सपनों के पंख लगाकर
परियों के देश चली
उङी - उङी रे पतंग मेरी
बादलों के संग चली
चांदी की पालकी पर
चंदा मामा के घर चली
ऊंची-ऊंची उङान भरी
उडी- उङी रे पतंग मेरी
सपनों के जहां चली
ढील देते मैं ढील देते चली
पतंग स्वतंत्रता से जाने कौन से
जहां चली .. उङी- उङी पतंग मेरी
एक जहां से दूजे जहां चली
विदाई की घङी में
डोर टूटी और पतंग मेरी नये जहां चली।

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