Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2025

सूक्ति

सूक्ति बनों जीवन की ऐसी   हठ,निंदा ईर्ष्या मानों अपराध  त्याज्य हो व्यर्थ पदार्थ  आवयशकता बनो एसे किसी की   तन लागे औषधि जैसी व्याधि पीड़ा बन उपचार  उपकारी जीवन सद्व्यवहार  दुरूपयोग ना कर पाये कोई  उपयोगी समझ पूजे प्रत्येक  इस सृष्टि में है रंग अनेक  पर रंग लहू का सबका एक  फिर काहे का रंग भेद  सूक्ति एक जीवन में यह भी अपनाओ  रंग भेदभाव का भेद मिटाओ।  परस्पर प्रेम की फसल उगाओ। 

अनुगामी

अनुगामी हूं सत्य पथ का  अर्जुन सा लक्ष्य रखता हूं  माना की है संसार समुंदर  तथापि मुझे सरिता ही बनना है  गंगाजल सम अमृत बनकर  जनकल्याण ही करना है।  अनुसरण करुं प्रकृति का मैं तो  व्यग्र तनिक ना अंधड़ से होना है।  कल्प तरु सम उन्नत बनकर  हर क्षण समृद्ध रहना है. अनुगामी हूं श्रीराम राज का  मर्यादा का अनुसरण करना है।  पथगामी हूं साकारात्मकता का  नाकारात्मकता में नहीं उलझना है।    
हिय पयिस्वनी एक आग धधकती  लहरे तट आकर मचलती  जज्बात जलजला चक्रवात लाता  छिन्न - भिन्न परिवेश कर जाता ख्याल मंथन परिक्षा दौर चलाता चित्त विचलित दूरभाषी बनकर  पन्ने पलट तहें खोलता रह जाता   अमूर्त सब मूर्त बनकर  परिदृश्य भूतकाल दोहराता  कुछ सीख सबक दे जाता  चंचल मन चित को समझाता  चिंगारी,तिलमिलाती दिल जलाती ।  तरंगें व्याकुल कर हिय तूफान मचाती  कर्मों की खेती मनचाही फसल उग,  भद्दे रंग भर अब क्यों रोता  आभामंडल रंग अलबेले  प्राणी तू प्रिय रंग ही लेना  अपने कैनवास में चित्र बनाना।  जलन धधकती है अंगारों सी  जाने वो कौन सी चाहत है,जो अधूरी सी है।   अद्भुत आभामंडल रंग अलबेले हैं  रंग प्रेम भर मन और लगा जंदरा  शहर कैसा हर शक्स चातक सा  है ओढ़ अमीरी चोला, इसांन बहुत अक आकांक्षा घनिष्टता की,देने को गैरियत ही क्यों है  पूर्णता को भटकता ये मानव अपूर्णता की फितरत करता क्यूँ है।    एक कसक की कैसी ठसक है, दिल  कहानी है तुमको मैंने सुनानी  मेरी कहानींॉ तुम्हारी कहा...

जीतना सीखे

  *** स्वस्थ मन****            कहते हैं स्वस्थ तन में स्वस्थ मन का वास होता, निसंदेह सत्य भी है। आज के आधुनिक युग तन के स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है, जैसे  योगा, व्यायाम  आदि सही भी है।   आजकल कई तरह की फिटनेस क्लासेस भी जलायी जा रही हैं.. बैलेंस डाइट पर भी जोर दिया जा रहा जो निसंदेह अति उत्कृष्ट कार्य है। लेकिन आज की भागती-दौड़ती जिन्दगी मनुष्य अपने दिलों दिमाग पर एक प्रेशर लेकर जी रहा है। दिमाग में बहुत बोझा है लिए जिये जा रहा है , पूछो तो कहते अपने लिए समय कहाँ है, यहां मरने तक की फुर्सत नहीं है।   अब मेरी जगह होते तो क्या करते?   मैंने - - मेडिटेशन करना सीखा अपनी आंखे बंद की, और सासों पर ध्यान केन्द्रित किया फिर मन की आंखों से जो नजर आया अकथनीय था अब तो मैं दिन-प्रतिदिन अपने नेत्र मूंद कुछ मिनट निकल पड़ती मन के भीतर की यात्रा को...  भीतर की शांति ने मुझे सम्भाल लिया उसके मेरा विचलित होना कम हो। मन के भीतर गहन शांति है जब मैने यह जाना तो उसे बांटना शुरु कर दिया... मेडिटेशन मन की शांति के लिए अमू...