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Showing posts from July, 2021

ऊंचाईयों की ओर बढ़ते कदम

निकला था सफर पर  ठहरा आशियाना में  व्यस्त हो गया जमाने में  महत्वाकांक्षाओं की ऊंचाइयां पाने में  सफर पर था व्यस्त हुआ किस्से गुनाने में  उलझा बंधनों में लगा शिकवे- शिकायतें सुलझाने में  जिन्दगी भर भटकता रहा जिन खुशियों को पाने में वह जीवन ही बीत गया ठोकरें खाने में , सफर पर था भूलकर,समय गंवाता रहा   आज को गंवाकर अनदेखे कल को सूकून पाने के लिए  सारे सफर उलझा रहा कल को सुलझाने में... सफर के हर पल का आनंद लो  निसंदेह आये हो लौट जाने के लिए  उतार-चढाव ज़िन्दगी का हिस्सा हैं ठोकरें जीवन की परीक्षाओं का किस्सा हैं  अनुभव से जीवन जीने का सीखो ढंग  जीवन में बहुतेरे हैं रंग तुम स्वयं के  जीवन के चित्रकार हो ,मनचाहा रंग  जीवन को आकार दो ,चलो आगे बढ़ो जीवन के सफर के हर पल को संवार लो  ऊंचा उठने को तैयार हो,संकल्पों की सामर्थ्य को  स्वीकार लो, बन प्रेरणा आने वाले समाज को  भी नया आयाम दो ,जीवन के सफर पर बेहतर संस्मरणों को बांध लो हौसलों का ऊंचा मुकाम दो,सफर को कलाओं की  सुनहरी किरणों की स्वर्णिम पहचान दो,...

वसुन्धरा और आकाश

 धरती हुयी पानी -पानी  ज्यों सुनाई अपनी कहानी ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ शायरों की जुबानी  आकाश की आंख मिचौली  सूरज संग हंसी ठीठौली  मेघों की घिर आयी बड़ी टोली  सूरज और आकाश को ढक कर बोली  वसुन्धरा की तपिश कम करने आयी हूं  सूखी पड़ी धरा, प्रकृति और हमजौली  घने मेघों ने की गर्जना दामिनी का चमकना  फिर बरसा आसमान से झरना  पूर्ण करने धरती की सुख-समृद्धि का सपना  सावन की लगी झड़ी थी धरती पर हरियाली खूब सज रही थी वसुन्धरा और आकाश का रिश्ता  पल-पल देखता धरा को ,आकाश का फरिश्ता  ए मानव वसुन्धरा मां केआंचल पर कदम रख थोड़ाआहिस्ता  वसुन्धरा मां के आंचल पर तू खड़ा मां का उपकार बडा है‌  वसुन्धरा से तेरा रिश्ता अनन्त है जिससे तू जीवंत है  स्वयं पर धरती मां पर कर उपकार ‌,बसा सुख समृद्धि का संसार कर यथोचित उपकार ‌।

एकांत में थकान से वार्तालाप

 सुप्रभात 🙏🌹🙏  नव दिवस नव प्रभात  नव पल्लव ‌‌‌‌‌‌‌‌नवसृष्टि  एकांत में थकान से वार्तालाप हुई बोली मुरझाना नहीं थकान अंत तो नहीं  विश्राम रात्रि का, मन को दो विश्राम  मन साध कर एक नयी शुरुआत करो  एकांत में थकान से वार्तालाप करने से मन को मिलेगा विश्राम  सुलझेंगी उलझनों की गांठें  तनाव रहित होंगी दिन और रातें ‌‌ निश दिन देगा जो मन को विश्राम  सुधरेंगे जीवन के कई बिगड़े काम  जीवन हर पल देता एक नया आयाम  बुझे चिराग़ों को श्रद्धांजलि ‌‌‌‌‌‌‌‌देकर नव दीपकों का प्रकाश ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌रोशन कर क्योकि समाज में ना रहे ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌अंधियारा  ।।   

वसुन्धरा

  वसुन्धरा** जिस धरती पर मैंने जन्म लिया , उस धरा पर मेरा छोटा सा घर मेरे सपनों से बड़ा ।। बड़े -बड़े अविष्कारों की साक्षी वसुन्धरा ओद्योगिक व्यवसायों से पनपती वसुन्धरा । पुकार रही है वसुन्धरा ,कराह रही है वसुन्धरा । देखो तुमने ये मेरा क्या हाल किया मेरा प्राकृतिक सौन्दर्य ही बिगाड़ दिया । हवाओं में तुमने ज़हर भरा में थर-थर कॉप रही हूँ वसुन्धरा अपने ही विनाश को तुमने मेरे दामन में फौलाद भरा तू भूल गया है ,ऐ मानव मैंने तुझे रहने को दी थी धरा । तू कर रहा है मेरे साथ जुल्म बड़ा मेरे सीने में दौड़ा -दौड़ा कर पहिया मेरा आँचल छलनी किया । मै हूँ तुम्हारी वसुन्धरा मेरा जीवन फिर से कर दो हरा -भरा उन्नत्ति के नाम पर धरा पर है प्रदूषण भरा जरा सम्भल कर ऐ मानव प्राकृतिक साधनों का तू कर उपयोग जरा तुमने ही मेरा धरती माता नाम धरा ये तुम्हारी ही माँ की आवाज है ,सुन तो जरा ।।।।।