किताब के पन्ने
पलटते पन्ने
हर रोज एक नया पन्ना
जिन्दगी की किताब का
हर रोज एक नया पन्ना
नये दिन की शुरूआत का
सिलसिला शुरु होता है जज्बातों का
बनता है हर रोज एक नया खाता कर्मों का
लेखाजोखा ।
दिनचर्या की भागदौड़ आगे बढने की होड़
हर सुबह हर नयी भोर
लिखना चाहती हूं कुछ ,लिख देती हूं कुछ
कभी-कभी परिस्थितयों देती हैं बेहद झकझोर
पिछले पन्नों की लिखावट पर जब करती हूं गौर
आत्म ग्लानि से जाती हूं भर
पिछले पन्नों की लिखावट में कितनी सौम्यता थी
विचारों में कितनी सरलता थी सादगी थी
जैसे-जैसे आगे बढती गयी हो गयी कठोर
फिर सोचती हूं किताब का आरम्भ और अंत
अच्छा हो तो सब अच्छा हो जाता है
आरम्भ अच्छा था मध्य कांणा था
अब अंत को संवारना है
लौट कर घर भी वापिस जाना है
हिसाब किताब होगा जब वहां
अधिकतम अंको से उत्तीर्ण भी तो होना है
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