भावों के भवंर में किसी ने
एक कंकड़ उछाल कर मारा होगा
तब भावों के समूह से कुछ अश्रु बहे होगें
जिनसे नदियाँ, झरने समुद्र बने होगें।
विचारों के ज्वालामुखी की ऊठापटक से
कहीं पहाड़ कहीं गहरी खाईयां बनी होगी.
जहाँ ठहरी होगी ज्वाला वहां समतल
बन गया होगा।
भाव ना होते तो इंसान भी कहां इंसान होता
एक बुत सा सारा जहाँ होता।
भावों ने ही मचाया कोहराम है
इंसान तो यूँ ही बदनाम है
भावों का कोहराम ही तो है,
जो समुंदर की लहरों में उठापटक
चलती रहती है।
भावों के कोष्ठ की आह से
कराह के अश्रु का दरिया बहा होगा
तभी तो कहीं नदिया कहीं झरना बना होगा
और वही सब समुंदर हुआ होगा।
Comments
Post a Comment