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अमरंतगी



 अमरतंरगी कालातीत अटल अविचल 

 देवनदी ,सुरसरि शाश्वत सत्य सटीक 

,निसर्ग संजीवनी भारतवर्ष सौभाग्यम

आरोग्य नाशनम मां गंगा तूभ्यम् शत-शत नमन -

प्रतिज्ञ संरक्षणम अमोल सम्पदा 

प्राकृतिक लावण्य  देव औषधम धन्वन्तरि जयति-जयति जयम 

गंगे मैय्या की जय-- 

जीवन में सरलता
स्वभाव मेरा तरलता
मुझमें निहित स्वच्छता
गुण मेरा निर्मलता

क्योंकि मैं तरल हूं
इसलिए मैं सरल हूं
इसलिए मैं निश्चल हूं
मैं प्रतिबद्ध हूं

अग्रसर रहना मेरी प्रकृति
शीतलता देना मेरी प्रवृति
मुझमें अथाह प्रवाह है 
मुझमें ऊर्जा का भंडार
मुझमें जो बांधे बांध
हुए ऊर्जा का संचार

जीवन का अद्भुत व्यवहार
देना जीवन का आधार
ऊर्जा का कर दो संचार
तभी दूर होगा अन्धकार
सही जीवन का यही उपचार
जीवन में भर लो सगुण संस्कार 

कविता मात्र शब्दों का मेल नहीं

वाक्यों के जोड़ - तोड़ का खेल भी नहीं

कविता विचारों का प्रवाह है

अन्तरात्मा की गहराई में से 

समुद्र मंथन के पश्चात निकली 

शुद्ध पवित्र एवम् परिपक्व विचारो के 

अमूल्य रत्नों का अमृतपान है 

धैर्य की पूंजी सौंदर्य की पवित्रता

प्रकृति सा आभूषण धरती सा धैर्य

अनन्त आकाश में रोशन होते असंख्य  सितारों के 

दिव्य तेज का पुंज चंद्रमा सी शीतलता का एहसास 

सूर्य के तेज से तपती काव्य धारा 

स्वच्छ निर्मल जल की तरलता का प्रवाह

काव्य अंतरिक्ष के रहस्यमयी त्थयों की परिकल्पना 

का सार  है, साका रत्मक विचारो के जागृति की  मशाल होती है।



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