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Showing posts from 2025

सूक्ति

सूक्ति बनों जीवन की ऐसी   हठ,निंदा ईर्ष्या मानों अपराध  त्याज्य हो व्यर्थ पदार्थ  आवयशकता बनो एसे किसी की   तन लागे औषधि जैसी व्याधि पीड़ा बन उपचार  उपकारी जीवन सद्व्यवहार  दुरूपयोग ना कर पाये कोई  उपयोगी समझ पूजे प्रत्येक  इस सृष्टि में है रंग अनेक  पर रंग लहू का सबका एक  फिर काहे का रंग भेद  सूक्ति एक जीवन में यह भी अपनाओ  रंग भेदभाव का भेद मिटाओ।  परस्पर प्रेम की फसल उगाओ। 

अनुगामी

अनुगामी हूं सत्य पथ का  अर्जुन सा लक्ष्य रखता हूं  माना की है संसार समुंदर  तथापि मुझे सरिता ही बनना है  गंगाजल सम अमृत बनकर  जनकल्याण ही करना है।  अनुसरण करुं प्रकृति का मैं तो  व्यग्र तनिक ना अंधड़ से होना है।  कल्प तरु सम उन्नत बनकर  हर क्षण प्रफुल्लित रहकर परहित करना है।  अनुगामी हूं श्रीराम राज का  मर्यादा का अनुसरण करना है।  पथगामी हूं साकारात्मकता का  नाकारात्मकता में नहीं उलझना है।    
हिय पयिस्वनी एक आग धधकती  लहरे तट आकर मचलती  जज्बात जलजला चक्रवात लाता  छिन्न - भिन्न परिवेश कर जाता ख्याल मंथन परिक्षा दौर चलाता चित्त विचलित दूरभाषी बनकर  पन्ने पलट तहें खोलता रह जाता   अमूर्त सब मूर्त बनकर  परिदृश्य भूतकाल दोहराता  कुछ सीख सबक दे जाता  चंचल मन चित को समझाता  चिंगारी,तिलमिलाती दिल जलाती ।  तरंगें व्याकुल कर हिय तूफान मचाती  कर्मों की खेती मनचाही फसल उग,  भद्दे रंग भर अब क्यों रोता  आभामंडल रंग अलबेले  प्राणी तू प्रिय रंग ही लेना  अपने कैनवास में चित्र बनाना।  जलन धधकती है अंगारों सी  जाने वो कौन सी चाहत है,जो अधूरी सी है।   अद्भुत आभामंडल रंग अलबेले हैं  रंग प्रेम भर मन और लगा जंदरा  शहर कैसा हर शक्स चातक सा  है ओढ़ अमीरी चोला, इसांन बहुत अक आकांक्षा घनिष्टता की,देने को गैरियत ही क्यों है  पूर्णता को भटकता ये मानव अपूर्णता की फितरत करता क्यूँ है।    एक कसक की कैसी ठसक है, दिल  कहानी है तुमको मैंने सुनानी  मेरी कहानींॉ तुम्हारी कहा...

जीतना सीखे

  *** स्वस्थ मन****            कहते हैं स्वस्थ तन में स्वस्थ मन का वास होता, निसंदेह सत्य भी है। आज के आधुनिक युग तन के स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है, जैसे  योगा, व्यायाम  आदि सही भी है।   आजकल कई तरह की फिटनेस क्लासेस भी जलायी जा रही हैं.. बैलेंस डाइट पर भी जोर दिया जा रहा जो निसंदेह अति उत्कृष्ट कार्य है। लेकिन आज की भागती-दौड़ती जिन्दगी मनुष्य अपने दिलों दिमाग पर एक प्रेशर लेकर जी रहा है। दिमाग में बहुत बोझा है लिए जिये जा रहा है , पूछो तो कहते अपने लिए समय कहाँ है, यहां मरने तक की फुर्सत नहीं है।   अब मेरी जगह होते तो क्या करते?   मैंने - - मेडिटेशन करना सीखा अपनी आंखे बंद की, और सासों पर ध्यान केन्द्रित किया फिर मन की आंखों से जो नजर आया अकथनीय था अब तो मैं दिन-प्रतिदिन अपने नेत्र मूंद कुछ मिनट निकल पड़ती मन के भीतर की यात्रा को...  भीतर की शांति ने मुझे सम्भाल लिया उसके मेरा विचलित होना कम हो। मन के भीतर गहन शांति है जब मैने यह जाना तो उसे बांटना शुरु कर दिया... मेडिटेशन मन की शांति के लिए अमू...

मोहब्बत ही केन्द बिंदू

मोहब्बत ही केन्द्र बिन्दु चलायमान यथार्थ सिन्धु  धुरी मोहब्बत पर बढ रहा जग सारा  मध्य ह्रदय अथाह क्षीर मोहब्बत  ना जाने क्यों मोहब्बत का प्यासा फिर रहा जग सारा  अव्यक्त दिल में मोहब्बत अनभिज्ञ भटक रहा जग सारा  मोहब्बत है सबकी प्यास फिर क्यों है दिल में नफरतों की आग  जाने किस कशमकश में चल रहा है जग सारा  मोहब्बत ही जीवन की सबकी खुराक  संसार मोहब्बत,आधार मोहब्बत  मोहब्बत की कश्ति में सब हो सवार  मोहब्बत ही जीवन  मोहब्बत ही सबका अरमान मोहब्बत ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु  भव्य भाव क्षीर सिंधु,प्रेम ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु   मध्यवर्ती  हिय भीतर एक जलजला, प्राणी  हिय प्रेम अमृत कलश भरा ।  मधुर मिलन परिकल्पना,  भावों प्रचंड हिय द्वंद  आत्म सागर भर-भर गागर,हिय अद्भुत संकल्पना  संकल्पना प्रचंड हिय खण्ड -खण्ड  मधुर मिलन परिकल्पना,मन साजे नितनयीअल्पना प्रेम ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु 

श्रम ही धर्म

*श्रम ही धर्म* श्रम की अराधना से मिटती है मुझ  श्रमिक के जीवन  की हर यातना  होकर मजबूर बनकर मजदूर    अपनों से दूर  जीविका की खातिर रुख करता हूं शहरों की ओर गांव की शांति से दूर शहरों का  भयावह शोर, ढालता हूं स्वयं को तपाता हूं तन को,बहलाता हूं मन को शहरों की विशाल,भव्य इमारतों में मुझ श्रमिक का रक्त पसीना भी चीना जाता शहरों की प्रग्रती और समृद्धि की  नींव मुझ जैसे अनगिनत श्रमिकों की देन है कभी -कभी शहर की भीड़ में खो जाता हूं  जब किसी महामारी के काल में, बैचैन, व्याकुल पैदल ही लौट चलता हूं ,मीलों मील अपनों  के पास अपने गांव अपने घर अपनों के बीच  अपनत्व की चाह में । स्वरचित :- ऋतु असूजा ऋषिकेश ।
#किस मनुष्य ने किस विषय का चयन किया है उसके चरित्र का दर्पण बोलता है, फिर दर्पण ही जीवन के सच के रहस्य खोलता है।   #यूं ना कहो हम बदल रहे हैं  वक़्त के अनुसार अपने किरदार में  ढल रहे हैं जीवन जीने की कला में  निपुण हो रहे हैं  #रहस्य मय जगत ,रहस्य अदृश्य अनेक । दामिनी जल मध्य ,जलकण जैसे मेघ ।। #वाणी का अपना मोल, मृदुभाषी मीठा बोल।‌‌          वाचाल हुआ बेमोल,मौन भाषा अनमोल ।। #इंसान होना भी कहां आसान है कभी अपने कभी अपनों‌ के लिए  रहता परेशान है मन‌ में भावनाओं ‌‌‌‌‌का   उठता तूफान‌ है कशमकश रहती सुबह-शाम है बदनाम होताा‌‌ इंसान है, इच्छाओं का सारा काम है # अपने मालिक स्वयं बने,स्वयं को प्रसन्न रखना, हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है..किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी ना होने दें।  #आत्म विश्वास यानि स्वयं में समाहित ऊर्जा को             पहचानना और उसे उजागार करना ।    तन की दुर्बलता तो दूर हो सकती है     परन्तु मन की दुर्बलता मनुष्य को जीते जी मार  ...

भावों का भंवर

भावों के भवंर में किसी ने  एक कंकड़ उछाल कर मारा होगा  तब भावों के समूह से कुछ अश्रु बहे होगें  जिनसे नदियाँ, झरने समुद्र बने होगें।  विचारों के ज्वालामुखी की ऊठापटक से  कहीं पहाड़ कहीं गहरी खाईयां बनी होगी.  जहाँ ठहरी होगी ज्वाला वहां समतल  बन गया होगा।  भाव ना होते तो इंसान भी कहां इंसान होता  एक बुत सा सारा जहाँ होता।  भावों ने ही मचाया कोहराम है  इंसान तो यूँ ही बदनाम है  भावों का कोहराम ही तो है,  जो समुंदर की लहरों में उठापटक  चलती रहती है।  भावों के कोष्ठ की आह से कराह के अश्रु का दरिया बहा होगा  तभी तो कहीं नदिया कहीं झरना बना होगा और वही सब समुंदर हुआ होगा।

स्वर्णिम वसुंधरा

स्वर्ग से सुंदर समाज की कल्पना एक लेखक की ईबादत होती है.. हर तरफ खूबसूरत देखने की एक लेखक की आदत होती है.. समाज में फैल रहे अत्याचार, हिंसा वैमनस्य की भावना देख एक लेखक की आत्मा जब रोती है तब एक लेखक की लेखनी तलवार बनकर चलती है और समाज मे फैल रहे वैमनस्य की भावना का अंत करने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करती है.. लिखने को तो लेखक की लेखनी लिखती है, किन्तु एक अदृश्य शक्ति उसको प्रेरित करती है।   अपने लिये तो सभी जीतें हैं हैं, जीवन वह सफल है जो औरों के जीने के लिए  जिया जाये।  यूं तो मैंने बहुत कुछ लिखा है.. इंटरनेट पर मेरा अपना ब्लाग है, जिस पर लेखन कार्य निरंतर चलता रहता है।  मैंने बहुत से साझा संकलन एवं एकल संकलन भी  लिखे। हैं ।  मेरे लिखने का उद्देश्य समाज को शुभभावनाओं से भरपूर करना है। शुभ साकारात्मक आत्मविश्वास से भरपूर संदेश देना है.. मेरे लिखने से किसी एक जीवन में भी साकारात्मक परिवर्तन आता है तो मेरा लिखना सफल है।  ऋषिकेश एक अध्यात्म नगरी है, प्रकृति यहां गीत गुनगुनानाती है... मां गंगा की पवित्र अमृतमयी जलधारा जीवन पवित्र करती है... ज...

लेखनी भाव सूचक

  लेखनी भाव सूचक) "लेखनी"अक्सर यही कहा जाता है ,की लेखनी लिखती है जी हां अवश्य लेखनी का काम लिखना ही है । या यूं कहिए लेखनी एक साधन एवम् हथियार की भांति अपना काम करती है। लेखनी सिर्फ लिखती ही नहीं ,लेखनी बोलती है ,लेखनी कहती है ,लेखनी अंतर्मन में छुपे भावों को शब्दों के रूप में पिरोकर कविता,कहानी,लेख के रूप में परोस्ती है। समाजिक परिस्थितियों से प्रभावित दिल के उद्गारों के प्रति सम भावना लिए लेखक की लेखनी -- वीर रस लिखकर यलगार करती है,लेखनी प्रेरित करती है देश प्रति सम्मान की भावना जो प्रति जन-जन में छिपी  देश प्रेम की भावनाओं को जागृत कर देश के शहीदों के प्रति सम्मान और गर्व का एहसास कराती है । वात्सल्य रस, प्रेम रस,हास्य रस,वीर रस ,लेखनी में कई रसों के रसास्वादन का रस या भाव होते हैं । महापुरुषों के जीवन परिचय को उनके साहसिक एवम् प्रेरणास्पद कार्यों को एक लेखक की लेखनी स हज कर रखती है ,और समय -समय महापुरुषों के जीवन चरित्र पड़कर जन समाज का मार्गदर्शन करती है । लेखनी का रंग जब एहसासो के रूप में भावनाओं के माध्यम से काग़ज़ पर संवरता है और जन-मानस के हृदय को झकझोर कर मन पर अपन...

पतंग

 सपनों के पंख लगाकर    परियों के देश चली  उङी - उङी रे पतंग मेरी  बादलों के संग चली  चांदी की पालकी पर  चंदा मामा के घर  चली  ऊंची-ऊंची उङान भरी  उडी- उङी रे पतंग मेरी  सपनों के जहां चली  ढील देते मैं ढील देते चली  पतंग स्वतंत्रता से जाने कौन  से  जहां चली .. उङी- उङी पतंग मेरी  एक जहां से दूजे जहां चली  विदाई  की घङी में  डोर टूटी और पतंग मेरी नये जहां चली। 

टानिक प्रोत्साहन का

 थोडा सा प्रोत्साहन""""" थोङा सा प्रोत्साहन टानिक का काम करता है ।   सफलता और असफ़लता  जीवन के दो पहलू हैं। एक ने अपने जीवन में सफलता का भरपूर स्वाद चखा है उसकी सफलता का श्रेय सच्ची लगन ,मेहनत ,दृढ़ -इचछाशक्ति ,उसका अपने कार्य के प्रति पूर्ण- निष्ठां व् उसके विषय का पूर्ण ज्ञान का होना था।  और उसके व्यक्तित्व में उसकी सफलता के आत्मविश्वास की छाप भर -पूर थी।   वहीं दूसरी तरफ़ दूसरा वयक्ति जो हर बार सफलता से कुछ ही कदम दूरी पर रह जाता है ,उसके आत्म विश्वास के तो क्या कहने, परिवार व् समाज के ताने अपशब्द निक्क्मा ,नक्कारा ,न जाने कितने शब्द जो कानों चीरते हुए आत्मा में चोट करते हुए ,नासूर बन दुःख के  सिवा कुछ नहीं देते।    उसे कोई चाहिये था जो उसके आत्म विशवास को बड़ा सके, उसे उसके विषय का पूर्ण  ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करवाये ।    जीवन  में आने वाले उतार -चढ़ाव कि पूरी जानकारी दें ,और सचेत रहने की भी पूरी जानकारी दे। उसे  सरलता का भी  महत्व भी समझाया  गया, सरलता का मतलब मूर्खता कदापि नहीं है।   ...

ख्वाबों को ख्वाब ही रहने दो

ख्वाबों को ख्वाब बनकर ही  रहने दो, हसीन ख्वाब चेहरे पर मुस्कान  बनकर दिल में बहार बनकर इठलाते हैं।  जब मन को कोई अच्छा लग जाता है जब किसी पर दिल आ जाता है।  वो चांद सा नजर आता है ख्वाबों सा सुंदर ही सही  हसीन तो नजर आता है  हकीकत को क्यों जानूं  वो मुझे ऐसे ही भाता है  हर एक ख्वाब थोड़े सच हो जाता है  ख्वाबों का होना ही  ख्वाबों को हसीन बनाता है  समीप जाने पर तो चांद भी  कहां चांद रह जाता है  दूर से ही जो दिल को लुभाता है वो खास हो ही जाता है  चेहरे पर खुशी बनकर मुस्कराता है  ख्वाब का ख्वाब होना ही हसीन हो जाता है  दिल की दुनियां में रौनक बनकर इतराता है मन को कुछ तो भाता है  जब किसी पर दिल आ जाता है। 
ज्ञानदेवी माँ शारदा इत्यस्याः आशीर्वादेन, बुद्धि-  प्रज्ञा-दात्री भगवान् गणेशस्य च प्रेरणा सह   समाजाय शुभ-सकारात्मक-विचारान् समर्पयामि...  ये समाजस्य मार्गदर्शने सहायकाः भविष्यन्ति"  ज्ञानदेवी माँ शारदा इत्यस्याः आशीर्वादेन,  भगवान् गणेशस्य च प्रेरणा शुभ-सकारात्मक-विचारान्  ये समाजस्य मार्गदर्शने सहायकाः भविष्यन्ति"  आगे बढने की जिद्द हो... कुछ बेहतर कर दिखाने का जूनून हो तो... रास्ते मंजिल खुद ब खुद ढूंढ लेते हैं... भला नदिया के बहते पानी को कौन रोक पाया है.... अगर बांध भी बना दिया जाये तो, वो विद्युत  पैदा करने लगता  है... यानि आप में काबिलियत है, और आप प्रयास करते हैं तो निसंदेह सफलता जरूर मिलेगी।  यानि आपके अंदर काबिलियत है, कुछ कर दिखाने का जूनून हो तो.. आपका हूनर बोलेगा....  बचपन से मुझे प्रकृति का सामिप्य मिला... जन्म से लेकर मेरी शिक्षा पहाड़ों की रानी मसूरी हुई... ऊंची-ऊंची पर्वत शिखाएं. हिमालय की गोद में बसा यह बहुत ही रमणीय है... शीतल, स्वच्छ, शुद्ध हवा तन और मन दोनों को आनन्दित कर जाती है। (2)   सफर की तै...

महत्वकांक्षा

सुनीता बड़े- बड़े घरों में काम करती थी.. मुंह की मीठी चापलूसी करना उसकी आदत थी-क्यों ना हो आखिर यही सब तो उसके काम आने वाला था--  वो जानती थी---उसका पति इतना कमाता नहीं.. जो कमाता भी है, वो घर - परिवार के खर्चो में निकल जाता था.. आखिर इतनी मंहगाई में चार बच्चों को पालना.. माता -पिता की दवा का खर्चा कुछ खाने-पीने में ही निकल जाता था।  सपने देखने का हक सबको है, माना की हम कम पैसे वाले हैं.. पर शहरों की ऊंची -ऊंची इमारतों का बनाने में हमारी ही मेहनत छीपी होती है। सुनीता को गांव से शहर आये पांच साल हो गये थे, शुरू के कुछ महीने बहुत संघर्ष करना पड़ा सुनीता को.. नये-नये गांव से आये थे, जल्दी से कोई काम पर भी ना रखता था.. किसी तरह सुनीता के पति को मजदूरी का काम मिला... अभी तक तो फुटपात पर दिन बीत रहे थे, किसी की पहचान से किराये के लिए एक झोपड़ी की व्यवस्था हुई। सुनीता साथ - साथ मजदूरी का काम भी करने लग गयी, बच्चे भी दिन भर वहीं मिट्टी में खेलते रहते,पापी पेट का सवाल था, खाना मिल जाये वो ही बहुत था, स्कूल पढाई तो दूर की बात थी। बच्चों को दिन भर मिट्टी में खेलते देख.. आसपास की बिल्डिंग...

बसंत की बहार

सर्वप्रथम मां शारदे को नमन बसंत पंचमी त्यौहार है, बसंती फुहार का  प्रकृति के नव आगमन का..  ज्ञान की देवी माँ शारदे की उपासना का  जीवन में आगे बढ़ने का..  यह मौसम है प्रकृति के श्रृंगार का..  हमारी प्रकृति इतनी सुन्दर है कि  नील गगन भी पलक नहीं झपकता  एक बार तो नील गगन प्रकृति का सौम्य रुपदेख उस पर मोहित हो गया और लिख डाली  एक कविता - -  निसर्ग के लावण्य पर, व्योम की मंत्रमुग्धता श्रृंगार रस से पूरित ,अम्बर और धरा  दिनकर की रश्मियां और तारामंडल की प्रभा  प्रेम जगत की रीत है, प्रेम मधुर संगीत है  सात सुरों के राग पर प्रेम गाता गीत है प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ  श्रृंगार के दिव्य रस से प्रकृति ने अद्भूत रुप धरा भाव भीतर जगत में प्रेम का अमृत भरा प्रेम से सृष्टि रची है, प्रेम से जग चल रहा प्रेम बिन कल्पना ना,सृष्टि के संचार की  प्रेम ने हमको रचा है, प्रेम में हैं सब यहां  प्रेम की हम सब हैं मूरत प्रेम में हम सब पले  प्रेम के व्यवहार से, जगत रोशन हो रहा प्रेम के सागर में गागर भर-भर जगत है चल रहा प...

जीरो से हीरो तक का सफर

जीरो से हीरो तक का सफर - - जीरो तो वो कभी था ही नहीं,  एक हीरो उसमें हमेशा जीता था।  सपने तो सभी देखते हैं,  लेकिन सपनों का क्या ? उसने भी सपना देखा होगा, नींद खुली तो सपना टूट गया। क्या हुआ, कुछ भी नहीं, सपनों का तो यही हाल होता है, नीद खुली, हकीकत की धरातल पर जब पैर पडे तो सब भूल गये, सपना यादों के किसी पिटारे में बंद हो गया।  हर सपना सच हो जाये सम्भव ही नहीं, मन के ख्यालों की उडान को पकड़ना इतना आसान भी नहीं,  मन के पंख तो सपनों की उड़ान भरेंगे ही, उड़ने दो मन परिंदे को, लौट कर तो यहीं वापिस आना पड़ेगा । लेकिन मन की उड़ान से कोई हीरो तो नहीं बनता,  प्रयासों का सिलसिला जारी रखना पड़ता है, प्रयास कुछ अधूरे कुछ पूरे. सफलता की राह दिखाते पर मंजिल का पता नहीं.. 

प्रेम का अमृत कलश

प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ  सुचिता के श्रृंगार रस को प्रेम ने पूजा कहा    प्रेम में हैं सब यहां, श्रृंगार है सबको प्रिय  प्रेम की मीठी कशिश में ,कशमकश हरपल यहां प्रेम ही सौन्दर्य है , सौन्दर्य हिय भीतर भरा  कलियों की बालियाँ , पुष्पों बना श्रृंगार है  बगिया माली की कोशिशें अनन्त हैं  चाह सबकी है यही हर-पल रहे बसंत है  पुष्प खिलते हो जहां पर, आकर्षण है वहां भरा  मन की सुन्दरता है जो भीतर प्रेम से है जगत भरा-- विरह - मिलन की तपन में, नयन कमल प्रेम अश्रु झर - झर झरा - - अश्रु नहीं यह प्रेम रस है  जो हिय भीतर पड़ा, - -  कर्तव्य पथ पर जो चला - - परदेश का रुख करा  आंगन सूना हो गया, द्वार टकटकी लगी, आंख कब लगी, पता तब लगा, जाग जब थी खुली - -  सूखे नयनों की अब इंतहा हो गयी - - गैय्या खूंटे  बंधी , रम्भाती ना अब कभी..  पनघट अब सखी ना छेड़े मुझे   बरगद की छांव में यादों का सिलसिला चले  लौट तुम जब आओगे दिन गिन-गिन कटे  वक्त इतना बीत गया, गिनती ना गिन सकूं  थक मैं हूँ गयी, हारी प...

प्रेम जगत की रीत है

 निसर्ग के लावण्य पर, व्योम की मंत्रमुग्धता श्रृंगार रस से पूरित ,अम्बर और धरा  दिवाकर की रश्मियां और तारामंडल की प्रभा  धरा के श्रृंगार में समृद्ध मंजरी सहज चारूता प्रेम जगत की रीत है, प्रेम मधुर संगीत है  सात सुरों के राग पर प्रेम गाता गीत है प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ  श्रृंगार के दिव्य रस से प्रकृति ने अद्भूत रुप धरा भाव भीतर जगत में प्रेम का अमृत भरा प्रेम से सृष्टि रची है, प्रेम से जग चल रहा प्रेम बिन कल्पना ना,सृष्टि के संचार की  प्रेम ने हमको रचा है, प्रेम में हैं सब यहां  प्रेम की हम सब हैं मूरत प्रेम में हम सब पले  प्रेम के व्यवहार से, जगत रोशन हो रहा प्रेम के सागर में गागर भर-भर जगत है चल रहा प्रेम के रुप अनेक,प्रेम में श्रृंगार का  महत्व है सबसे बड़ा - श्रृंगार ही सौन्दर्य है -  सौन्दर्य पर हर कोई फिदा - - नयन कमल,  मचलती झील, अधर गुलाब अमृत रस बरसे  उलझती जुल्फें, मानों काली घटायें, पतली करघनी  मानों विचरती हों अप्सराएँ...  उफ्फ यह अदायें दिल को रिझायें  प्रेम का ना अंत है प्रेम तो अन...
 हथौड़ा भी कहां चैन से सोता है  मार - मार के चोट वो भी तो रोता है ।  निसर्ग के लावण्य पर, व्योम की मंत्रमुग्धता श्रृंगार रस से पूरित ,अम्बर और धरा  दिवाकर की रश्मियां और तारामंडल की प्रभा  धरा के श्रृंगार में समृद्ध मंजरी सहज चारूता। प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ  श्रृंगार के दिव्य रस से प्रकृति ने अद्भूत रुप धरा भाव भीतर जगत में प्रेम का अमृत भरा प्रेम से सृष्टि रची है, प्रेम से जग चल रहा। https://rituasoojarishikesh.blogspot.com/2025/01/blog-post_15.html

यादें बिन बुलायी मेहमान होती हैं

भूलने की आदत है अक्सर मेरी  पर कुछ यादें भूलने पर भी याद  रह जाती हैं - - क्या इत्तेफाक है  जो याद रखना चाहता हूं वो याद  नहीं रहता,जो याद नहीं रखना चाहता  वो हमेशा याद रहता है।  यादें बिन बुलाये मेहमान की तरह अक्सर दस्तक दे जाती हैं - - -  दबे पांव वो मेरे घर में चली आती है  आंगन में वो हवा के झोंकें सी बिखर जाती है।  फिर इतराकर खूशबू ए बहार बन ठहर जाती है।  वो ना होकर भी अपने होने का एहसास दिलाती है।  अपनी यादों को ना मुझसे जुदा होने देती है  उसकी यादों से मेरे सांसों की गति चलती है।  मैं निकल जाता हूँ, दूर कहीं दिल बहलाने को  दबे पांव वो मेरे पीछे चली आती है,    मेरी यादें ही मेरी हमसफर बनकर   मेरा साथ सदा निभाती हैं।    दिल बहल जाता है, बीती यादों पर मुस्करा लेता हूं  वो भी क्या दिन थे, सोच खुश हो जाता हूँ। 

राधा प्रेम कृष्ण कर्तव्य

सुनों री सखियों - सुनों री सखियों - - आंखें मूंदों तो बुझो पहेली - -  एक गोपी फट से बोली- - क्यों कर हमें उकसाती हो - - जो हिय में है - - क्यों ना फट से बताती हो - - गोपी - - बोली, बताती हूँ - बताती हूँ - हिय की पीड़ा जाताती हूं। नटखट है- वो बड़ा ही नटखट - - पहुंच गया आज फिर पनघट.. मैं भरती थी - यमुना से गागार.. मारी कंकडीया गगरी फोडी.. चुनरिया झीनी हो गयी गीली.. मैं भी हुई पानी-पानी - - घाघरा चोली बंसती पीली - - गालों पर छा गयी लाली-- आठ बरस का नटखट कान्हा - - सारा नन्द गांव उसका दीवाना - -  माखनचोर,,नन्द किशोर - - - मनमोहन  बड़ा ही चितचोर  गोपियों का प्यारा कान्हा - -   कृष्ण प्रेम में राधा ही कान्हा - - कान्हा ही राधा  सांय काल यमुना के तीरे  तिरछी कमरिया,पीला पटका  सिर मोर मुकुट भी अटका - -  बंशीधर जब साजे अधरों पर बंशी - -  हिय प्रेम का सागर - - सागर से भर -भर गागर अधरों पर बाजे - - मधुर ध्वनि राग रागिनी गोपियां सुध-बुध भूल सब भागे --- पायल मधुर साज बाजे, धेनु पद-चाप ढोलक की थाप- एकत्रित नंदगाव यमुना के तीरे..  कान्हा ही र...

नववर्ष

एक जनवरी नववर्ष प्रारम्भ  बारह मास बाधे मन में आस तीस - इकत्तीस दिन का मास हर दिन उज्जवल रख विश्वास  नव प्रयासो का नव आधार  उम्मीदों से रचा-बसा संसार  प्रयासों के विभिन्न प्रकार  सही दिशा, सटीक विचार  साकारात्मकता के उत्तम विचार  सद्भावनाओं भरा व्यवहार  स्व की रक्षा प्रथम आधार  ना हो कोई अत्याचार  स्व कल्याण संग जन कल्याण