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Showing posts from April, 2025

भावों का भंवर

भावों के भवंर में किसी ने  एक कंकड़ उछाल कर मारा होगा  तब भावों के समूह से कुछ अश्रु बहे होगें  जिनसे नदियाँ, झरने समुद्र बने होगें।  विचारों के ज्वालामुखी की ऊठापटक से  कहीं पहाड़ कहीं गहरी खाईयां बनी होगी.  जहाँ ठहरी होगी ज्वाला वहां समतल  बन गया होगा।  भाव ना होते तो इंसान भी कहां इंसान होता  एक बुत सा सारा जहाँ होता।  भावों ने ही मचाया कोहराम है  इंसान तो यूँ ही बदनाम है  भावों का कोहराम ही तो है,  जो समुंदर की लहरों में उठापटक  चलती रहती है।  भावों के कोष्ठ की आह से कराह के अश्रु का दरिया बहा होगा  तभी तो कहीं नदिया कहीं झरना बना होगा और वही सब समुंदर हुआ होगा।