.. मां तुम सब छिपा कर रख देती हो
मां तुम्हारी रखी कोई चीज तो हमें मिलती नहीं
पता नहीं कौन से कोने में छिपा देती हो
मां कहती है ..! कभी कुछ सही जगह पर तो रखा है तुमने
ऐसा करो एक नजर का चश्मा लगवा लो !
उम्र तो मेरी बढ रही है ! .इतने में पापा खिसियाए
बोले क्यों डांटती हो मेरी बेटी को ..जरुरत पढने पर
मुझे भी तो कहां मिलती है तुम्हरी रखी कोई चीज ~~~~
मां << बोली दोनों बाप बेटी एक जैसे हो
कभी कुछ सही जगह पर रखा हो तो बताओ
सब कुछ अस्त-व्यस्त सा पढा रहता है
मैं ना सम्भालूं कोई चीज तो कबाङी का घर लगेगा
बेटी पापा को देख ..अब क्या करूं पापा
पापा मन ही मन इशारे से मम्मी को मना
क्यों बिन बात उलझती है मां से.. सारा घर
सम्भालती है ..बहुत बढा मैनेजमेंट है गृह कार्यों
का मेनेजमेंट आसान नहीं ..घर के प्रत्येक सदस्य की
विभिन्न जरुरतों को पूरा करते- करते मां अपना ख्याल तो
रखना भूल जाती है ..घर के प्रत्येक सदस्य सुव्यवस्थित सुविधा
देने हेतु स्वयं अव्यवस्थित सा जीवन जी लेती है .वो मां है कुछ
कहती नहीं ..सबकी सुनती है ..पर अपनी कहना तो भूल जाती है..वो मां है सबके ख्याल में अपना ख्याल रखना तो भूल ही जाती है ...
वाह!,खूबसूरत सृजन।
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