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#किस मनुष्य ने किस विषय का चयन किया है
उसके चरित्र का दर्पण बोलता है, फिर दर्पण ही
जीवन के सच के रहस्य खोलता है। 


 #यूं ना कहो हम बदल रहे हैं 
वक़्त के अनुसार अपने किरदार में 
ढल रहे हैं जीवन जीने की कला में 
निपुण हो रहे हैं 


#रहस्य मय जगत ,रहस्य अदृश्य अनेक ।
दामिनी जल मध्य ,जलकण जैसे मेघ ।।


#वाणी का अपना मोल, मृदुभाषी मीठा बोल।‌‌          वाचाल हुआ बेमोल,मौन भाषा अनमोल ।।



#इंसान होना भी कहां आसान है
कभी अपने कभी अपनों‌ के लिए 
रहता परेशान है मन‌ में भावनाओं ‌‌‌‌‌का  
उठता तूफान‌ है कशमकश रहती सुबह-शाम है
बदनाम होताा‌‌ इंसान है, इच्छाओं का सारा काम है


#अपने मालिक स्वयं बने,स्वयं को प्रसन्न रखना, हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है..किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी ना होने दें। 



#आत्म विश्वास यानि स्वयं में समाहित ऊर्जा को             पहचानना और उसे उजागार करना ।
   तन की दुर्बलता तो दूर हो सकती है 
   परन्तु मन की दुर्बलता मनुष्य को जीते जी मार 
   देती है ।इसलिए कभी भी आत्म विश्वास ना खोना 
   मेरे साथियों ,क्योंकि आत्मविश्वास ही तुम्हारी 
   वास्तविक पूँजी हैजो हर क्षण तुम्हें प्रेरित करती है। 

# ए चांद कुछ तो विषेश है तुममें 
जिसने देखा अपना रब देखा तुममें  
ए चाॅद तुम तो एक हो 
तुम्हें चाहने वाले अनेक
ईद का चांद हो, सुहागन का वरदान हो
भाईदूज का चांद हो ना जाने क्यों 
तूम्हें चाहने वालों ने अलग-अलग किया स्वयं को। 


#रास्ते चलना सिखाते हैं,गिरना-समभलना                                                       फिर उठ कर चलना सिखाते हैं रास्ते                                                          मंजिलों के साक्षी रास्ते खट्टे-मीठे तजुर्बों के साथी                                              रास्ते ही जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं                                                          सुख  -दुख का किस्सा हैं ।


#भाव ना होते तो इंसान भी कहां इंसान होता                                               क बुत सा सारा जहाँ होता।.                                                                भावों ने ही मचाया कोहराम है                                                                      इंसान तो यूँ ही बदनाम है .....

#मौन की भी भाषा होती है 
सत्य,सटीक और निर्भीक

#मौन की भी भाषा होती है
आंखे भी बोलती है
शब्दों की भी जुबान होती 
किन्तु जो शब्द बोलते नहीं 
वो बहुत कुछ कह जाते हैं।

#मौन भी बोलता है,सत्य ही तो है
कभी कोई सजीव सा चित्र भी बहुत कुछ कह 
जाता है, एक अनकही कहानी 
कभी कोई संदेश कभी किसी का दर्द। 

#खिलोने सी जिन्दगी,                                                                         पर खिलौना भी तो नहीं जिन्दगी.                                                                   जितनी चाबी भरी है,उतनी ही चलेगी जिन्दगी 
फिर भी स्वेच्छा से जीने का नाम है जिन्दगी 
खिलौना सी जियो पर दिल ना किसी का तोड़ो। 

 #अभावों का दर्द ,‌बढें कदम शहर ओर
स्वर्ण कनक छोड़, मिली ठोकर हर छोर   ।।

#तारीफ़ करना भी एक गुण है
तारीफ भी वही कर सकता है
जो नम्र है, अंहकार रहीत है.. 

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अपने मालिक स्वयं बने

अपने मालिक स्वयं बने, स्वयं को प्रसन्न रखना, हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है..किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी ना होने दें।  परिस्थितियां तो आयेंगी - जायेंगी, हमें अपनी मन की स्थिति को मजबूत बनाना है कि वो किसी भी परिस्थिति में डगमगायें नहीं।  अपने मालिक स्वयं बने,क्यों, कहाँ, किसलिए, इसने - उसने, ऐसे-वैसे से ऊपर उठिये...  किसी ने क्या कहा, उसने ऐसा क्यो कहा, वो ऐसा क्यों करते हैं...  कोई क्या करता है, क्यों करता है,हमें इससे ऊपर उठना है..  कोई कुछ भी करता है, हमें इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए.. वो करने वाले के कर्म... वो अपने कर्म से अपना भाग्य लिख रहा है।  हम क्यों किसी के कर्म के बारे मे सोच-सोचकर अपना आज खराब करें...  हमारे विचार हमारी संपत्ति हैं क्यों इन पर नकारात्मक विचारों का  दीमक लगाए चलो कुछ अच्छा  सोंचे  कुछ अच्छा करें "।💐 👍मेरा मुझ पर विश्वास जरूरी है , मेरे हाथों की लकीरों में मेरी तकदीर सुनहरी है । मौन की भाषा जो समझ   जाते है।वो ख़ास होते हैं ।  क्योंकि ?  खामोशियों में ही अक्सर   गहरे राज होते है....

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लेखक

  जब आप अपनी अभिव्यक्ति या कुछ लिखकर समाज के समक्ष लाते हैं, तो आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप समाज के समक्ष बेहतरीन साकारात्मक विचारों को लिखकर परोसे,   जिससे समाज गुमराह होने से बचे..प्रकृति पर लिखें, वीर रस लिखें, सौंदर्य लिखें, प्रेरणादायक लिखें, क्रांति पर लिखें ___यथार्थ समाजिक लिखें  कभी - कभी समाजिक परिस्थितियां भयावह, दर्दनाक होती---बहुत सिरहन उठती हैं.... क्यों आखिर क्यों ? इतनी हैवानियत, इतनी राक्षसवृत्ति.. दिल कराहता है.. हैवानियत को लिखकर परोस देते हैं हम - - समाज को आईना भी दिखाना होता... किन्तु मात्र दर्द या हैवानियत और हिंसा ही लिखते रहें अच्छी बात नहीं..   लिखकर समाज को विचार परोसे जाते हैं.. विचारों में साकारात्मकता होनी भी आवश्यक है।  प्रेम अभिव्यक्ति पर भी लिखें प्रेम लिखने में कोई बुराई नहीं क्योंकि प्रेम से ही रचता-बसता संसार है.. प्रेम मन का सौन्दर्य है, क्यों कहे सब व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है प्रेम से संसार है, प्रेम ही व्यवहार है प्रेम ही सद्भावना, प्रेम ही अराधना प्रेम ही जीवन आधार है.. प्रेम में देह नहीं, प्रेम एक जज्बात...