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Showing posts from April, 2025
#किस मनुष्य ने किस विषय का चयन किया है उसके चरित्र का दर्पण बोलता है, फिर दर्पण ही जीवन के सच के रहस्य खोलता है।   #यूं ना कहो हम बदल रहे हैं  वक़्त के अनुसार अपने किरदार में  ढल रहे हैं जीवन जीने की कला में  निपुण हो रहे हैं  #रहस्य मय जगत ,रहस्य अदृश्य अनेक । दामिनी जल मध्य ,जलकण जैसे मेघ ।। #वाणी का अपना मोल, मृदुभाषी मीठा बोल।‌‌          वाचाल हुआ बेमोल,मौन भाषा अनमोल ।। #इंसान होना भी कहां आसान है कभी अपने कभी अपनों‌ के लिए  रहता परेशान है मन‌ में भावनाओं ‌‌‌‌‌का   उठता तूफान‌ है कशमकश रहती सुबह-शाम है बदनाम होताा‌‌ इंसान है, इच्छाओं का सारा काम है # अपने मालिक स्वयं बने,स्वयं को प्रसन्न रखना, हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है..किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी ना होने दें।  #आत्म विश्वास यानि स्वयं में समाहित ऊर्जा को             पहचानना और उसे उजागार करना ।    तन की दुर्बलता तो दूर हो सकती है     परन्तु मन की दुर्बलता मनुष्य को जीते जी मार  ...

भावों का भंवर

भावों के भवंर में किसी ने  एक कंकड़ उछाल कर मारा होगा  तब भावों के समूह से कुछ अश्रु बहे होगें  जिनसे नदियाँ, झरने समुद्र बने होगें।  विचारों के ज्वालामुखी की ऊठापटक से  कहीं पहाड़ कहीं गहरी खाईयां बनी होगी.  जहाँ ठहरी होगी ज्वाला वहां समतल  बन गया होगा।  भाव ना होते तो इंसान भी कहां इंसान होता  एक बुत सा सारा जहाँ होता।  भावों ने ही मचाया कोहराम है  इंसान तो यूँ ही बदनाम है  भावों का कोहराम ही तो है,  जो समुंदर की लहरों में उठापटक  चलती रहती है।  भावों के कोष्ठ की आह से कराह के अश्रु का दरिया बहा होगा  तभी तो कहीं नदिया कहीं झरना बना होगा और वही सब समुंदर हुआ होगा।