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मम्मी तुम क्या ही करती हो


मम्मी तुम क्या ही करती हो 

दिन भर इधर से उधर घूमती रहती हो 

जाने क्या ठीक करती रहती हो.. 

रहने दिया करो जो सामान जहाँ पड़ा हो.. 

जिसे जरूरत होगी खुद ढूढ लेगा... 

तुम हर रोज सामान को वैसे ही सम्भाल कर  

रख देती हो... मम्मी तुम्हें गुस्सा नहीं आता? 

अपना फर्ज कह सब कुछ सह लेती हो.. 

मम्मी तुम क्यों इतनी 

चिंता करती हो..? 

घर का कोई सदस्य ढंग 

से खाना ना खाये तो तुम उदास हो जाती हो.. 

अगले दिन उसका मनपसंद खाना बना देती हो.. 

बच्चों की परवरिश में अपना सुख-चैन भी भुला

 देती  हो.. उन्हें पढाती हो.. पल-पल उनकी हर 

क्रिया पर पैनी नजर रख उनका सही मार्गदर्शन

करती हो.. उन्हें ज्ञान की बातें सिखा आदर्श की 

कहानियां सुना उनका मानसिक विकास करती हो.. 

सुबह -सुबह उठकर 

अपनी सेहत का वास्ता देकर 

बाहर टहलने जाती हो.. टहलती कम

दोस्तों के संग गप्पे ही ज्यादा लड़ाती हो... .

सबकी पंसद का ध्यान रखकर 

एक डोर बेल पर दूध वाला.. 

दूसरी पर सब्जी वाला, तीसरी पर गाड़ी धोने वाला 

चौथी पर कूड़े वाला, पांचवी पर माली.. 

कभी कोई मिलने वाला कभी कोई पडोसी 

डोर बेल पर दरवाजा खोलते-खोलते 

भाग-दौड़ ही कर लेती हो.. 

बड़ी समझदार हो मम्मी तुम जिम के 

पैसै भी बचा लेती हो.. 

 सबके मैले कपड़े इक्कठे कर धोने को 

मशीन में ही तो डाल धो देती हो..

धुलने पर धूप में ही तो डालती  हो.. 

उस बीच दोपहर के खाने की तैयारी में

जुट जाती हो दाल, सब्जी, रोटी चावल, सलाद 

और दिन त्यौहार में मीठा ही बना लेती  हो... 

मां तुम सबकी सेहत का ध्यान भी रख लेती हो 

अपनी सेहत ही तो बिगाड़ लेती हो

सबके कपड़े प्रेस कर समेटकर उनकी

अलमारियों में ही तो रखती हो... 

मेहमान नवाजी भी खूब करती हो 

संग दोस्तों के कट्टी पार्टी भी चली जाती हो 

घर में कोई बिमार पड़ जाये तो 

खुद डाक्टर भी बन जाती हो 

कपड़ों से भरी अलमारी में भी पहनने को 

कपड़े ढूढती हो.... 

मां तुम भी गजब हो, सारा दिन कुछ ना कुछ

करती रहती हो... फिर भी सुनती हो तुम 

दिन भर घर में करती क्या हो.. 


 




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