घिरआये....
बरसे आसमान से वर्षा की बूंदों की फुहार
हरा-भरा हो गया संसार
नाचे मन मयूर बनकर
कोयल की कूक की रसभरी आवाज
वृक्षों पर पकते मीठे फलों की मिठास
वातावरण में रस घोले मधुर एहसास
वृक्षों की डालियां झूमें
पत्ता -पत्ता बजाये ढोलक की थाप
झम झमाझम वर्षा के बूंदों की आवाज
भाव-विभोर हो प्रकृत्ति करे
वसुंधरा का साजो - श्रृंगार
जब-जब बरसे आसमान से वर्षा
मानों आकाश लुटाये वसुंधरा पर बेशुमार प्यार...
प्रकृति मेघ-मलहार जब गाये
अम्बर भी वसुंधरा पर जी भर अपनत्व लुटाये
वसुंधरा में हरित क्रांति ले आये
हरे-भरे वृक्ष झूम-झम लहराये
नदियां संगीत सुनायें
प्रकृति मेघ-मलहार जब गाये।।
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