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अच्छा हुआ ..


अच्छा हुआ जरूरत  के समय  कोई  काम  नहीं आया 
इसी बहाने  मैं मेरे रब के और करीब  आ गया ..

मैं ही भटकता - फिरता था ..
अपनों की तलाश  में ...
जो अपना था वो पास था ..उसका एहसास  था 
पर दिखाई नहीं देता था ..
लेकिन  जो पास थे हर रोज हाथ  मिलाते थे 
उनसे अपनापन ना मिला.. वो भी किसी ओर की तलाश में थे  .

जमाने भर में सेवा का ढोंग  करते रहते हैं 
जरूरत  होने पर अपनों के ही काम  नहीं आते ..

सेवा में भी दिखावा..स्वयं की आंखों में पट्टी 
बांधकर  दूसरों की आंखों में धूल झोंकना..

चलना हो साथ तो लाख बहाने बना देते हैं 
कहने को दुनियाभर में खुशियां बांटते  फिरते हैं ..

जिन्हें अपना कहते हैं उन से परायों सा बर्ताव  करते हैं ..
 कोई  किसी का अपना नहीं सब अपना मतलब हल करते हैं .

 सफर को पूरा करने की तलाश में सब अधूरे से 
अधूरी राहों पर सफर करते हैं ..

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