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Showing posts from 2024

अपने मालिक स्वयं बने

अपने मालिक स्वयं बने, स्वयं को प्रसन्न रखना, हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है..किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी ना होने दें।  परिस्थितियां तो आयेंगी - जायेंगी, हमें अपनी मन की स्थिति को मजबूत बनाना है कि वो किसी भी परिस्थिति में डगमगायें नहीं।  अपने मालिक स्वयं बने,क्यों, कहाँ, किसलिए, इसने - उसने, ऐसे-वैसे से ऊपर उठिये...  किसी ने क्या कहा, उसने ऐसा क्यो कहा, वो ऐसा क्यों करते हैं...  कोई क्या करता है, क्यों करता है,हमें इससे ऊपर उठना है..  कोई कुछ भी करता है, हमें इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए.. वो करने वाले के कर्म... वो अपने कर्म से अपना भाग्य लिख रहा है।  हम क्यों किसी के कर्म के बारे मे सोच-सोचकर अपना आज खराब करें...  सोचता तो हर पल कोई ना कोई कुछ ना कुछ रहता ही है ....फिर क्यों ना अपनी सोच  को सही सोच की तरफ मोड़ें सामने ऊंचे पहाड़ या गहरी खाई आ जाये तो क्या आप रुक जायेगें .... आप ही को बदलना पढेगा अपनी सोच को अपनी राहों को ... नहीं बदलोगे तो जिन्दगी भर रोते रहो ...या फिर बदल लो अपने रास्तों को ..और बढ जाओ आगे की ओर...   **** जब-जब हमार...

ब्रह्म अस्त्र

सरलता मेरा आत्मबल है  सहज बन जीने दो मुझे - -  सरलता का अमृत रस मुझे पीने दो - -  निश्चिंत हूं,की  ब्रह्मास्त्र है मेरे पास अद्वितीय अदृश्य संरक्षित है मुझमें - सरल, सहज निर्मल स्वभाव है, मेरा-- भीतर दावानल भी है मेरे  अपनी शक्तियों का दिखावा कर प्रदर्शन नहीं  करना मुझे - - विश्वास है मुझे  मेरे ब्रह्म अस्त्रों पर-- सदा ले दावानल का आधार - -  क्यों करूं अत्याचार  सरलता मेरा आत्मबल है क्यों कर मुझे उकसाते हो  मेरे भीतर की आग को भड़काते हो  ब्रह्मअस्त्र भीतर है मेरे..  मुझे मेरी शक्तियों पर विश्वास है  सहज बन जीने दो मुझे  सरलता का अमृत रस मुझे पीने दो - -  पुष्प बन खिलने दो, आंगन को महकाने दो  कोमलता का आवरण ओढ धरा पर  प्रेम रस बहाने दो - - सरलतम् व्यवहार से  धरती का श्रृंगार करने दो-   कोमल भावनाओं की मिठास से  विनम्रता  का पाठ पढाने दो मुझे - -  ठेस दोगे तो मेरी भयंकर कराह से डगमगा जाओगे  शूल रक्षक हैं मेरे - - संरक्षण भी है मेरे -  दावानल को ना उकसाओ  सरलता...

भारत में हर मौसम एक त्यौहार है

  भारत में हर मौसम एक त्यौहार है जाडों में खिलती धूप मानों सुखमय संसार है अदरक वाली का संग,हरी इलायची की  खूशबू ए बहार है,हंसी-ठहाकों,गप-शप से  खिलखिलाता घर संसार है।  मूँगफली -गजक रेवड़ी का लगता दरबार है -  हरी साग, गाजर मूली, मटर  गाजर के हलवे की मिठास से लबलबाता  सेहत और स्वाद है,   पकौडों के संग हरी चटनी का रंग -  गर्मी, सर्दी, बरसात, बंसती फुहार है  कडाके की सर्दी, गर्म, मुलायम कपड़ों के गुदगुदे एहसास में, कहीं कड़कती ठंड में जलती अलाव का आधार है ठंड में व्यंजनों की भरमार है - गाजर-गोभी, मूली का खट्टा मीठा आचार, बढाता खान-पान का  स्वाद है मक्की की रोटी, सरसों का साग लस्सी भी क्या बात है, पराठों ने सदा से मक्खन से निभाया साथ है।  खुशक त्वचा पर चिकनाहट का मुलायम हाथ बनाता चेहरे को चमकदार है - - सेहत का साथी बनने में सर्दी का मौसम बड़ा ववफादार है। गुनगुनानी धूप में व्यायाम, चहलकदमी करना भी अच्छी सेहत का साथ है। 

कश्तियां

भाव सागर चल रही है, कश्तियां संसार की  लहरें सागर उठ रही, भीतरी एहसास की  लहरों की ऊचाईयां, या,अरमानों की उठापटक  दिल का दरिया बह रहा, समुंदर सा हो रहा।  कोई समझने वाला ही नहीं, भीतरी एहसास है  तूफान तो आयेगा, भीतर ज्वाला धधक रही  समाज की बेड़ियों में  सिसक वो कराह रही  चीखों पुकार है,  कैसा यह उद्गार है..  सिसकियों में कह रहा, तूफान की आहट हुई  भीतर जो उद्गार है.. वधिक में व्यक्त है  घाव था ना जो भरा, हाल उसका है बुरा अंतिम दौर है, कराह का शोर है,आह! सब और है। 

उड़ान

आज फिर निकला हूँ घर से ख्वाबों का नया जहाँ बनाने को  खुले आसमां में उडान भरने को - -  हकीकत धरती पर फिसल गयी  जब पाषाण के टुकड़े पर पादुका अड गयी नजर धरती मां पर रुक गयी  किया प्रणाम--बड़ा सम्मान  धरा पर चलने को दिया स्थान आसमान की बातें धरती से जुड़ गयी  धरती से आसमां की नजरे मिल गयीं  ख्वाबों की हकीकत आंखों में उतर गयी  मंजिल अभी दूर है, चलना अभी बहुत दूर तक है  धरती से मेरी मोहब्बत बड़ गयी..  ख्वाबों की जमीं आसमां से जुड़ गयी  ख्वाब सजते थे यहाँ, पलते थे वहां  धरती की हकीकत आसमां में दिख गयी  खोखले स्वार्थ की आग , आसमां में धुआं बनकर उड़ गयी  ख्वाबों की जमीं धरा पर जीवंत हो गयी  . आसमान तक की उड़ान में एक कड़ी और जुड़ गयी। 

अद्भुत रंग

कोमल मन अद्भुत रंग  भाव जागे हर्षित मन  पुष्प मरकंद कोमल अक्स  पवित्र बंधन जीवन धन  प्रेम विश्वास प्रिय अनुबंध  अनुराग प्रीती समर्पण  राग रागीनी सुरम्य संगीत  जीवन कलश अद्भुत रीत ह्रदय बसे अगम्य रस प्रसन्नचित्त ह्रदय प्रफुल्लित मन अमिय गागर-नयन नीर  भाव समुद्र अनकही तकरीर  शब्द मौन मन ही जाने मन कही  समर्पित जीवन जागीर  ह्रदय बसायी तस्वीर  दिल खींची लकीर  फिरे बन फकीर  मानों दुनियाँ का बड़ा अमीर।।   

खामोश चीखें

खामोश चीखों की तड़प  अनकही - - दास्तान - -  दर्द में कराह थी  कराह की सजा भी थी  वजह भी ना अजब ही थी  दुआ की जब अदा होगी   दिलों में लाखों के तड़फ होगी   जो हर दिल ने सही   पर शब्दों से ना कही  कुछ अनकही सी बातें  खामोश सी चीखीं इक वाह! में आह! थी  रब बनकर वो रहते हैं  इस दिल में दफन होकर  उस आह! में चाह भी थी  उस चाह! में इक राह! भी थी  राहों में पड़े थे शूल चोटिल भी हुये थे बहुत  इस दर्द ए मोहब्बत का इतना सा फसाना है जिसे चाहा कभी हमने  उसे ना पाने की खलिश होगी  जीवन की दर्द भरी साजिश होगी  साजिश के ना गवाह होगें .. ना कभी गवाही होगी  मेरी मोहब्बत, इबादत बनकर   रब बनकर भी रह लेगी  पाप नजरों से बचकर, मेरे दिल में दफन होगी।   

लेखक

  जब आप अपनी अभिव्यक्ति या कुछ लिखकर समाज के समक्ष लाते हैं, तो आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप समाज के समक्ष बेहतरीन साकारात्मक विचारों को लिखकर परोसे,   जिससे समाज गुमराह होने से बचे..प्रकृति पर लिखें, वीर रस लिखें, सौंदर्य लिखें, प्रेरणादायक लिखें, क्रांति पर लिखें ___यथार्थ समाजिक लिखें  कभी - कभी समाजिक परिस्थितियां भयावह, दर्दनाक होती---बहुत सिरहन उठती हैं.... क्यों आखिर क्यों ? इतनी हैवानियत, इतनी राक्षसवृत्ति.. दिल कराहता है.. हैवानियत को लिखकर परोस देते हैं हम - - समाज को आईना भी दिखाना होता... किन्तु मात्र दर्द या हैवानियत और हिंसा ही लिखते रहें अच्छी बात नहीं..   लिखकर समाज को विचार परोसे जाते हैं.. विचारों में साकारात्मकता होनी भी आवश्यक है।  प्रेम अभिव्यक्ति पर भी लिखें प्रेम लिखने में कोई बुराई नहीं क्योंकि प्रेम से ही रचता-बसता संसार है.. प्रेम मन का सौन्दर्य है, क्यों कहे सब व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है प्रेम से संसार है, प्रेम ही व्यवहार है प्रेम ही सद्भावना, प्रेम ही अराधना प्रेम ही जीवन आधार है.. प्रेम में देह नहीं, प्रेम एक जज्बात...

शौक अपने - अपने

शौक अपने - अपने  सपने अपने - अपने जीने के ढंग अपने-अपने  सोच अपनी -अपनी कहानी अपनी-अपनी  उड़ान अपनी-अपनी  मेहनत अपनी-अपनी  दायरे अपने-अपने  इरादे अपने - अपने  तराने अपने - अपने  बहाने अपने - अपने निशाने अपने - अपने पसंद अपनी-अपनी खुशी अपनी - अपनी अफसाने अपने-अपने  फितरत अपनी-अपनी  क्यों ना हों,आखिर जिन्दगी है सबकी अपनी अपनी  जिन्दगानी अपनी-अपनी  जीने के ढंग अपने-अपने  भरने हैं पसंद के रंग अपने-अपने।। 

देव दीपावली

देव दीपावली  धरती अम्बर से जगमगाते सितारों सी खिली    ईगास... पहाड़ी इलाकों का दीपोत्सव..  श्री राम सीता एवं लक्ष्मण आगमन की खबर जो शहरी इलाकों की अपेक्षा पहाड़  इलाकों में कुछ दिन बाद मिली.. विषेशतया उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में इसे ईगास.. बूढी होती दीपावली कहकर सम्बोधित करते हुये दीपावली का त्यौहार मनाया गया..और यह परम्परा तभी से मनायी जाती है।   

अल्हड़ मन

अल्हड़ मन की आस, मन ना पाये विश्राम  राह निहारे सर्वदा, नयनों से झलकती नर्मदा।।  दीदार नयन होता रहे, प्रेम को अनकहा करे  कसक मन की ना थमें , दिल कहीं भी ना रमें अल्हड़ मन चंचल चपल, निष्ठुर बेमानी  सजाता सपनों की कहानी, करे सदा मनमानी।।  प्रेम परिभाषित करुं, निर्मल मन की कसक  प्रेम में समर्पण, ज्यों भीतर करे देवत्व दर्शन।।  प्रेम जीवन उपसंहार, प्रेम जीवन का सारांश  प्रेम को भटके सभी, प्रेम को तरसे सभी।।  प्रेम मन की मीठी ठसक, अनकही सी कसक  प्रेम मर्यादा में बंधी,  लक्ष्मण रेखा ना भटक।।  सरल मासूम बालक, सा मन  करता नादानी  बन पंछी भरता उडान, मन ज्ञानी भ्रम अज्ञानी  ।। 

भाव समुंद्र प्रेम रत्न

प्रेम मन का सौन्दर्य है, दिव्यता का शौर्य है  ह्रदय का श्रृंगार है, रसमय व्यवहार है।  प्रेम आत्म रत्न धन, प्रसन्न ह्रदय आनन्दित मन प्रेम की ना कोई जाति, प्रेम सत्य धर्म प्रजाति।।  क्यों कहे प्रेम व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है  प्रेम अद्वितीय रत्न, प्रेम दिव्य मन भाव भाव समुद्र प्रेम रत्न, कुटिलताओं में नजरबंद  कुचल कर कोमल प्रेम पंख, नीम का लेपन चढा. मूर्च्छित मन कराह रहा, नेत्र अश्रु बहा रहा  भीतर प्रेम उद्गार है...  बाह्य भय कारावास  तोड़ के सब बेड़ियाँ, प्रेम का इकरार हो  क्यों कहे सब व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है  प्रेम से संसार है, प्रेम ही व्यवहार है  प्रेम ही सद्भावना, प्रेम ही अराधना  प्रेम ही जीवन आधार है..  प्रेम में रचा-बसा संसार है  प्रेम में देह नहीं, प्रेम एक जज्बात देह का अंत है, प्रेम तो अंनत है  प्रेम के वृक्ष पर रहता सदा बसंत है। 

अनोखा प्यार

  अनोखा प्यार *     *आव्यशक नहीं जो सामने है वो सत्य ही है किसी भी फल की पहचान ऊपरी परत हटाने पर ही पता चलती है *           यार तू रहने दे ,मैं इस दुनियां में अकेला था ,और अकेला ही ठीक हूं मेरा इस दुनियां में कोई नहीं।    मेरी मां तो पहले ही इस दुनियां से चली गई थी और मेरा पिता वो तो जीते जी ही मेरे लिये बहुत पहले ही  मर गया था । जब मैं आठ साल का था मेरे बाप को शौंक चड़ा था मुझे तैराकी सिखाने का ...... क्या कोई पिता अपने बच्चे को ऐसी तैराकी सिखाता है , धकेल दे दिया था मुझे स्विमिंग पुल में और छोड़ दिया था अकेला मरने के लिए,मैं चिल्ला रहा था पापा मुझे निकालो मैं मर जाऊंगा मुझे तैरना नहीं आता है पर मेरा पापा टस से मस नहीं हुआ ,आखिर दस मिनट बाद बहुत मशक्त करने के बाद मैंने हाथ -पैर मार के तैरना ही सीख लिया।   वैभव बोला हां और आज तू तैराकी चैंपियन भी है और कई अवार्ड भी ले चुका है,जानता है इसके पीछे कौन है ,तेरे पिताजी अगर उस दिन तेरे पिताजी तुझे अकेला ना छोड़ते तो तू आज तैरना ना सीख पाता और इतना बड़ा चैंपियन ना बनता ।  अर...

लोग मुझे कहते हैं जोकर

लोग मुझे कहते हैं जोकर  गुजारें हैं बहुत पल रो-रोकर  खाकर बहुत सी ठोकर.. बहुत घायल हुआ हूं-- सम्भला हूं...  अब मन कहता.. है!  खुशी है तेरी जो करना है, वो कर!  पाने को खुशी, रोया नयन धो-धोकर - -  अब खुशियों के पीछे नहीं भागता -- खुशीयां मेरे संग रहती हैं  लोग मुझे कहने लगे हैं जोकर-- मेरा मन कहता है - -  तू जो कर वो कर-- मन में जो आये-- वोकर - -  अब जो मन में आता है मैं वो करता हूं  खोकर सब कुछ पा गया हूं बहुत कुछ  कहता हूं - मन तू जो- कर - वो कर.. फिर चाहे  कोई कहे तुझे लाख जोकर...  खाकर अनगिन ठोकर बन गया हूं जोकर.. खुश हूं - -  लोगों को हंसने के बहाने देता हूं - -  कयूं कर गुजारुं जीवन रोकर  अब कहता हूं मन तू जो करना है वो कर  कहने दे जमाना जो कहे तुझे जो जोकर  तुझसे है जमाना, जमाना से तू नहीं  तेरा वजूद है तेरी शक्सियत -  तू खुशकिस्मत है, तेरी साफ है नियत  अब मैं बेफिक्र मुस्कराता हूं, हर दर्द मुस्कराहट में छिपाता हूं  दर्दों ने मेरा साथ कभी ना छोड़ा  मैने दर्दों को अपना ...

चलती रेल

चलती रेल  अद्भुत मेल बढाती लोकाचार  समाजिक व्यवहार  यात्री सवार  आवश्यकता आधार  सुहानी डगर  ताके इधर- उधर  मंजिल किधर   अन्जाना सफर  जीवन सरक संसार आनंद प्रकृति देवानंद  सुर उपजे  गाते गीत  दिल पीर  ख्वाब जंजीर  मन अधीर  नामुमकिन मनमीत  आशा दीद  चक्षु नीर  मुख प्रसन्न  दिल पीर  अद्भुत कला  बाहर आकर्षण  भीतर जंजाल  भाव कोलाहल  सविकृत सत्य  मन भेद  जीवन संक्षेप  तालमेल  सब खेल   चलती जीवन रेल  यात्री सवार  सफर यादगार  कर इकरार  ना इंकार  कर्म आधार जीवन सार... 

दोस्ती करोगे मुझसे

  दोस्ती करोगे मुझसे .... चलो कर ही लो... कभी घाटा नहीं होगा... फायदे में ही रहोगे.... जब कभी मन उदास हो, हताश हो... निराश हो....चले आना मेरे पास... मैं हल दूंगी ...  उदास मन में उम्मीद की नयी किरण जगा दूंगी ..... सब दुविधाओं का हल है मेरे पास....साकारात्मक विचारों का अद्भुत भंडार है....  जीवन के अनुभवों के आधार पर... मुझमें जीवन जीने की कला की अलौकिक सीखें हैं.... जिसमें परमात्मा की दिव्यता का प्रकाश है... मैं जीतना सिखाती हूं.... आगे की बढने के रहस्य बताती हूँ.....  हां मैं साकारात्मक विचारधारा आपकी हमसफर  बनने के काबिल हूं.... मैं वादा करती हूं.... मैनै  दोस्ती का हाथ बढाया है.... मेरी तरफ से दोस्ती पक्की है.... सोचना आपको है.... क्या मुझ किताब से दोस्ती करोगे......    दोस्ती को कभी हल्के में मत लेना...... दोस्ती हर रिश्ते से ऊपर होती है... दोस्ती फायदे या नुकसान के लिए नहीं होती.... दोस्ती दो दिलों की आवाज... आत्मा का आत्मा से सम्बंध होती है। दोस्ती फरिश्तों की नियामत होती है।  ।  अपने हिस्से की जमीन अपने हिस्से का आसमान स्वयं बनाना ...

विजय की दशमी

 विजयदशमी- विजय की दशमी  त्रेता युग में आज ही के दिन श्रीराम  ने अत्याचारी,अंहकार रावण को मार  बुराई का अंत किया था...  तभी से आज ही के दिन अश्विनी मास की   कृष्ण पक्ष की दशमी को....  दस सिरों वाले राक्षस रावण को मारने की  परम्परा चली आ रही है.... रावण, मेघनाद,  कुम्भकर्ण के पुतले तो हर वर्ष जलाये जाते हैं  जलाने वालों में वो लोग शामिल होते है  जिनके मनों में स्वयं असंख्य रावण रुपी  विकार घर बनाये बैठे होते हैं..... अब  आवश्यकता है, मन में पल रहे लोभ  इर्ष्या,द्वेष, अंहकार रुपी विकारों के रावणों को मारने की.....  हर वर्ष पुतले जलाकर पर्व मनाना स्वयं को याद दिलाना मनाना अच्छी बात है..  खुशी तब होगी जब मन के विकार रुपी रावणों का अंत होगा....   

आकर्षण

  आकर्षण* मेरे मित्र के अनुभव और मेरे शब्द...  मेरे मित्र ने अपने कुछ अनुभव मेरे साथ साझा किये.... जिन्हें मैं अपने शब्दों के माध्यम से साझा कर रही हूँ....  यह फितरत है मनुष्य की....अधिकांशतया मनुष्यों को बाहर की दुनियां आकर्षित करती है, मन को आकर्षण भाता है....... भागता है, मनुष्य बाहर की ओर....... जाने क्या पाता है.. जाने कितनी खुशी मिलती है.... जाने वो खुशी मिलती भी है की नहीं..... जिसे पाने के लिए वह अपना घर - परिवार छोड़..... बाहर निकलता है..... या फिर जीवन पर्यंत संघर्ष ही करता रहता है....... मन ही मन सोचता है...... अपना घर तो अपना ही  होता है...... जो सूकून जो सुख-चैन आराम अपने घर में है..... वो कहीं नहीं..... जाने कहां जा रहे हैं सब मंजिल कहीं ओर है, रास्ते कहीं ओर जान -बूझकर मंजिल से हटकर अन्जानी राहों पर चल रहे हैं लोग, सब अच्छा देखना चाहते हैं सब अच्छा सुनना चाहते हैं अच्छाई ही दिल को भाती भी है, अच्छाई पाकर गदगद भी होते हैं सब..भीतर सब अच्छाई ही चाहते हैं, फिर ना जाने क्यों भाग रहें हैं ,बिन सोचे समझे अंधों की तरह भेङ चाल की तरह ,जहां जमाना जा रहा है हमार...

गर्व की बात

Books in me.. Me in books  अभी तक किताबें सिर्फ मुझमें जीती रहीं  आज मैं किताबों में मैं जी रही.. शुक्रिया परमात्मा   "Proud moment"  "First Books live in me  Than I am living in books"   

(उत्तराखण्ड)

 शीर्षक  (उत्तराखण्ड) ...  उत्तराखण्ड  उत्तर का खण्ड  जहाँ रहती बारह महीने ठंड. मनभावन प्राकृतिक में रमता सदा ही मन..  हिमालय -हिम काआलय जिसमे मिलते अद्भुत  जड़ी-बूटियों के संग्रहालय  यहां बसते देव देवालय  बद्रीनाथ.का पवित्र धाम  पाण्डवों की तपस्थली केदारनाथ धाम, शिव शिवालय.. मन को मिलता जहाँ आराम  सुधर जाते बिगडे  काम  मन को मिलता विश्राम  गौमुख से प्रवाहित गंगा की धारा,, गंगोत्री धाम  यमुनोत्री धाम.. गंगा, यमुना और सरस्वती  उत्तराखण्ड पर कृपा दृष्टि  रखती देवी भगवती... यहीं से उद्गम देवी सरस्वती  गंगा, भागीरथी की त्रिवेणी धारा  ऋषिकेश में है त्रिवेणी का संगम प्यारा प्रदूषण मुक्त उत्तराखण्ड हमारा  इस पर अतिक्रमण को दे दो किनारा  हरिद्वार - हर की पौड़ी - हरि चरण का द्वार  समस्त ऋद्धि - सिद्धियों से सदा भरपूर रहे  उत्तराखण्ड हमारा..  स्वरचित - - ऋतु असूजा ऋषिकेश

अभ्युत्थानम भारतम्

                                       ( हिन्दी)  ज्ञानदेवी माँ शारदा इत्यस्याः आशीर्वादेन, बुद्धि-  प्रज्ञा-दात्री भगवान् गणेशस्य च प्रेरणा सह   समाजाय शुभ-सकारात्मक-विचारान् समर्पयामि...  ये समाजस्य मार्गदर्शने सहायकाः भविष्यन्ति"  "अभ्युत्थानं सकारात्मक विचार वर्धते सद्विचार समर्पितुं"  भारत भूमि का इतिहास सत्य सनातन एवं सर्वश्रेष्ठ है, वेद, उपनिषद, पुराण मनुस्मृति रामायण, महाभारत आदि अनेको ग्रंथ भारत की उच्च संस्कृति की धरोहर हैं.... भारत भूमि की विषेशता.... उच्चत्तम संस्कार श्रेष्ठतम व्यवहार है। अर्थव्यवस्था का विकास एवं प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान है। आचार्य कौटिल्य भारत के महान अर्थशास्त्री एवं कौटिल्य अर्थशास्त्र पुस्तक के महान विद्वान थे।    "मेरी दोस्ती आपको कभी निराश नहीं होने देगी"   दोस्ती करोगे मुझसे .... चलो कर ही लो... कभी घाटा नहीं होगा... फायदे में ही रहोगे.... जब कभी मन उदास हो, हताश हो... निराश हो....चले आना मेरे ...