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Showing posts from January, 2022
 गणतंत्र दिवस के अमृत महोत्सव के अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री के नरेंद्र मोदी जी के डिजिटल भारत के सपने को सच करने हेतु #भारत @75 रचनाकारों में उत्तराखंड ऋषिकेश की लेखिका ऋतु असूजा की रचना भी प्रकाशित हुयी है जो समस्त उत्तराखंड के लिए गर्व का विषय है,इस पुस्तक को omg विश्व रिकॉर्ड भी प्राप्त हुआ है  युग बदल रहा है   मेरा देश बदल रहा है  भारत माता का गौरव  वीरों का शौर्य  भारत की आज़ादी नहीं इतनी सस्ती  बलिदान हुए  असंख्य शहीदों की हस्ती अखंड सुहागन सिंदूर मस्तक पर  रक्षा प्रहरी बन खड़े ‌‌‌सीमाओं पर

गणतंत्र भारत के रक्षक कवच वीर सिपाही

 (वीरों का कवच ) वीरों का कवच देश को अमरत्व का वरदान है    वीरों का शौर्य अडिग हिमालय से भी दृढ़, इन्हीं से भारत माता के मस्तक पर अनन्त सूर्य मणियों  का तेज है शत्रुओं के भी कांपते वेग हैं  भारत मां के वीरों के होसलौं को नतमस्तक   मानों अखण्ड सुहागन सिंदूर बन  भारत माता के मस्तक पर लगा हर्ष पाते हों जी भर ... विरासत में जो मिली है भारतीयों को उच्च  संस्कारों की सम्पत्ति, निस्वार्थ भाव सेवा धर्म की भक्ति  मात्रभूमि के वीरों की संकल्प शक्ति   सिंह की दहाड़ ,शत्रुओं देती पछाड़ भारत माता के वीर जांबाज   हथियार उठा करते हैं स्वाहा .... शत्रुओं का होता अंत दाह सूर्य सा तेज है पर नहीं किसी से द्वेष  विश्व में भारत माता के वीरों की अपनी  विषेश पहचान है, वीरों का कवच देश को  अमरत्व का वरदान है    स्वर्णिम युग दे रहा है दस्तक  मेरा देश बदल रहा है,‌‌‌‌‌‌‌‌ज्ञान का दीपक  घर-घर  प्रकाशित हो रहा है  भाईचारे संग धरती को स्वर्ग बनाने का संदेश है  अद्भुत अतुलनीय स्वर्णिम संस्कृति ...

गणतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

गणतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं  दिल से हर- पल निकलती हैं दुआएं सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हों अनन्त दिशाएं  आओ भारत माता को अनन्त कोटी शीश झुकायें‌ गुनगुना रही हैं फिजायें..आओ भारत की  आजादी का जश्न मनायें  गणतंत्रता का सबको महत्व बतायें  देखो कोई गद्दार ना अब धमकाये  शत्रुओं से भारत का दामन बचायें‌  निस्वार्थ भाव से भारत माता की सेवा में समर्पित हों जायें  देखो अपनी स्वतंत्रता का सदुपयोग करना  गणतंत्रता को समक्ष रखकर सीमाओं का ना उलंघन करना देश पर जब कोई विपत्ति आये  रक्षा-कवच बन अड़ जाना लड़ जाना शहीद हो जाना  देश सुरक्षित कर जाना क्योंकि भारत से ही  अपनी पहचान स्वदेश भारत  ही देता है  भारतीय होने का स्वाभिमान  जीत भारत से गीत भारत से सुख समृद्धि का  साम्राज्य भारत से ..... नाक मुंह सिकोड़ रहा दुर्गंध कहां से आये  ऊपर से मटका चमका दिया,‌‌‌‌‌‌‌भीतर मैल‌ भराय ।।  ‌

हिंदी मेरा अभिमान

मेरा देश हिंदूस्तान‌ मेरी पहचान हिंदी मेरी मात्र भाषा मेरा अभिमान  क्यूं भटकूं दर ब दर मेरे देश में रत्नों की खान‌  अपने तो अपने होते‌ हैं  बाकी सब तो सपने होते हैं ‌‌ करता हूं मैं सबका सम्मान   मेरी मात्र भाषा हिंदी है मेरा‌ अभिमान‌  निजता में सहजता  सहजता में सरलता  सरलता में गहनता‌  गहनता में बुद्धि विवेक का ज्ञान ‌‌ ज्ञान जीवन का सम्मान ‌‌ भीतर समाहित संस्कृति और सभ्यता का वैभव ‌‌ निज भाषा हिंदी का ह्रदय से मां तुल्य सम्मान 

पिछले पन्ने

 जिन्दगी की दौड़ में  उम्र के मोड़ पर निकल गया था बहुत आगे, आज यूं ही  फुर्सत के पलों में पलट गये   कुछ पिछले पन्ने याद आ गयी    पुरानी बातें सुनहरी यादें  कुछ गुदगुदाती कुछ मुस्कुराती  अल्हड़ पन की नादान शरारतें ‌‌ लूडो, कैरम ,छुपन- छुपायी,चोर- पुलिस  खेलने की नादान हसरतें  वो दिन भी कितने अच्छे थे  कितने सच्चे थे ,वही तो दिन थे  जब हम जीते थे जब हम बच्चे थे  कितने अच्छे थे, वही तो जीवन था जो जी लिया  वरना अब तो सिर्फ भाग रहे हैं जाने कौन  सी  प्रतिस्पर्धा में स्वयं भी नहीं जानते  बेहतरीन जीवन जीने की होड़ में जीना ही भूल गये ‌‌ गया वक्त लौटकर नहीं आता  सपने बस वो ही तो थे अपने  उन पन्नों में यादों की तिजोरी में  आज भी सम्भाली हुयी थी वो यादें  परियों के किस्से बचपन के रिश्ते  बड़ी खूबसूरत लगेगी बीती बातें  वो अनकही नादान बेफिक्र शरारतें  शरारतों में भी शराफत थी  किसी से ना कोई बगावत थी   मन की थकान को देने को आराम  ढूंढ निकाल लिया करो कुछ पल...

हिंदी शाश्वत है सत्य की भाषा है..

क्यों मैं भटकूं दर ब दर अपनों के मध्य पाना है सर्वप्रथम आदर  क्योंकि मेरी जड़ों ने मुझे सम्भाला है  हिंदी का अस्तित्व शाश्वत एवं निराला है  हिंदी भाषा में ही मैंने सर्वप्रथम अपने भावों को ढाला है  भाषा पहचान है अस्तित्व है  भाषा अभिमान है शान है  हिन्दूस्तान ने मुझे पाला है हिंदी मातृभाषा ने ही मुझे सम्भाला है मेरे अस्तित्व को निखारा है  इतिहासकारों ने विचारों को हिंदी भाषा के माध्यम से अनेकों रुपों में संजोकर भविष्य की धरोहर बना डाला है  अनेकों ग्रन्थों को हिंदी भाषा में अपनी पहचान है  सभ्यता एवं संस्कृति का आधार  हिंदी मेरी प्रिय भाषा  मेरी पहली पसंद है  मेरी अपनी मातृभाषा हिंदी  हिंदी में जो बिंदी है  भाषा का श्रृंगार है ,रस अलंकारों छंदों का दिव्य आधार है  मेरे रोम-रोम में बसती हैं हिंदूस्तान की हवायें  मातृभूमि की फिजाओं ने‌ मुझे पाला हिंदीस्तान के ही गुण गाऊं‌  मुझमें रचता- बहता हिन्दुत्व  हिन्दू साहित्य और संस्कृति का सत्व  सर्वप्रथम हिंदी के गुण गाऊं...... हिंदी को विश्वपटल पर पहचान दि...

प्राण वायु

प्रकृति में समाहित जो ना प्राण वायु ना होती  तो सोच मनुष्य जमाने में तेरी औकात क्या होती नतमस्तक हो कर प्रणाम,धन्य तेरा जीवन कर सम्मान मेरी पहचान के क्या कहने  मात्र कुछ रुपए पैसे और गहने  जीविका के साधन का सामान  मैं जाने क्यूं करता हूं बिन बात अभिमान  जबकि सबसे अनमोल है तन के भीतर प्राण  प्रकृति अनमोल सम्पदा वृक्ष,नीर,प्राण वायु अमूल्य धन  जिनसे धरती पर जीवित है जीवन  प्रकृति में निहित प्राणवायु का आधार  इन हवाओं का भूलूं कैसे उपकार  इन हवाओं से रचा-बसा है मेरा जीवन संसार  इनके बिना मैं कुछ भी नहीं  मेरे अस्तित्व की खबर भी ना होती  अगर वातावरण में प्राणवायु ना होती 

कर्म

हम कल भी थे  आज भी हैं  और हमेशा ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌रहेंगें  हम किसी भी मनुष्य के कर्म हैं  कर्म विचारों की उथल-पुथल  का महासंग्राम है  परिक्षा का परिणाम है, संयम   कर्म के तराजू पर क्रियात्मक एवं  मानसिक दोनों ही कर्मों का आकलन हुआ  शुभ सरल साकारात्मक विचारों का बादशाह  सरलता से शुभ भावों को संग लेकर  सादगी की कश्ति में सवार हो दरिया पार हो गया, समझदारी का चोला पहने होशियार उलझाता  और उलझता रहा है और कर्मों की गांठों में जकड़े रहा  कर्म तराजू पर पारदर्शिता ही काम आयी चालाकियां सारी  धरी की धरी रह गयी । निस्वार्थ भाव से समाज के लिए प्रेरणादायक  कर्म सदैव अमर रहते हैं, कर्म पहचान बनाते हैं ‌‌ अच्छे कर्म मनुष्य के मनुष्य होने का सत्य बताते हैं