सर्वप्रथम मां शारदे को नमन
बसंत पंचमी त्यौहार है, बसंती फुहार का
प्रकृति के नव आगमन का..
ज्ञान की देवी माँ शारदे की उपासना का
जीवन में आगे बढ़ने का..
यह मौसम है प्रकृति के श्रृंगार का..
हमारी प्रकृति इतनी सुन्दर है कि
नील गगन भी पलक नहीं झपकता
एक बार तो नील गगन प्रकृति का सौम्य रुपदेख उस पर मोहित हो गया और लिख डाली एक कविता - -
श्रृंगार रस से पूरित ,अम्बर और धरा
दिनकर की रश्मियां और तारामंडल की प्रभा
प्रेम जगत की रीत है, प्रेम मधुर संगीत है
श्रृंगार के दिव्य रस से प्रकृति ने अद्भूत रुप धरा
भाव भीतर जगत में प्रेम का अमृत भरा
प्रेम से सृष्टि रची है, प्रेम से जग चल रहा
प्रेम बिन कल्पना ना,सृष्टि के संचार की
प्रेम ने हमको रचा है, प्रेम में हैं सब यहां
प्रेम की हम सब हैं मूरत प्रेम में हम सब पले
प्रेम के व्यवहार से, जगत रोशन हो रहा
प्रेम के सागर में गागर भर-भर जगत है चल रहा
प्रेम के रुप अनेक,प्रेम में श्रृंगार का
महत्व है सबसे बड़ा - श्रृंगार ही सौन्दर्य है -
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