तंरग - तरंग मोहब्बत हर रंग रंग मोहब्बत वायुमंडल अंतर्भूत मोहब्बत मानव डोर पतंग मोहब्बत मोहब्बत धुरी चलायमान जग सारा प्रकृति की उपज, प्रेम की महक प्रेम में बसे हैं हम सब नहीं तनिक भी प्रेम अल्पता माखन दुग्ध आंतरिक प्रकृति अन्वेषण कर क्षीर मध्य अनगिनत रत्न बेसिहाब चयन कर प्रेमाअमृत छोड़ विषाक्त द्रव्य उद्गम ह्रदय प्रेम रसधार, प्रेम ही जीवन आधार प्रेम से पोषित समस्त संसार,प्रेम ही सबकी खुराक। प्रेम कश्ति प्राणी सवार