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Showing posts from May, 2024

ध्यान योग साधना

  ध्यान योग का महत्व... ध्यान योग साधना साधारण बात नहीं... इसका महत्व वही जान सकता है.. जो ध्यान योग में बैठता है।  वाह! "आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी" आप धन्य है... आप इस देश,समाज,के प्रेरणास्रोत हैं।  आप का ध्यान योग साधना को महत्व देना, समस्त देशवासियों के लिए एक संदेश है... की ध्यान योग का जीवन में क्या महत्व है। ध्यान योग साधना में कुछ तो विशिष्टता अवश्य होगी...वरना इतने बड़ देश को चलाने वाले प्रधानमंत्री के पास इतनी व्यस्तता के बावजूद इतना समय कहां से आयेगा कि वह सब काम छोड़ ध्यान में बैठे।  यथार्थ यह की ध्यान योग साधना बहुत उच्च कोटी की साधना है... दुनियां के सारे जप-तप के आगे अगर आपने मन को साधकर यानि मन इंद्रियों की की सारी कामनाओं से ऊपर उठकर मन को दिव्य शक्ति परमात्मा में में लगा लिया तो.. आपको परमात्मा से दिव्य शक्तियां प्राप्त होने लगेगी। लेकिन इसके लिए आपको कुछ समय के लिए संसार से मन हटाकर.. ध्यान साधना में बैठना होगा... एक बार परमात्मा में ध्यान लग गया और आपको दिव्य अनुभव होने लगें तो आप स्वयं समय निकालेगें ध्यान साधना के लिये।  आप सोचिए अग...

उत्तराखण्ड एक ब्रह्मांड

उत्तराखण्ड ब्रह्मांड का अंश है।  यूं तो समस्त पृथ्वी ही ब्रह्मांड का अंश है.. किन्तु उत्तराखण्ड में आज भी देवत्व बचा हुआ है।  तभी तो उत्तराखंड को देव भूमि भी कहा जाता है।  देव भूमि यानि दिव्य शक्तियों की अनुभूति।  हिमालय की ऊंची चोटियों में शिव का वास है।  समस्त संसार को जहरीले विष के जहर से बचाने के लिए विष को अपने कंठ में धारण कर शिव का कंठ नील वर्ण का हो गया था.. उन्हीं नीलकंठ महादेव का दिव्य मंदिर ऋषिकेश में ही है।  श्री विष्णु भगवान की दिव्य तपस्थली बद्रीनाथ भी उत्तराखण्ड की ऊंची चोटियों में ही स्थित है.. ऋषिकेश से श्रीनगर कर्णप्रयाग , रूद्रप्रयाग, तीन नदियों का  महासंगम अलखनंदा,भागीरथी एवं सरस्वती.. जो मैदानी स्थलों पर जाकर  पतित पानी मां गंगा के नाम से समस्त मानव जाति का कल्याण करती है।  केदारनाथ धाम.. कहते हैं पाण्डवों ने इस मंदिर की  स्थापना की थी। भगवान शिव कलयुग में भक्तों का उद्धार करने के लिए अपना आशीर्वाद दे रहें हैं। 

ऋषिकेश की विरासत

ऋषिकेश स्वयं एक विरासत है, समाज, एवं समस्त देश के लिए.. परमात्मा द्वारा प्रदत प्राकृतिक सौन्दर्य की अद्भुत,अतुलनीय, आलौकिक दिव्यता ।। ऋषिकेश को अध्यात्म एवं योग का आशीर्वाद प्राप्त है। ऋषिकेश में अध्यात्म के संग आधुनिकता भी अपनी भरपूर उपस्थिति दर्ज करा चुकी है।  ऋषिकेश का सौन्दर्य, प्राकृतिक खुबसूरती सबको अपनी ओर आकर्षित करती है। हर उम्र का इंसान यहां आकर मन की प्रसन्नता को प्राप्त कर आनन्द को प्राप्त करता है। ऋषिकेश घूमने आयें, आप सब का स्वागत है।  परन्तु आप सबसे एक प्रार्थना है कि, ऋषिकेश या किसी भी अन्य प्राकृतिक, सौंदर्य के धनी क्षेत्र में आप घूमने जाते हैं तो, आप वहाँ जाकर गंदगी ना फैलायें, वहां के प्राकृतिक सौन्दर्य से छेड़छाड़ ना करें.. अगर आप वास्तव में इस प्रकृति से प्यार करते हैं.. और बार-बार पहाड़ी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थलों पर घूमने आना चाहते है तो अगली बार के लिए इन्हें सुरक्षित रखें।।।। प्राकृतिक सौंदर्य समस्त मानव जाति की धरोहर है मान है, प्रतिष्ठा है.. अपनी धरोहर का संरक्षण करना हम  सबका कर्तव्य है, कृपया इन्हें सम्भाल कर रखिये। ऋषिकेश एक अध्यात्म न...

मंजिल

 भटकता रहा मंजिलों की तलाश मे  दर -दर.. थक हार के बैठा तो पाया  जहाँ से चला था वहीं तो थी,मंजिल मेरी।। दूर आसमानों में किसी सुंदर जहाँ की तलाश में  फिर निकल पड़ता है मन मंजिल की तलाश में।  राहों के उतार - चढाव को पार करते-करते  फिर घबराता हूँ, सोचता हूँ, जहाँ से चला था  मंजिल वो ही सूकून भरी थी।  बुद्धि की तीव्रता कहां चैन लेने देती है  मन को बहुत उकसाती है।  सपनों के महल बनाती है जो है उसमें कहां संतुष्ट होती है  दूर आसमानों की ऊचाईयों में  खुशियों के महल बनाती है। 

पल-पल

एक पल ने कहा रुक जा, ऐ पल,  उस पल ने कहा कैसे रुक जाऊं  अब आयेगा  दूसरा पल।  जिस पल में जीवन की सुंदरता का हो एहसास  बस वही है प्यारा पल।   ऐ पल तू ठहर जा, पल में बन जायेगा तू अगला पल, जाने कैसा होगा अगला पल,आज का पल है  बेहतरीन पल, जी भर जी लूं यह पल, कह रहा है मन चंचल-चपल । पल की  कीमत पल ही जाने,  बीत जाने पर हो जाना है हर पल बीता कल।  पल -पल कीमती है, प्रयासों की मचा दो हलचल, जाने कब गुजर जाये यह पल, बन जाये अगला पल।    हर पल को बना दो, बेहतरीन पल फिर लौटकर नहीं आयेगा यह पल।  पल की कीमत पल ही जाने, नहीं ठहरता कोई भी पल,बन जाता है अगला पल। पल -पल बीत रहा है, कह रहे हो जिसे अगला पल उस पल में निकाल लेना जरूरी प्रश्नों के हल।    यह पल भी होगा कल, फिर अगला पल  समय नहीं लगेगा, हर पल को बीतते।  वर्तमान पल को बना दो स्वर्णिम पल  कल का पता नहीं, कब हो जाये फिर अगला कल।  कल - कल बस कल, आज को जी लो मत टालो कामों को,कल का भविष्य हो जाना तय है।

संवेदना प्रकृति का आधार

 संवेदनशील होना साधारण बात नहीं संवेदनाऐं प्रकृति प्रदत दिव्य उपहार है संवेदना ही मनुष्य को मनुष्य होने का एहसास कराती है।  जाने कहाँ से उपजा होगा संवेदनाओं का  अथाह सागर... जिसके रत्न हैं उपकार त्याग, दया, प्रेम, सहनशीलता आदि...  संवेदनाऐं ही प्रकृति का आधार है.. तभी तो कुटुम्ब परिवार हैं, रिश्ते-नाते और त्यौहार हैं।  संवेदना रहित मनुष्य को, दिखता बस स्वार्थ है।  अंहकार का नशा करता अत्याचार है...  भ्रम में जीता, उजाला समझ.. अंधी गलियों में बसाता संसार है - - फिर अंत मे होती हाहाकार है।।  संवेदना विहीन धरा पर भार है।। 

छुट्टियां

 कुछ छुट्टियां बिताने मनुष्य बनकर  धरती के सफर पर आयी हूं।  प्रकृति का दीदार करने धरा पर आयी हँ।  वाह! वसुंधरा पर प्रकृति का श्रृंगार  अद्भुत, अतुलनीय, अकथनीय।  प्रकृति यहां गीत गुनगुनाती है  झरने वाद्य बजाते हैं, तन-मन की निर्मलता  को नदियों का अद्भुत संगम यहाँ।  खेतों की हरियाली मन को भा जाती हैं  शीतल हवायें प्राणवायु बढाती हैं।  वृक्षों पर मीठे फल भी आते हैं, पेट क्षुधा को  तृप्त कर जाते हैं।  आते हैं,जाते हैं, मुसाफिर यहां,  कुछ खूबसूरत भव्य आलीशान  निस्वार्थ प्रेम के महल  बनाकर जाऊंगी।  खुशियों की चाबी भी संग अपने लायी हूँ।  मोहब्बत के तराने भी गुनगुनाऊंगीं ।  परस्पर प्रेम के बीज भी लायी हूँ।  लौट जाने से पहले अपनत्व की फसल  लहलहाने आयी हूँ।  नहीं उलझना मुझे शिकवे - शिकायतों में  जीवन का हर लम्हा सुख-चैन से जी के बिताऊगी ।  

खुशी

अपनी खुशियों की चाबी अपने संग रखना किसी ओर के हाथ मत देना..   अपनी खुशियों के मालिक स्वयं बने रहना।  खुशी जीवन का सुन्दरतम श्रृंगार है, खुशी अपनत्व का मीठा एहसास है।  खुशी मन का भी सौंदर्य है। खुशियों की चाबी बाहर नहीं  मन के भीतर छिपी होती है, चाबी को ढूढकर, खुशियाँ खोज लाना यही तो जीवन का आधार है।  फिर क्यों ढूढते हो खुशी को इधर-उधर खुश रहने का मंत्र तो आपके पास है। नहीं निर्भर हमारी खुशी किसी पर  हम तो खुद खुशी का पर्याय हैं  हमें देख लोग बिन बात मुस्करा जाते हैं। प्रकृति से मिला सुन्दरतम उपहार है। 

भ्रम

भ्रम में जी रहे हैं सभी बिन बात का भ्रम ,  डर का भ्रम , भ्रम ही भ्रम में  उलझनों का भ्रम  अनहोनी का भ्रम  धोखे का भ्रम  झूठ का भ्रम  अपवाद का भ्रम  निंदा का भ्रम  द्वेष का भ्रम  षड्यंत्र का भ्रम  भ्रम से खत्म हुआ, जीवन का आनन्द ।  भ्रम एक मायाजाल,मन का कोलाहल  भ्रम जागती आंखों का दु:स्वप्न  भ्रम एक नाकारात्मकता सोच..  भ्रम हर लेता मन की शुभ सोच..  भ्रम के अंधेरे से बाहर निकलो  तभी होगा साकारात्मक सोच का सवेरा  भ्रम है रात का अंधेरा,   भ्रम की नींद से जागो तभी होगा  साकारात्मक सोच का सवेरा।। 

मेहरबानी

मेहरबानी मांगनी है, तो परमात्मा प्रेम से मांगों  परमात्मा के आशीर्वाद की मांगों.. उसी की मेहर से  ही है यह धरती,यह आसमां....  मेहरबानीयों का मंजर, उसकी अथाह है    प्रकृति बिना किसी भेदभाव के सबको दे रही है।  हम तो बस रोते रह गये, सामने दरिया था  फिर भी प्यासे रह गये।  मेहरबानी तो स्वयं पर स्वयं की करनी है, विवेक से जीवन की गुत्थियां सुलझानी है।  मेहरबानी ही तो उसकी है,की हम सक्षम हैं,  हम सवंचछ हैं, हम बुद्धि, बल, विवेक से भरपूर हैं  दिया ऊपर वाले ने जी भर के दिया है,  हमें लेना ही नहीं आया तो वो क्या करे।।  थोङा प्रयास करना है, समक्ष खजाने भरे पड़े हैं,  उपयोग करने की विधि सीखनी है, वो सदा से ही  मेहरबान था, मेहरबान रहेगा, उसकी मेहरबानीयों  का सिलसिला सदा यूं ही चलता रहेगा। 

खिल रही चेहरे की कली

 खिल रही चेहरे की कली, मन क्यों तू गा रहा राज कुछ मन में छिपा, चेहरा तेरा बतला रहा।। ख्वाब जो मन में पले, सच क्या वो रहे,  देख तेरे चेहरे की खुशी, माहौल भी इतरा रहा।।  गीत खुशी के गा रहा,कोई शायर हो गया,  दिल दिवाना हो गया, मन मस्ताना हो गया।।  हवाओं में तू उड़ रहा, बादलों सा घिर रहा,  आज फिर नयी कहानी कहने को तू बहक रहा।।  चहक रहा, बहक रहा, पांव जमीं पर ना धर रहा,  चल उड़ चले नये जहां मे,मोहब्बत का होआसमां।। चांद - तारों पर लिखेगें, मोहब्बत की नयी दास्तान,  आसमां से नूर बरसे, प्रेम हो दिल में भरा।। 

चहत सबकी मोहब्बत

चाहत सबकी मोहब्बत है, फिर भी..  ना जाने क्यों नफरत की पगडंडियाँ बनाते हैं। अपनों से ही मोहब्बत है.. जाने कहाँ से गलतफहमियां ढूढ लाते हैं। जीवन की कश्ती में,अंहकार का चापू चलाते हैं। स्वार्थ में अंधों की तरह अकेले ही महल बनाते हैं, और महल की दिवारों से अकेले ही बातें करते हैं।  फिर घबराकर जमाने में लौट आते हैं  और अकेलेपन का गान गाते हैं।  मंजिल सबकी एक है, चाहत सबकी एक है ,  चलो फिर हंस के रास्ते काटते हैं,  कुछ गीत गुनगुनाते हैं, कुछ ठहाके लगाते हैं।  जीने के खूबसूरत अंदाज बनाते हैं  जमाने को परस्पर प्रेम का पाठ पढाते हैं।  तेरे-मेरे की दूरियां मिटाते हैं  स्वार्थ को भूल जाते हैं,  परमात्मा नहीं किसी को कम-या  किसी को अधिक देता, प्रकृति से यह बात सीख जाते हैं,  नदियाँ, सागर, वृक्ष, खेत-खलिहान  सभी तो एक सामान सबकी क्षुधा मिटाते हैं  चाहत सबकी मोहब्बत है  चलो फलदार वृक्ष लगाते हैं,  प्रेम के दरिया से जीवन को रसमय बनाते हें।